मजबूत इच्छाशक्ति को सलाम: ब्रिटेन की “डायना अवार्ड” के लिए झारखण्ड की चंपा चयनित

AJ डेस्क: साकारात्मक सोच और प्रवल इच्छा शक्ती के सहारे जो लोग लक्ष्य की और बढ़ते है, वैसे लोग संघर्ष की हर बाधाओं को पारकर जीवन में मनोवांछित सफलता हासिल कर समाज में नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्त्रोत बनजाते है। बिट्रेन सरकार के प्रतिस्ठित डायना एवार्ड के लिए चयनित झारखंड की बेटी चंपा कुमारी ने भी महज 13 वर्ष की उम्र में कई बालविवाह रूकवाकर समाज के समक्ष एक ऐसा ही उदाहरण पेश किया है। हलाकि चंपा कि माने तो डायना एवार्ड उसके लिए महज एक पड़ाव है। विश्व पटल पर भारत का मान-सम्मान बढ़ाने के लिए उसे आगे अभी बहुत कुछ करना है।

 

 

गिरिड़ीह जिले में विकास को लेकर तीसरी दुनिया के नाम से चर्चित गांवा प्रखण्ड के जामदार गांव की चंपा कुमारी 2016 से अपने पिता महेन्द्र ठाकुर और माता बसंती देवी के साथ अबरख की खादान में ढ़िबरा चुनकर परिवार चलाने में आर्थिक मदद करती थी। लेकिन बचपन से ही वह पढ़ायी कर समाज के लिए कुछ करने की चाहत रखती थी। लेकिन आर्थिक तंगी के कारण यह संभव नहीं था। वर्ष 2016 में एक दिन नोवेल पुरूस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी की संस्था चिलड्रेसं फाउडेंशन की तरफ से गांवा में बचपन बचाओं अंदोलन को लेकर रैली निकाली गई थी। उस दौरान चंपा हिन्दी भी बोलना नही जानती थी। ढ़िबरा चुनने के क्रम में चंपा ने रैली के बारे में लोगो से पूछा तो उसे जानकारी हुई कि जो बच्चे बालश्रम करते है और बचपन में ही घरवाले उनकी शादी तक कर देते है। वैसे बच्चों को संस्था अपने खर्चे से स्कूल में पढ़ाती है।

 

 

 

यह सुनकर चंपा को लगा कि उसकी मंजिल करीब है। चंपा के बालमन की प्रतिभा बाहर आने के लिए मचलने लगी। भागकर 8 साल की चंपा रैली की लाईन से जूड़ गई। शाम को घर वापस लौटी तो पिता ने उसे फटकारा, पिता ने कहा कि यह सब हम गरीबों के लिए नही है। दूसरे दिन चंपा ने खूद से संस्था के लोगो के पास जाकर पढ़ने की इच्छा जतायी और यह भी बताया की पिता उसके स्कूल भेजने के खिलाफ है। संस्था के प्रतिनिधि चंपा के घर जाकर पिता को काफी समझाया, लेकिन पिता ने कहा हम बेटियों को नही पढ़ाते है। इसपर चंपा ने सबके सामने लोकभाषा में एक गीत गाया। जिसके बोल थें- ‘काहे पापा कयले दूरंगी नीति, बेटा पढ़ावे खातिर खेत बाड़ी बेचले, और बेटियों से घर में झाडू लगवावे…।’ बेटी के इस गीत को सुनकर पिता का मनभर आया और बेटी को स्कूल भेजने के लिए राजी हो गए। सस्थां के लोगो ने अपने खर्चे से गाँव की स्कूल में तीन भाई बहनों का दाखिला दिलवाया। साथ हि चंपा गांव में कैलाश सत्यार्थ की संस्था चिलड्रेसं फाउडेंशन बाल पंचायत की सदस्य बनी।

 

 

 

कुछ ही दिनों में वह अपने काम के बलपर जिला बाल पंचायत की मुखिया बनी। फीर प्रदेश प्रमुख बनी। वर्तमान में नेशनल चिलड्रेसं फाउडेशन की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है चंपा। चंपा कुमारी ने महज चार पांच वर्षो में गांव में सामाजिक बदलाव लाने की दिशा में कई उल्लेखनीय कार्य किए। चंपा ने कहा कि दो बाल विवाह रोकने में उसने कड़ी मेहनत की इस दौरान अपने एवं परायो का आक्रोश भी उसे झेलना पड़ा, लेकिन उसने कभी हिम्मत नही हारी और संस्था की मदद से उसे उस काम में सफलता मिली।

 

 

 

 

गांव में बच्चों के बीच शिक्षा, सुरक्षा, और स्वच्छता को लेकर चंपा ने जागरूकता लाने का काम किया। परिणामस्वरूप उसका गांव जामदार बाल मित्र गांव में तब्दील हो गया। चंपा के मुताविक ’21वीं सदी में भी बाल विवाह और बाल श्रम जैसी कुरीतियां हमारे समाज में किसी कंलक से कम नही है।’ बाल विवाह, बाल श्रम जैसे सामाजिक कुरुतियों को लेकर अपनी बातों को धाराप्रवाह मजबूती से रखने में सक्षम चंपा कुमारी झारखण्ड के सीएम रघुवर दास के साथ मंच साझा कर लोगों को भी प्रभावित कर चुकी है।

 

 

अपने भविष्य को लेकर आत्मविश्वास से भरी चंपा का कहना है कि ‘अभी सिर्फ उसे पढ़ना है। पढ़ाई के अलावा रोजाना तीन घंटे घर में ही अबरख तरासने का काम कर वो सौ रूपये तक की रोज किमाई भी कर लेती है। जिससे उसकी पढ़ाई का खर्च निकल जाता है।’ चंपा का कहना है कि ‘उसका मकसद हर गाव में चंपा पैदा करना है। ताकि अन्य भाई बहनों को बालश्रम, बाल विवाह जैसी कुरीतियों के आगे झुकना न पड़े और इससे उसका उसका भविष्य किसी अँधेरे में न डूब जाए। जीवन में संधर्ष और सफलता आगे पिछे चलने का क्रम है। ऐसे में सामाजिक बदलाव लाना ही उसकी प्राथमिकता है।’

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Article पसंद आया तो इसे अभी शेयर करें!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »