धन बल ही तो सहारा, जमकर बंट रहे नोट (अंदर है और भी रोचक सामग्री)

AJ डेस्क: कोयलांचल यानि काले हीरे की नगरी। फिर साहब (प्रशासन) क्यूँ उम्मीद करते हैं कि लोक तंत्र के इस पर्व में “धन की बारिश” नही होगी। और फिर यह धन कहाँ खून पसीना बहाकर इकट्ठा किया हुआ है। इसी काले हीरे के कारोबार से वसूला हुआ ही तो धन है। वसूली में तो सभी साझेदार हैं। हाँ, साझेदारी में ही बात बिगड़ती है तो बम, गोली के आवाज से कोयलांचल थर्राता रहता है। बात चल रही है चुनाव में धन बारिश की। यह तो पिछले दस बारह दिनों से हो रहा है। कोयलांचल के कुछ खास प्रत्याशियों के बीच तो धन लक्ष्मी की बारिश कराने की होड़ सी मची हुई है। अभी नामांकन की प्रक्रिया तक शुरू नही हुई है लेकिन यहाँ इंतजार कौन करता है। शुरुआती फेज में धन बल के आधार पर जमकर जोड़ तोड़ का खेल खेला जा रहा है। परिवार बड़ा हो तो लोग अलग अलग खेमा में बंट दोनों हाथ धन बटोरने का काम कर रहे हैं। प्रशासन वही घिसा पीटा रूप रेखा अपनाए हुए है। जनाब थोड़ा मेन रोड छोड़कर लिंक रोड पर भी त्रिनेत्र खोलें। कोयलांचल में रोज लाखों का वारा न्यारा हो रहा है। फिर आपकी उपलब्धि लाख दो लाख नही उससे भी मोटी राशि की होगी। प्रथम फेज में तो धन बल का खेल चल रहा है। दंगल में उतरे पहलवानों के बीच अभी ही क़ानूनी डंडा का भय पैदा नही करेंगे तो सेकेण्ड फेज में जन बल यानि शूटर, क्रिमनल, पेशेवर अपराधियो का आवक शुरू हो जाएगा और फिर आप हाथ पर हाथ धरे बैठे रह जाएंगे। करोड़ों अरबों का लेखा जोखा वाले लाख दो लाख का कागज चुटकी बजाते पेश कर देंगे तो हाकिम आप इस खेल में धन लूटा कर चुनाव और आचार संहिता का मखौल उड़ाने वाले को कैसे मात देंगे, सोच लें, क्योंकि चुनावी मौसम के जानकारों का पूर्वानुमान है कि अभी लक्ष्मी का बादल छाया रहेगा और धन बल की जमकर बारिश होते रहेगी।

 

 

नाजुक “कमल” ने ठुकराया तो “तीर” भी चुभ रहा

नेता जी परेशान हैं, करें तो क्या करें। पावर में था तो जमकर काला हीरा-काला हीरा खेला। कमल भी कोमल था। अच्छा खासा सब ठीक चल रहा था, न जाने किसकी नजर लग गयी। कमल हाथों से छिटक गया और वह दलदल रूपी कीचड़ में फंस गए। जितना हाथ पैर मार रहे हैं दलदल में धँसते ही जा रहे हैं। नेता जी वरीय नागरिक हैं। पुराने सम्बन्ध को भुनाया और तीर धनुष पर सवार हो गए लेकिन अरे यह क्या तीर धनुष तो चुभने लगा। जल्दबाजी में वह नही सोच पाए थे कि यह कोमल कमल नही चुभने और जख्म देने वाला तीर धनुष है। नई पार्टी के भीतर ही भूचाल आ गया है। जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ रहा है जो बाद में भीतरघात का रूप ले लेगा। अब नेता जी को अपने लिए नही बल्कि नाती पोता के लिए सब सहना पड़ेगा ताकि वह धनुष के छत्रछाया में काले हीरे का कारोबार कर सकें। भले ही क्षेत्र के चौधरी नाराज हो जाएं। वरीय नागरिक अब कोमल के चक्कर में समय गवां नही सकते भले ही तीर के जख्म से वह दिल ही दिल में लहू लुहान होते रहें।

 

 

और अंत में– अरे कोर्ट कम्प्लेन और रेड के बीच कोई सम्बन्ध नहीं

कौन समझाए कि जेल प्रशासन की शिकायत कोर्ट में किए जाने और पुनः उसी रात जेल में रेड पड़ने की कार्रवाई के बीच कोई सम्बन्ध नही है। यह दोनों संयोग मात्र हैं। परंतु अब तो यह तय माना जा रहा है कि कोई भी प्रेशर का कोई खेल खेल ले। कम से कम पूरे चुनाव उसे राहत या छूट मिलने नही जा रहा। यहीं तो गेम फंस जा रहा है। जन सम्पर्क बढ़ाने के ही टाइम इस सुविधा से वंचित किया जा रहा है। यह कहीं विरोधी गुट की साजिश तो नहीं। अमूमन लोग ऐसा ही कहते हैं और मानते हैं। विधाता ने जो तय कर दिया है, होगा तो वही। फिर ज्यादा हाथ पैर मारने का मतलब ही क्या है। फिर चंगु मंगु हैं न। सब कुछ “आल इज वेल” ही होगा।

 

 

 

 

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