चिंतनीय : भारत मे अभी भी 11.8 मिलियन किशोरियां कर रहीं गर्भ धारण, सरकार गम्भीर

AJ डेस्क: बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार द्वारा की गई पहलकदमियों और जमीनी स्तर पर बाल विवाह व किशोरवय गर्भावस्था के खतरे के खिलाफ आवाज उठाने के लिए समुदायों को प्रोत्साहित करने के बावजूद भारत में अभी भी 11.8 मिलियन किशोरियां गर्भधारण करती हैं। इनमें 18 साल से कम उम्र की विवाहित किशोरियों की संख्या 1.5 मिलियन है। यह कुल विवाहित महिलाओं की संख्या का 16 प्रतिशत है, जो वर्तमान में 15-19 आयु वर्ग के बीच हैं।

 

 

22 वर्षीय सोनी देवी अपने छोटे-से आवास में हमारा स्वागत करती हैं, जबकि उनका 4 साल का बड़ी बेटी बालपन के मुस्कान के साथ खेलने में मशगूल है। उसकी सास बताती है कि सोनी के पिता की अल्प आय के कारण कैसे उसके मायके वालों को अपनी आजीविका चलाना मुश्किल हो रहा था और 24 वर्षीय संजय तुरी उसके के लिए एकदम सही जोड़ा था। सोनी का छोटा बेटा अभी डेढ़ साल का है, उसका जन्म धनबाद जिले के चासनाला पीएचसी में हुआ था। सोनी ने बताया कि उसकी गर्भावस्था कितनी मुश्किल-भरी थी! खासकर उसके पहले प्रसव के दौरान वह बीमार पड़ गयी और पता चला कि वह अल्परक्तता की शिकार है और गर्भावस्था की जटिलताओं से पीड़ित होने के कारण उसे चिकित्सकीय सेवा की आवश्यकता थी।

 

 

जब सोनी की शादी हुई, तब उसकी उम्र करीब 17 साल थी। उसने अभी-अभी अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की थी। वह मूल रूप से बिहार के सीतामढ़ी जिले के बाघरी गाँव की रहने वाली हैं। उनके तीन भाई-बहन हैं और उनके पास अपने परिवार को सपोर्ट करने के लिए कोई निश्चित साधन नहीं था, क्योंकि उनके पिता एक राज मिस्त्री थे। काम की कमी थी। प्रतिदिन का कमाना-खाना था और आमदनी दैनिक थी। काम मिलना भी परियोजनाओं और मौसमों पर निर्भर था।

 

 

सोनी की सास ने जब देखा कि सोनी की गर्भावस्था के अंतिम तीन महीने के दौरान कुपोषण के कारण सोनी के शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी हो रही है और युवा सोनी की सेहत लगातार बिगड़ती जा रही है तथा उसकी जान को खतरा हो सकता है, तब उसने मानसी कार्यक्रम और इसी प्रोजेक्ट में काम कर रही एक एएनएम (सहायक नर्स और मिडवाइफ) की मदद मांगी।

 

सोनी के अनुसार, “मैं वास्तव में अस्वस्थ महसूस कर रही थी, बिस्तर से नहीं उठ पा रही थी और लगातार उल्टी कर रही थी। मेरी गर्भावस्था के दौरान शायद ही कोई दिन ऐसा रहा हो जब मुझे अपने आप चलने में अच्छा महसूस हुआ हो!”

 

 

 

 

एएनएम और आशा कार्यकर्ताओं ने नियमित रूप से दौरा कर सोनी के प्रसव तक उसकी बारीकी से निगरानी की। जैसे ही उसकी बेटी साक्षी का जन्म हुआ, उसे एक आंख में संक्रमण हो गया, जिसने शिशु को और कमजोर बना दिया। बच्ची और माँ दोनों को मानसी कार्यक्रम के माध्यम से आवश्यक चिकित्सा दी गयी, जो नवजात के तीन वर्ष होने तक माँ और बच्चे का प्रसव पूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल प्रदान करता है। इस प्रकार वे दोनों ठीक हो गए और घर वापस आ लौट पाये।

 

 

