‘सुख चैन देवी’ ने अस्तुरा कैंची थाम घर का ‘सुख चैन’ वापस लाया

AJ डेस्क: शायद आपने महिला को नाई का काम करते नहीं देखा होगा, गांव में तो कभी नहीं। सब मानते हैं कि यह काम केवल पुरुष ही कर सकते हैं, लेकिन सीतामढ़ी जिले के बाजपट्टी प्रखंड के बसौल गांव की सुख चैन देवी ने इस मिथक को तोड़ दिया। लॉकडाउन में जब पति का रोजगार छिन गया तो घर के ‘सुख-चैन’ के लिए यहां की सुख चैन देवी ने खुद कैंची-उस्तरा थाम लिया। घर-घर जाकर वह लोगों के बाल-दाढ़ी काटने लगी। एक हफ्ते में उसने अपने परिवार को संभाल लिया। सुख चैन देवी ने बताया कि अगर वह ऐसा नहीं करती तो उसका पूरा परिवार भूखे मर जाता। चंडीगढ़ में कमाने गए उसके पति का लॉकडाउन में रोजगार छिन गया था। लोगों के आगे हाथ फैलाने के बजाए उसने अपने हुनर को सामने लाया।

 

 

‘लोग क्या सोचेंगे’, इस बात को मन से निकाला-

सुख चैन देवी कहती हैं कि उन्हें पता था कि नाई का काम करते देख लोग क्या कहेंगे। लोक-लाज की बातें सामने आएंगी, लेकिन ‘लोग क्या सोचेंगे’ यही डर महिलाओं को आगे नहीं बढ़ने देता। इससे दो कदम आगे बढेंगे तो चारों तरफ संभावनाएं ही नजर आएंगी। सचमुच ऐसा ही हुआ। सुख चैन देवी रातों-रात मशहूर हो गई। गांव-कस्बे से निकली उसकी कहानी देशभर की महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी।

 

 

बाल-दाढ़ी बनवाने वालों की लाइन लग गई-

लॉकडाउन के समय सुबह में ही सुख चैन देवी गांव घूमने निकल जाती। जब शाम होती तो इनके हाथ में अपनी कमाई के दो सौ से ढाई सौ रुपए होते। इससे पूरा परिवार आराम से खा-पी लेता। संकोच छोड़ कर जब सुख चैन देवी ने इस काम में कदम आगे बढ़ाया तो उनसे बाल-दाढ़ी बनवाने वालों की लाइन लग गई। गांव में उनकी इज्जत बढ़ी। जिलाधिकारी अभिलाषा शर्मा में उनका उत्साह बढ़ाया। मदद भी की। सुखचैन देवी ने बताया कि यह काम करने में उन्हें थोड़ी भी परेशानी नहीं है और न ही कोई शर्म। सरकारी योजना का लाभ मिले तो वह और बड़ी सफलता हासिल करेगी।

 

 

पति की मौत के बाद देवर को बनाया सहारा-

सुख चैन देवी की शादी बाजपट्टी के ही पथराही गोट में हुई थी। बीमारी के कारण उसके पति की मौत हो गई थी। इसके कुछ दिनों के बाद ससुराल और मायके की सहमति पर उसकी दूसरी शादी देवर रमेश से कर दी गई। इसके बाद उसका घर-परिवार ठीक से चल रहा था, लेकिन लॉकडाउन के कारण आर्थिक बोझ ने उसे जब परेशानियों में डाल दिया तो उसने नाई बनकर यह साबित कर दिया कि गांव-कस्बों की महिलाओं के बारे में यह धारणा अब बहुत पीछे छूट गई कि वे केवल चूल्हा-चौका तक सीमित हैं और घर चलाना मर्दों की जिम्मेवारी है। उसने दिखा दिया कि महिलाओं की किसी से तुलना नहीं की जा सकती, वे अतुलनीय हैं। थल, जल, नभ सबमें अदम्य साहस के साथ आज अग्रिम पंक्ति में खड़ी है। चाहे गांव हो या शहर, बदलाव हर जगह दिखने लगा है।

 

 

 

 

 

 

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