रिकॉर्ड दर रिकॉर्ड बनाने वाला क्रिकेटर जॉर्ज अर्नेस्ट गुमनामी की जिंदगी जी रहा

AJ डेस्क: क्रिकेट की दुनिया में रिकॉर्ड्स, आंकड़े और बड़ी सफलताएं काफी मायने रखती हैं, फिर चाहे वो खिलाड़ियों के लिए हों या फिर उनके फैंस के लिए। क्रिकेट के जनक इंग्लैंड ने शुरुआत से ही इस खेल को कई बड़े नाम दिए लेकिन टेस्ट क्रिकेट में उन दिनों कई ऐसे खिलाड़ी भी आए और गए जिनकी बड़ी सफलताएं भी कहीं गुम गईं और साथ ही वो खिलाड़ी भी गायब होते चले गए। ऐसा ही एक नाम था जॉर्ज अर्नेस्ट टायलडेस्ले का।

 

 

कौन थे अर्नेस्ट टायलडेस्ले?

इंग्लैंड के लैंकशर में 5 फरवरी 1889 को जन्मे अर्नेस्ट टायलडेस्ले एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते थे जिसके सदस्य क्रिकेट के काफी करीब थे। उनके बड़े भाई जॉनी टायलडेस्ले भी एक जाने-माने क्रिकेटर थे। भाई से क्रिकेट सीखते हुए वो आगे बढ़े और एक दिन इंग्लैंड के लिए खेलना का सपना भी पूरा किया। उन्होंने मई 1921 में अपना पहला टेस्ट ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेला।

 

 

रिकॉर्ड ऐसे जो आज तक नहीं टूटे

इस खिलाड़ी के नाम कुछ ऐसे आंकड़े दर्ज हुए जिन्हें देखकर किसी की आंखें भी खुली रह जाएं। प्रथम श्रेणी क्रिकेट (First class cricket) में उन दिनों कई महान खिलाड़ी मौजूद थे जिनके बीच जगह बनाना आसान नहीं था लेकिन इस खिलाड़ी ने ना सिर्फ जगह बनाई बल्कि कुछ ऐसे बेमिसाल रिकॉर्ड्स भी बना डाले-

 

लैंकशर क्रिकेट क्लब के लिए सात दोहरे शतक जड़े

 

दो बार मैच की दोनों पारियों में शतक जड़ने का कमाल किया

 

अर्नेस्ट ने 46 साल की उम्र में एक सीजन के अंदर 2000 रन पूरे किए और अगले सीजन में 79.57 की औसत से 3024 रन बना डाले, जो रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ सका

 

दो सीजन में 10-10 प्रथम श्रेणी शतक जड़ने का कमाल भी किया

 

सात मैचों में लगातार सात शतक जड़ने का रिकॉर्ड बनाया, जिसमें से चार शतक लगातार पारियों में आए थे

 

पूरा प्रथम श्रेणी क्रिकेट करियर सिर्फ लैंकशर के लिए ही खेले जिस दौरान 648 मैच खेले, उसमें उन्होंने 38,874 रन बनाए। इस बीच उन्होंने 102 शतक जड़े और 191 अर्धशतक जड़े। उनका सर्वाधिक स्कोर नाबाद 256 रन का था।

 

 

अंतरराष्ट्रीय करियर बेहद अजीब, अंत में आंखों की रोशनी खोई

अर्नेस्ट के प्रथम श्रेणी क्रिकेट करियर के आंकड़े इतने लाजवाब थे कि उसको देखते ही कोई भी सोचेगा कि उनका अंतरराष्ट्रीय करियर भी बेमिसाल रहा होगा लेकिन ऐसा नहीं था। उन्होंने 1921 से 1929 के बीच कुल 14 टेस्ट मैच खेले जिसमें उन्होंने 55 की औसत से 990 रन बनाए। इसमें तीन शतक शामिल थे। लेकिन अपने छोटे से अंतरराष्ट्रीय करियर में बड़ी सफलता के बावजूद भी वो ज्यादा नहीं खेल सके। इसकी बड़ी वजह उन दिनों कम अंतरराष्ट्रीय मैचों का होना भी रही। साल 1936 में संन्यास लेने के बाद उनके जीवन का अंतिम समय अच्छा नहीं बीता क्योंकि कुछ समय वो बीमार रहे, उनकी आंखों की रोशनी भी चली गई और 5 मई 1962 को 73 वर्ष की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।

 

 

 

 

 

 

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