आखिर स्पेशल टीम ने धनबाद जेल में संजीव का सेल क्यों खंगाला?
AJ डेस्क: नीरज सिंह सहित चार लोगों की हत्या के आरोप में ढाई वर्षों से सलाखों के पीछे कैद संजीव सिंह के सेल को खंगालने के लिए मुख्यालय की स्पेशल टीम को धनबाद जेल क्यों आना पड़ा। छापामारी को गोपनीय रखने के बाद भी स्पेशल टीम के हाथ कुछ भी कैसे नही लगी। जब मुख्यालय ने नीरज हत्याकांड के आरोप में जेल में बन्द बंदियों का वार्ड खंगाल ही लिया तो CCTV जाँच के दायरे से बाहर कैसे रह गया।
रांची मुख्यालय ने एक विशेष टीम का गठन कर देर रात में धनबाद जेल के भीतर संजीव सिंह का सेल खंगलवा दिया। यही नही इस विशेष टीम ने नीरज हत्याकांड के आरोप में जेल में बन्द अन्य बंदियों के वार्ड की भी तलाशी ले ली। जेल प्रशासन का कहना है कि यह रूटीन जाँच था। जाँच के दौरान टीम के हाथ कुछ भी नही लगा।
धनबाद जेल के भीतर से रंगदारी वसूली, सल्तनत का संचालन, गुर्गों को दिशा निर्देश, कोई नई बात नही है।समय समय पर इस तरह की शिकायतें जिला प्रशासन को मिलते भी रही हैं। कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि जेल में बन्द अपराधी के द्वारा मोबाइल फोन से बाहर किसी को धमकाने और रंगदारी की मांग से सम्बंधित ऑडियो क्लिप भी प्रशासन के हाथ लगी है। प्रशासन इन समस्याओं से निबटने के लिए ही शायद कुख्यात अपराधियो (बंदियों) को राज्य के दूसरे जेलों में भेजवाते रहता है।
अब यहां सवाल उठता है कि जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन की तरह जेल प्रशासन भी है जिसे जेल के विधि व्यवस्था का संचालन करना है। फिर भी आए दिन जिला प्रशासन को आखिर क्यूँ जेल के भीतर जाकर खंगालना पड़ता है। मुख्यालय को विशेष टीम बनाकर क्यों रेड कराना पड़ता है।
जेल में लगे CCTV कैमरे का फुटेज ही खंगाल दिया जाए तो कई कमियां सामने आ जाएंगी। आखिर कुछ खास बन्दी कैसे और क्यों जेल के कार्यालय में दिन भर जमे रहते हैं। जेल के नियमों को ताक पर रख कर वैसे बन्दी हमेशा बाहरी लोगों से कैसे मिल लेते हैं। सरकारी कार्यालय हो या थाना, सभी जगह CCTV कैमरा लगवाने का एक ही मकसद है काम में पारदर्शिता। जेल कार्यालय भी CCTV कैमरे के जद में होना चाहिए।
खास बंदियों के लिए भी सप्ताह में एक दिन और अवधि तय होती है। यदि जेल कार्यालय में CCTV कैमरे लगे होंगे तो CCTV के फुटेज ही कहानी बयां कर देंगे कि यहां नियमों की धज्जियां कैसे उड़ती हैं। बाहरी लोगों से मिलने के लिए जेल प्रशासन ने अलग व्यवस्था कर रखा है। जहाँ बन्दी और मुलाकाती के बीच एक फासला होता है। यह व्यवस्था धनबाद जेल में भी है लेकिन साधारण, लाचार बंदियों के लिए। सक्षम, पावरफुल बन्दी मेन गेट के दाहिने के बगल वाले कार्यालय में खिड़की के पास कुर्सी लगाकर आराम से बैठते हैं और मुलाकातियों के साथ उनका दरबार चलता रहता है। कोई वी आई पी आ गया तो उसे भीतर भी बुला लिया जाता है। इन बातों का प्रमाण जेल में यदि CCTV लगे हों तो वही खुद देंगे। इन वजनदार बंदियों के लिए कोई दिन और समय निर्धारित नही है। इनका दरबार बदस्तूर लगता है और वहां से सल्तनत चल रहा है।
जिला या जेल प्रशासन अपनी खामियों पर पर्दा डाल शिथिल रहती है तो चुनाव के वक्त उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
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