“मजदूर प्रेम” से लबरेज “मजदूरों के मसीहा” जान ले और दे भी सकते हैं, भावना समझें

AJ डेस्क: साहब- यह अपने लिए थोड़ी न कुछ करते हैं। यह तो बेबस, लाचार “मजदूर वर्ग” के लिए जान देने और लेने तक पर उतारू हो जाते हैं। जरा इनकी भावना को भी समझने की जरूरत है।मजदूर हित मे छिड़ी जंग में कहीं आगजनी हो जाए, पथराव हो, विधि व्यवस्था ध्वस्त हो जाए तो भला इनका क्या दोष।

 

 

कोयलांचल का यह पुराना इतिहास रहा है। दशकों से यहां मजदूर हित की लड़ाई लड़ते रही जाती है। कोयलांचल की धरती इस जंग से लाल भी होते रही है। लेकिन अपने को मजदूरों का मसीहा मानने वालों की यह जंग तबसे अब तक निर्बाध जारी है।

 

 

साहब,कोई क्यों नही समझता कि यह दो गुटों के बीच वर्चस्व की लड़ाई नही है। यह तो विशुद्ध रूप से मसीहा के दिल मे मजदूरों के लिए उमड़ घुमड़ रही प्यार है। बेचारे मजदूर प्रेमी मेहनतकश मजदूर भाईयों के हित की चिंता करते करते दुबला कर कांटा होते जा रहे हैं, उनके चेहरे की चमक खत्म होते जा रही है। इधर लोग इसे वर्चस्व की लड़ाई की संज्ञा —-।

 

 

हाइवा जला, राष्ट्रीय ऊर्जा कोयला की आपूर्ति नही हो पा रही, समर्थक भिड़ रहे हैं,किसी का माथा फूटता है तो किसी का हाथ पैर टूटता है। कहीं गोली, बम चलते हैं। अरे, इन सब कृत्यों से भला मजदूरों के मसीहा को क्या लेना देना। ऐसा थोड़ी न है कि वह ड्राइंग रूम में बैठ कर अपने भाड़े के —–से यह सब हैं।

 

 

 

 

 

 

मजदूर हित की हालिया लड़ाई को ही उदाहरण बना लें। सुर्खियों में है यह खबर। साहब, रेलवे साइडिंग तक कोयला ट्रांसपोर्टिंग बन्द करने या चालू करने का मामला तो कम्पनी का है। फिर इस मुद्दे पर जंग क्यों। वह कौन मजदूर प्रेमी है जो ट्रांसपोर्टिंग ट्रांसपोर्टिंग का खेल खेल रहा है। कोयला ट्रांसपोर्टिंग के खेल का कहीं वह भी खिलाड़ी तो नही। अरे, नही साहब, ऐसा तो नही होना चाहिए। दूसरा पक्ष चाहता है ट्रांसपोर्टिंग शुरू हो कि उनके मजदूरों का पेट भरे, वह थोड़ी न अपना पेट भरना चाहते हैं। यह मजदूर प्रेम नही तो और क्या है।

 

 

बेचारे,मजदूर हित की लड़ाई लड़ते लड़ते कितना कुछ खो गए। कितना त्याग करना पड़ा है इन मसीहा लोगों को। नही विश्वास है तो साहब मजदूरों की शानदार जीवन शैली, बंगला और ठाठ बाट देख लें और इन बेचारे मजदूरों के मसीहा कहलाने वालों की लाइफ स्टाइल देख लें। बस, यहीं सब फर्क समझ आ जाएगा। बेचारे मजदूर हित की सोचने वालों के हित मे कोई नही सोचता। उल्टे कहा जाता है वर्चस्व की लड़ाई, शोषण का जरिया, धन कमाने का फार्मूला वगैरह वगैरह—–। जबकि दया के, सहानुभुति के पात्र हैं यह मजदूर के मसीहा——।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »