बर्थडे विशेष : ऑक्सफोर्ड की पढ़ाई छोड़ राजनीति में आई थीं इंदिरा, जानें उनके जीवन के अनसुने किस्से

AJ डेस्क: भारतीय राजनीति में महिला नेतृत्व की सूची में इंदिरा गांधी का नाम शीर्ष पर आता है। भारत के चांद पर पहुंचने की बात हो या परमाणु शक्ति बनने की बात, पंजाब में फैले उग्रवाद को उखाड़ फेंकने के लिए ऑपरेशल ब्लू स्टार चलाने की बात हो या फिर पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर देने की बात… इंदिरा गांधी का नाम बड़े महत्व के साथ लिया जाता रहा है। हालांकि 1975 में देश ने ​आपातकाल का जो बुरा दौर देखा था, उसके लिए भी इंदिरा को याद किया जाता है।

 

 

इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के घर हुआ था। आज यानि 19 नवंबर 2020 को उनकी 103वीं जयंती मनाई जा रही हैं। उनके जन्म से लेकर राजनीतिक जीवन तक इंदिरा गांधी की ऐसी कई सारी कहानियां रही हैं, जिनके बारे में लोग कम ही जानते हैं।

 

 

टॉमबॉय की तरह रहती थीं इंदिरा-

इंदिरा गांधी की जिंदगी के कई अनसुने किस्सों का जिक्र कैथरीन फ्रैंक की​ किताब में मिलता है, जबकि सागरिका घोष ने भी अपनी किताब ‘इंदिरा: इंडियाज मोस्ट पावरफुल प्राइम मिनिस्टर’ में उनके निजी जीवन के कई किस्सों को शामिल किया है। इंदिरा का बचपन इलाहाबाद के आनंद भवन में बीता है, जिसके बारे में सागरिका ने लिखा है कि बचपन में इंदिरा गांधी एक टॉमबॉय की तरह रहा करतीं थीं।

 

 

पशु-पक्षियों से था प्यार-

इंदिरा गांधी को पशु-पक्षियों से खूब लाड-दुलार करती थीं। उन्हें कुत्तों से खूब प्यार था। उनके पास एक से ज्यादा कुत्ते होते थे। वह पक्षियों से जुड़ीं एक संस्था का नेतृत्व भी करती थीं। सागरिका घोष की किताब के मुताबिक, इंदिरा को घुड़सवारी करना, पहाड़ों पर चढ़ना, स्कीइंग करना, तैरना खूब पसंद था। अपने पिता जवाहर लाल नेहरू को गौरवान्वित महसूस कराने के लिए इंदिरा ये सब किया करती थीं।

 

 

पढ़ाई छोड़ राजनीति में प्रवेश-

इंदिरा गांधी को राजनीति विरासत में मिली थी। वह अपने पिता के नाम को खूब आगे बढ़ाना चाहती थीं। महज 21 साल की उम्र में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की पढ़ाई छोड़ वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुईं और अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की।

 

 

कविताएं और खत लिखने का शौक-

इंदिरा को खत लिखना बेहद पसंद था। तोहफे के साथ नोट लिखकर भेजना, दोस्तों को लंबी चिट्ठियां लिखना उनके शौक में शामिल रहे हैं। वह अपने दोस्तों को कविताएं भी लिखकर भेजा करती थीं। इंदिरा द्वारा पिता नेहरू को लिखी चिट्ठियां भी उन्हें करीब से जानने का जरिया हैं।

 

 

संघ को बताया था फासीवादी, पिता को लिखा था पत्र-

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इस कदर विरोध किया करती थीं कि लखनऊ में फिरोज गांधी की पत्नी रहते हुए उन्होंने अपने हिंदू समर्थित प्रयासों के जरिए संघ की छवि मटियामेट करने की कोशिश की थी। साल 1946 में इंदिरा ने पिता नेहरू को खत लिखा था। खत में कहा था कि लोग आरएसएस के ढोंगी फासीवाद के चक्कर में फंस रहे हैं। संघ लाखों लोगों को अपने साथ जोड़ते हुए अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है।

 

 

भाषण देने से पहले घबराहट-

करीब दो दशक तक देश पर शासन करने वाली इंदिरा गांधी को शुरुआत में भाषण देने से डर लगता था। सागरिका की किताब में इंदिरा के चिकित्सक रहे डॉक्टर माथुर के हवाले से लिखा गया है कि साल 1969 में जब इंदिरा को बजट पेश करना था, तब वह इतना डर गई थीं कि उनकी आवाज भी नहीं निकल रही थी। कई बार सार्वजनिक मंचों से भाषण देने से पहले उन्हें पेट खराब होने की समस्या भी हो जाती थी। उन्हें संसद में होने वाली बहस भी पसंद नहीं थी।

 

 

धर्म ​में विश्वास और पूजा का कमरा-

इंदिरा गांधी का धर्म में बहुत विश्वास था। पुत्र संजय गांधी की मौत के बाद वह अंधविश्वासी भी हो चली थीं। हालांकि इसे स्वीकार करने में वह पीछे रहती थीं। उनके घर में पूजा का जो कमरा था, वहां सर्वधर्म समभाव दिखता था। पूजा के कमर में यीशु मसीह, रामकृष्ण परमहंस, बुद्ध की तस्वीर के साथ एक शंख, दीपक, पूजा की थाली वगैरह रखी रहती थी। फिरोज खान की मृत्यु के बाद उन्होंने रामकृष्ण मिशन के एक स्वामीजी से ​दीक्षा ली थी।

 

 

कांग्रेस अध्यक्ष से प्रधानमंत्री तक का सफर-

देश की आजादी के बाद लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी का ही दौर रहा था। इंदिरा के लिए भारतीय राजनीति में प्रवेश आसान रहा था। हालांकि सक्रिय राजनीति में वह बहुत बाद में आईं। पिता नेहरू के निधन के बाद वह पूरी तरह ​सक्रिय हुईं। साल 1959 में वह कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गईं। 1966 में वह पहली बार प्रधानमंत्री बनीं और लगातार तीन पारी तक पद पर रहीं। इस बीच देश में जबरन आपातकाल लगाए जाने के लिए भी वह याद की जाती हैं। प्रधानमंत्री के रूप में उनकी चौथी पारी साल 1980 से 1984 तक यानि उनकी राजनीतिक हत्या तक रही। 31 अक्तूबर 1984 को उनकी हत्या कर दी गई थी।

 

 

 

 

 

 

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