झारखंड बनते ही राज्य से पलायन करने वाला पहला उद्योगपति भी धनबाद का ही था

AJ डेस्क: लगभग बाइस वर्षों के बाद एक बार पुनः किसी के कथित रूप से झारखण्ड छोड़ने की बात उठी है। बिहार से अलग होकर जब झारखंड बना था, तब धनबाद के उद्योगपति अशोक जालान रंगदारी के कारण धनबाद से बोड़िया बिस्तर समेट लिए थे।

 

 

झारखंड राज्य का गठन हुआ ही था कि धनबाद के जाने माने उद्योगपति अशोक जालान का अपहरण हो गया था। नवसृजित झारखंड का यह पहला अपहरण कांड था, उस वक्त बाबूलाल मरांडी झारखंड के मुख्यमंत्री थे। अशोक जालान कई दिनों के बाद अपहरणकर्ताओं के चंगुल से मुक्त होकर अपने घर धनबाद लौट पाए थे। उस वक्त भीतरखाने में इस बात की जोरदार चर्चा हुई थी कि सरकारी तंत्र ने नही बल्कि फिरौती देने के बाद ही उद्योगपति मुक्त हो पाए थे।

 

 

इस घटना के बाद उद्योगपति अशोक जालान ने भूली स्थित अपनी फैक्ट्री और घर मकान बेचकर धनबाद छोड़ने का निर्णय ले लिया था और अंततः अशोक जालान रंगदारी कहें या अपराधिक वारदात के कारण झारखंड छोड़ने वाले पहले उद्योगपति थे। यहां बता दें कि आज धनबाद में जिस भूखंड पर सिटी सेंटर नजर आ रहा है, वहां कभी “जालान हाउस” हुआ करता था। जालान हाउस से उस सड़क और चौराहे की पहचान हुआ करती थी।

 

 

चर्चा पलायन की छिड़ी है। शहर या राज्य छोड़ने की बात हो रही है। विधि व्यवस्था पर सवाल उठाया जा रहा है। प्रशासनिक अधिकारी से लेकर सूबे के मुखिया तक को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। राज बाबूलाल मरांडी जी का रहा हो या हेमंत सोरेन जी का। अपराधी तो अपराधी हैं, यह कल भी सक्रिय थे आज भी सक्रिय हैं। इन्हें किसी पार्टी या किसी की सरकार से कोई लेना देना नही है, कहते हैं इनकी जाति ही अलग होती है।

 

 

धनबाद के जाने माने सर्जन डॉक्टर समीर कुमार को रंगदारी के लिए धमकी मिल रही है। रंगदारी के लिए बार बार फोन आने से स्वाभाविक रूप से कोई भी सभ्य आदमी मानसिक तनाव में आ जाएगा या भयभीत हो जाएगा। यह तो डॉक्टर समीर ही बेहतर बता सकते हैं कि उन्होंने धनबाद हमेशा के लिए छोड़ने का निर्णय ले लिया है या वर्तमान परिस्थितियों से अजीज आकर उन्होंने ऐसा कुछ कहा है। इस बयान के पीछे वजह कुछ भी हो लेकिन अब यह “मुद्दा” बन चुका है। सरकार को घेरने का प्रयास शुरू हो चुका है। प्रशासन पर हमला तेज कर दिया गया है।

 

 

झारखंड के दो दशक की यात्रा में केवल धनबाद कई अपहरण, रंगदारी, दिग्गजों की हत्या का गवाह बन चुका है। पहले भी कई डॉक्टर से रंगदारी की मांग खबरों की सुर्खियां बन चुका है। वारदात होते रहे हैं, हाय तौबा मचती है। समयानुसार अलग अलग पार्टियां राजनीति कर लेती हैं लेकिन इस “नासूर” के स्थाई इलाज के दिशा में किसी वर्ग या किसी स्तर पर गंभीर पहल करते नहीं देखा गया। समाज का हर वर्ग तंत्र के साथ मिलकर शुरुआती दौर में ही अपराधियों का “फन” कुचलने का प्रयास क्यों नही करते। अपराधी को सरंक्षण देने वालों के ही खिलाफ आवाज क्यों नही बुलंद होता। यह लम्बी बहस है। सबका नजरिया अलग है तो चश्मे का रंग भी जुदा है। धनबाद में अमन चैन का वातावरण बनाना है तो सिर्फ प्रशासन के कंधे पर जिम्मेवारी की गठरी थोपने से बेहतर होगा, सभी को अपनी जिम्मेवारी समझनी होगी।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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