ऐसा ही एक मामला कांटो कालिंदी की पत्नी रिंकू देवी का है, जो अभी महज 18 साल की है। उसकी डेढ़ साल पहले शादी हुई थी और उसके पास अपनी उम्र का पता लगाने के लिए कोई वैध पहचान प्रमाण नहीं है। वह कभी स्कूल नहीं गई और न ही पढ़-लिख सकती है। उसका बच्चा 40 दिन का है, जो महामारी के दौरान पैदा हुआ था। वह ज्यादा बातचीत नहीं करती है और अक्सर अपने वाक्यों को पूरा करने के लिए अपने पति की ओर देखती है। उसके पति कांटो ने खुलासा किया कि रिंकू जब बहुत छोटी थी, तभी उसकी मां का स्वर्गवास हो गया था। उसके 4 भाई-बहन हैं। उसके पिता की कमाई बेहद कम थी, जिससे उनका पालन-पोषण करना मुश्किल हो रहा था। उसका मायका धनबाद जिले के कोलाकुसमा गांव में है। जब युवा रिंकू की शादी हुई थी, तब उसे शायद ही जीवन की समझ थी। शादी के बाद अब वह जामाडोबा के पटिया गांव में अपने ससुराल में रह रही है। रिंकू का सुरक्षित प्रसव धनबाद में पीएमसीएस में हुआ, क्योंकि आशा कार्यकर्ताओं और एएनएम ने गर्भावस्था के दौरान उसका मार्गदर्शन किया और उसके स्वास्थ्य की देखभाल की।

 

 

भारत में अभी भी प्रति 100,000 जीवित जन्म के साथ 113 मातृ-मृत्यु दर्ज हो रहा है। और यह अक्सर अत्यधिक रक्तस्राव, कम पोषण और गर्भावस्था की जटिलताओं का नतीजा होता है। बाल विवाह और कम उम्र में गर्भाधान के कारण होने वाली मौत के आंकड़ों को कम करने के लिए टाटा स्टील फाउंडेशन द्वारा मानसी कार्यक्रम की पहल की गयी है। मानसी कार्यक्रम भारत के इस आंकड़े में समग्र गिरावट सुनिश्चित करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है।

 

 

कार्यक्रम के तहत फाउंडेशन गर्भवती महिलाओं के पति और सास को सलाह देने का काम भी करता है और घर में गर्भवती महिला की देखाभाल के दौरान उन्हें उनकी जिम्मेदारियों से अवगत कराता है।

 

 

हमने बुद्धू कालिंदी की पत्नी बबली देवी से बात की, जो अपने सातवें बच्चे की उम्मीद कर रही है। उनका सबसे बड़ा बच्चा 17 साल का है जबकि सबसे छोटा बच्चा अभी सिर्फ एक साल का है। जब हमने उससे बात की, तभी हमें उसकी मजबूरी का अहसास हुआ। उसने अपने पति को बंध्याकरण कराने की अनुमति देने के लिए उसे मनाने की कोशिश की थी। लेकिन वह नहीं माना।

 

 

उसने बताया, “वह नशे में घर आता है और चलाने के लिए उसके पास शायद ही कभी पैसे होते हैं! उसने मुझे कभी ऑपरेशन कराने की अनुमति नहीं दी। हर बार जब मैं उसे बताती हूं, तो वह मुझसे ऑपरेशन न कराने के लिए कहता है, यह बताते हुए कि जब मैं ऑपरेशन के लिए अस्पताल में रहूंगी, तो बच्चों की देखभाल कौन करेगा।”

 

 

हालांकि, एएनएम और आशा कार्यकर्ता उसे बंध्याकरण सर्जरी कराने के लिए ले जाने की जिद कर रही हैं, लेकिन उसका शराबी पति हर बार अस्पताल जाने के लिए बाहर निकलने की योजना को विफल कर देता है। उसकी आँखें सुस्त और पीली दिखती हैं और अपने घर के सामने झाड़ू लगाते हुए उसे देख कर ऐसा लगता है कि वह अपने गर्भवती पेट का बोझ उठाने में संघर्ष कर रही है। वह सोनी देवी या रिंकू के घर से बहुत दूर नहीं रहती है, लेकिन जो चीज उन्हें उनसे उसे अलग करती है, वह है अपने पितृसत्तात्मक मानसिकता वाले उसके पति द्वारा निर्धारित सीमाओं को तोड़ने में उसकी असमर्थता।

 

 

मानसी कार्यक्रम से जुड़ी शशि ने लाभुकों को काफी करीब से देखा है। उसने बताया कि उसकी यह यात्रा ऐसी रही है कि यह एक साथ कभी खुशी देती है, तो कभी-कभी दिल को दुखाती भी है।

 

 

एलिस कोल के अनुसार, लाभुकों को लेकर आशा और एएनएम के बीच की तालमेल भरा सौहार्द हमें याद दिलाता है कि ‘किस प्रकार बिना सोचे छोटे और बड़े तरीके से हर दिन महिलाएं एक-दूसरे की मदद करती हैं और यह उन्हें तब भी काम करने के लिए प्रेरित करते हैं, जब दुनिया नये और रोमांचक तरीके से उन्हें कुचलने के लिए उनके सामने खड़ी रहती है।’’

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