गए थे सफेद चोला धारण करने, काला कारोबार में लौट आए, क्या “राय” है
AJ डेस्क: दशकों से काले हीरे की लूट मचाने के बाद सियरा गया था रंग बदलने। काले हीरे के खेल में अभी हाल ही में प्रशासन ने उसके खिलाफ एक और जन्म कुंडली लिख डाली थी। कुंडली के मुताबिक इस घाघ पर राहु केतु का प्रकोप है ही, शनिचर भी वक्र दृष्टि बनाए हुए हैं। जी टी रोड पर दशकों से काले हीरे के धंधे पर वर्चस्व जमाए रखने वाले इस धंधेबाज को लगा,अब चोला बदलना चाहिए। सो, वह पहुंच गया “बाबा” के दरबार में।
बाबा को भी लक्ष्मी पुत्र की जरूरत थी। लोग क्या कहेंगे कि चिंता छोड़ बाबा भी सार्वजनिक मंच पर इस काले धंधेबाज के साथ दे दनादन फोटू खिंचवा लिए। काले हीरे के काले खेल का सरताज रातों रात सफेद चोला डाल नेता बन गया। बनता भी कैसे नही। किसी भी शुभ कार्य की शुरुवात “गणपति” बाबा की पूजा आराधना के साथ शुरू किये जाने पर मंगल होता है। तो फिर इस धंधेबाज ने तो गणपति के सहारे ही राजनीतिक क्षेत्र में कदम रखा था। इसे किसी बड़े ज्ञाता से राय लेकर ही कोई कदम उठाना था, यह भूल गया कि प्रशासन ने जो कुंडली बनाया है उसमें ग्रह बैठे हुए हैं। अब लोग यह नही समझ पा रहे कि बाबा की कुंडली अचानक क्यों बिगड़ गयी।
धंधेबाज को पार्टी में शामिल कराने पर उसका ग्रह कहीं बाबा को तो नही डैमेज कर दिया। राय के बगैर राय का खेल बिगड़ गया। अब बाबा ही नही रहे। अनुभवी कहते हैं कि हल्का फुल्का काला धब्बा साफ हो भी सकता है लेकिन काला ही काला सफेद कैसे हो सकता है। यह राय किसी ने दी तो प्रबन्धक महोदय वापस अपनी पुरानी दुनिया में ही लौटना बेहतर समझे। चौबे जी गए थे छबे बनने, दुबे बनकर लौट आए। अब इनका काला हीरे का धंधा फिर से फलने फूलने लगा है। आपकी क्या “राय” है मैनेजर साहब।
मिठाई खिलाओ, गले मिलो, साथ मांगो- अरे, देखो दिल मिल रहा है कि नही——
चुनावीसीजन है। घर घर जाना ही पड़ता है। हर्ज भी क्या है, यही एक महीना न। फिर पांच साल कौन पूछता है। आज मिठाई खाने वाले, मान मनौव्वल कराने वाले तो कल खुद दौड़ेंगे या फिर पांच वर्षों के लिए हाशिये पर चले ही जाएंगे।
एक “मौसा” जी हैं। राजनीति, कूटनीति पर गजब की पकड़ है भले वोटर पर न हो। मौसा जी दरबार के “भगीना” के साथ मिलकर चुनावी मोर्चा संभाल लिए हैं। चुनाव जीताने में अहम भूमिका निभाने वाले भगीना भले ही अपने सहोदर को मुखिया तक की चुनाव नही जितवा सकते फिर भी गजब का इनका क्षेत्र पर पकड़ है। मौसा जी की रणनीति का एक पार्ट। रूठे, दूर हुए या मैदान में ताल ठोकने वालों के यहां चलो। उन्हें मिठाई खिलाओ। गले मिलो। इस बार गिला शिकवा दूर करने की विनती तो नही आदेश जारी करो। फिर इस तरह की गलती नही होगी, चुनावी आश्वासन दो। अरे हम नहीं न थे, नही तो ऐसा होता ही नही- रटा रटाया जुमला पढ़ो। (यह सभी जानते हैं चुनाव बाद आप फिर नही रहेंगे)। प्रयास सही है लगे रहो लेकिन यह न भूलें कि सभी समझने लगे हैं। फिर यह भी देख लें कि गला मिलने वाले दिल से भी मिले हैं कि नहीं।
और अंत में– “यहां सब शांति शांति है—”
महापर्वका मौसम है। न तो बाघ दहाड़ रहा है न टाइगर घुरघुरा रहा है। गजब की शांति है। प्रशासन ने कह क्या दिया कि उस क्षेत्र पर विशेष नजर होगी। कड़ी व्यवस्था होगी, अचानक “राम राज” स्थापित हो गया। जहां रोज टाइगर नया नया विवाद खड़ा करा सुर्ख़ियों में रहता था, वहां सब शांति शांति है। काश वहां उस क्षेत्र में हमेशा महापर्व ही होते रहता।
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