TSRDS: एम आर ए कैम्प से होटल ताज और दुबई के शेरेटन तक की यात्रा पंकज ने पूरी की

AJ डेस्क: गरीबी में घुला बचपन एक बेजान भविष्य के लिए आदर्श माहौल माना जाता है। भारत में जीवन जिन सपनों को संजोती है, गरीबी उन्हीं को छिन्न-भिन्न कर देती है। ये कहानी भी एक ऐसे ही बच्चे की है। जिसके सपने भी इसी तरह के एक अंधेरे में कहीं गुम हो चुका था, लेकिन अब 27 वर्ष का हो चुका वो बच्चा आज दुबई में शेरेटन ग्रांड होटल में शेफ के रूप में काम कर रहा है और अच्छी खासी कमाई भी कर रहा है।

 

 

पिंकू कुमार ने कौशल विकास के साथ अपने जीवन को बेहतर बनाने का दृढ़ संकल्प लिया। डिफेंस ट्रायल्स में कई असफल प्रयासों के साथ-साथ पिंकू के लिए जीवन की दौड़ और अधिक कठिन होती गई। एक बड़े संयुक्त परिवार में जन्मे पिंकू का परिवार किसी प्रकार जीवन यापन कर रहा था। पिंकू ने धनबाद स्थित जामाडोबा के नुनिकडीह बस्ती में अपने पिता के नाश्ते की दुकान में मदद करना शुरू किया। क्योंकि इससे ज्यादा करने के लिए उसके पास कुछ नहीं था। फिर भी पिंकू के अंदर गाँव में सार्वजनिक कार्यक्रमों में खाना बनाकर समुदाय की मदद करने का एक जज्बा था और खाना बनाना सीखने की ओर उसका विशेष झुकाव।

 

 

2012 में पिंकू को टाटा स्टील रूरल डेवलपमेंट सोसाइटी (टीएसआरडीएस) द्वारा आयोजित एक मोरल री-आर्मामेंट (एमआरए) कैंप के लिए चुना गया। जामाडोबा क्षेत्र से चुने गए 50 युवाओं में से पिंकू भी एक थे। एमआरए शिविर में पिंकू की सक्रिय भागीदारी उसे प्रशिक्षण शिविर के लिए पंचगनी ले गई। पिंकू के खाना बनाने के जुनून से प्रभावित होकर उन्हें 2012 में टीएसआरडीएस द्वारा शेफ ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए ओडिशा के गोपालपुर भेजा गया। पिंकू ने इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। सूरत, गुजरात (भारत) के होटल ताज से लेकर शेरेटन ग्रांड होटल, दुबई (यूएई) में काम करने तक, पिंकू ने खुद के लिए एक बेहतर कल का निर्माण किया।

 

 

 

आज, पिंकू दुबई में शेफ के रूप में काम कर प्रति माह लगभग 50 हजार रुपये कमाता है। नुनिकडीह में अपने परिवार के लिए घर बनाने के अलावा पिंकू एक किराने की दुकान के साथ अपने बड़े भाई की भी मदद करता है। जो पिंकू के परिवार को बहुत आवश्यक वित्तीय सहायता प्रदान करता है।

 

 

पुरानी यादों को ताजा करते हुए पिंकू कहते हैं, “डिफेंस ट्रायल्स में निराशा के बाद मैंने लगभग हार मान लिया था, लेकिन जमशेदपुर के एक एमआरए प्रशिक्षण सत्र में मैंने महसूस किया कि सही सीखा गया कौशल आपको स्थान दिला सकता है। मैं अपने समग्र विकास और मेरे ऊपर दिखाए गए विश्वास के लिए टाटा स्टील को धन्यवाद देता हूं।”

 

 

 

 

यह पुरानी लोकोक्ति है कि ‘जहां चाह, वहां राह’ और जामाडोबा से दुबई तक पिंकू कुमार की यात्रा जीवन में कुछ हासिल करने की इच्छा का एक आदर्श उदाहरण है।

 

 

 

 

 

 

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