भक्तों के हित के लिए ही लेते हैं प्रभु अवतार- प्रताप चंद्र गोस्वामी

AJ डेस्क: धनबाद के पुराना बाजार स्थित श्री शम्भू धर्मशाला में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन मारवाड़ी युवा मंच धनबाद शाखा और श्री राधा बल्लभ सत्संग समिति द्वारा किया जा रहा है। कथा में बड़ी संख्या में लोगों का आगमन हो रहा है। भागवत कथा, ज्ञान व यज्ञ होने से पूरे कस्बे में भक्तिमय माहौल बना हुआ है।

 

 

चौथे दिन की भागवत कथा का शुभारंभ करते हुए पूज्य श्रीहित प्रताप चंद्र गोस्वामी जी ने कहा- “श्रीमद् भागवत कथा में लिखें मंत्र और श्लोक केवल भगवान की आराधना और उनके चरित्र का वर्णन ही नहीं है। श्रीमद्भागवत की कथा में वह सारे तत्व हैं जिनके माध्यम से जीव अपना तो कल्याण कर ही सकता है साथ में अपने से जुड़े हुए लोगों का भी कल्याण करता है। जीवन में व्यक्ति को अवश्य ही भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए। बिना आमंत्रण के भी अगर कहीं भागवत कथा हो रही है तो वहां अवश्य जाना चाहिए। इससे जीव का कल्याण ही होता है। अपना अमूल्य समय व्यर्थ न करें और अभी से प्रभु नाम जाप करें।”

 

 

कथावाचक गुरुदेव जी ने गुरु के संबंध में कहा कि गुरु का परिचय उनका भेष नहीं होता है। उनका तो मुख्य भेष उनका गुण होता है। आज के समय में वास्तविक गुरु की पहचान करना कठिन हो गया है। गुरु में सहनशीलता, करुणा, सबको अपना मानना, किसी से शत्रुता ना रखना, निष्कामता एवं परोपकारी होना ही गुरु की असली पहचान है। कभी भी गुरु की प्रतिष्ठा या प्रसिद्धि को देखकर गुरु न बनाये अपितु उनके गुणों को देखें। सच्चा गुरु आपको भगवान के चरणकमलों तक पहुंचा कर उनका साक्षात्कार करा देता है। वहीं केवल नामी गुरु संसार के मायाजाल में ही आपको उलझा देगा। गुरु की पहचान होना आवश्यक है, क्योंकि वही तो आपका मार्गदर्शन करते है। कई बार कहा जाता है कि “पानी पियो छान के, गुरु बनाओ जांच के” क्योंकि सच्चा संत ही आपको सदमार्ग और ईश्वर से प्रेम करना सिखा सकता है।

 

 

उन्होंने आगे कहा कि हमारे यहां संतो को “स्वामी” कहने की परंपरा है। उनके पास धन वैभव नहीं होता फिर भी उनको स्वामी क्यों कहा जाता है? और जिसके पास करोड़ों रुपए होते हैं फिर भी उसे स्वामी क्यों नहीं बोलते ? इसका एकमात्र कारण यह है कि स्वामी केवल उन्हें ही बोला जाता है जिसने अपनी इंद्रियों को संयम में कर रखा हो। जिसका मन चंचल नहीं होता। जिसकी इंद्रिया इधर-उधर नहीं भटकती। इसलिए हमारी संस्कृति में संतो को “स्वामी” कहकर संबोधित किया जाता है।

 

 

भगवान के अवतारों के विषय मे बताते हुए कहा कि श्री राम और श्री कृष्ण साक्षात अवतार थे। पूर्णावतार, अंशावतार, विशेष अवतार, और नित्यावतार। ये पांच प्रकार के अवतार होते हैं। इनके प्रकट होने के अलग-अलग कारण होते हैं। भगवान या तो धर्म की पुन: स्थापना के लिए या धर्म पर आघात करने वालों के मूलोच्छेद के लिए अवतार लेते हैं अथवा भक्त की भक्ति से अभिभूत होकर दर्शन देकर उसका कल्याण करने के लिए अवतरित होते हैं। कुछ शंकालु लोग कहते हैं कि भगवान श्री राम और श्री कृष्ण अवतार नहीं, महापुरुष हैं। श्री कृष्ण अवतार नहीं केवल योगीराज हैं। जबकि भगवान कृष्ण ने गीता में स्वयं कहा कि- “मैं ही भगवान हूँ।” शायद ही किसी अन्य शास्त्र या धर्म में किसी ने ऐसा कहा हो। भगवान के भजन तथा मानवोचित सत्कर्म करते रहने में ही हमारा कल्याण है। तर्क-वितर्क से तो बुद्धि भ्रम ही पैदा होता है। अत: दृढ़ विश्वास, दृढ़ निष्ठा ही कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। अवतारों का कारण जीवन में भगवान के प्रति निष्ठा भक्ति सिद्घ करना है और जो इन अवतारों की कथा श्रवण करता है उनके सारे पाप सब दूर हो जाते है। वह जन्म बंधन के सारे कष्टों से मुक्त हो जाता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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