पंचतत्व में विलीन हुए पूर्व मंत्री व कांग्रेसी नेता ओ पी लाल

AJ डेस्क: धनबाद कोयलांचल के काद्द्वार श्रमिक नेता व कांग्रेस के पूर्व विधायक ओपी लाल का पूरे राजकीय सम्मान के साथ कतरास स्थित लिलौरी स्थान के मुक्तिधाम में मुखाग्नि दी गई। सौम्य व सरल स्वभाव के ओपी लाल ने रविवार शाम करीब साढ़े छह बजे रांची रिम्स में अपनी अंतिम सांस ली थी। इससे पूर्व उनके अंतिम यात्रा में झारखंड सरकार के मंत्री बादल पत्रलेख समेत धनबाद के सांसद पीएन सिंह के अलावा कई विधायक, कांग्रेस नेता एवं भारी संख्या में उनके समर्थक शामिल हुए।

 

 

पूर्व मंत्री ओपी लाल को श्रधांजलि देने कतरास पहुचे झारखंड सरकार के मंत्री बादल पत्रलेख, सहित धनबाद के सांसद पीएन सिंह, झरिया विधायक, बाघमारा विधायक ढुलू महतो, बेरमो विधायक अनूप सिंह, पूर्व मंत्री जलेश्वर महतो, पूर्व विधायक अरूप चटर्जी, पूर्व मंत्री मन्नान मालिक, कांग्रेस जिला अध्यक्ष बजेन्द्र प्रसाद सिंह, बाघमारा डीएसपी निशा मुर्मू, श्रमिक नेता एके झा, सेफ्टी जीएम एके सिंह, पूर्व बियाडा अध्यक्ष विजय कुमार झा, रवि चौबे सहित सैकड़ो समर्थकों ने लिलौरी स्थान स्थित मुक्तिधाम में उनके अंतिम दर्शन के साथ उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किया।

 

 

 

बात दें कि सीने में दर्द की वजह से पिछले दो सप्ताह से वह रांची रिम्स में इलाजरत थे। उन्हें पहले रांची के मेडिका फिर रिम्स में इलाज के लिए भर्ती किया गया था। तीन भाइयों में सबसे बड़े ओपी लाल अपने पीछे चार पुत्र, एक पुत्री सहित नाती-पोता एवं एक छोटे भाई को पीछे छोड़ गए है।

 

 

ओपी लाल के जीवनकाल पर नजर दौड़ाए तो कठिन परिश्रम और सफलताओं की सहज अनुभूति होती है। ओपी लाल का कोयलांचल की राजनीति में अभ्युदय उस समय हुआ जब बाघमारा क्षेत्र में माफिया ताकतें हावी थीं। शुरुआती दौर में लाल सामाजिक व सांस्कृति गतिविधियों में सक्रिय रहे। इसी बीच पूर्व विधायक, पूर्व सांसद व मंत्री रहे शंकर दयाल सिंह व उनके अनुज सत्यदेव सिंह के सानिध्य में आए। उन्होंने माफिया का विरोध शुरू किया। 80 के दशक में उन पर जानलेवा हमला हुआ, वे बाल बाल बचे थे। उनको रिक्शे पर बैठाकर कतरास के लोगों ने शहर में विरोध जुलूस निकाला। इसके बाद से लाल की लोकप्रियता में दिनोंदिन बढ़ती गई। शहर में लाला भैया के नाम से वे प्रसिद्ध हो गए।

 

 

 

 

इस घटना के बाद सांसद स्व. बिदेश्वरी दूबे का इन्हें भरपूर सहयोग मिला। नतीजा सयासी गलियारे में उनकी पैठ बढ़ती गई। 1985 के विधानसभा चुनाव में पूर्व सांसद स्व. शंकर दयाल सिंह व पार्षद स्व. सत्यदेव सिंह के विरोध के बावजूद उनको बाघमारा विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी घोषित किया गया। जनता पार्टी के प्रत्याशी रघुवंश सिंह को पराजित कर लाल विजयी हुए। बिदेश्वरी दूबे का साथ मिला तो उन्होंने माफिया गढ़ को ध्वस्त कर दिया। 1990 के चुनाव में पुन: कांग्रेस प्रत्याशी घोषित हुए। तब जलेश्वर महतो को शिकस्त दी। 1995 में फिर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में लड़े और जलेश्वर को हराया। 2000 में हुए चुनाव में जलेश्वर महतो ने उन्हें पराजित कर दिया।

 

 

दलीय निष्ठा की मिसाल रहे ओपी लाल कांग्रेस के ही सिद्धांतों व विचारधारा पर चलते रहे। कभी दूसरे दल की ओर रुख नही किया। इंटक के वरीय नेता केबी सिंह कहते हैं कि कांग्रेस की नीतियों पर वे हमेशा चलते रहे। इंटक के राष्ट्रीय महामंत्री व झारखंड के अध्यक्ष रहे स्व. राजेंद्र सिंह भी उनका सम्मान करते थे। प्रदेश से लेकर केंद्र तक राजनीतिक गलियारे में इनकी मजबूत पकड़ थी। इंटक के केंद्रीय अध्यक्ष संजीवा रेड्डी से उनके मधुर संबंध थे। लाल की ट्रेड यूनियन की पारी कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के पश्चात 1973 में उन्होंने ट्रेड यूनियन से नाता जोड़ा। मटकुरिया गोली कांड के समय भी उन्होंने अपनी अहम भूमिका अदा की। उन्होंने समाज हित में 43 दिनों तक धनबाद जेल में भी बंद रहे। जिससे उनकी कोयलांचल की सक्रिय राजनीति में मौजूदगी का पता चलता है।

 

 

 

 

 

 

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