जहां भागवत कथा होती है वहां सारे देवता विचरण करते हैं- प्रताप चंद्र

AJ डेस्क: मारवाड़ी युवा मंच धनबाद शाखा एवं श्री राधा बल्लभ सत्संग समिति, धनबाद द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन परमपूज्य श्री हित प्रताप चंद्र गोस्वामी जी ने कहा कि “जहां पर भागवत कथा होती है वहां पर उस समय सारे तीर्थ, सारी नदियां, सारे देवता विचरण करते हैं। श्रीमद् भागवत कथा कल्पतरू की तरह है जिसकी शरण में बैठने पर हमारी सारी मनोकामनाएं भागवत कथा पूर्ण करती है। भागवत कथा में जो व्यक्ति जिस मंशा के साथ बैठता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, लेकिन व्यक्ति की भावना पवित्र हो और संसार के मंगल की कामना उसके मन में हो। ऐसे व्यक्ति की मनोकामना भागवत कथा से पूर्ण होती है।”

 

 

श्रीमद्भागवत कथा के प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए पूज्य गुरुदेव जी ने कहा – “कथा का पंचम दिवस अत्यधिक मनोहर होता है। क्योंकि इसमें नटखट बाल कृष्ण की लीलाओं का श्रवनपान कराया जाता है। नटखट बाल स्वरूप की लीलाओं का बहुत ही सुंदर दर्शन जिसे सुन वहाँ मौजूद भक्त भाव विभोर हो गए।

 

 

गुरुवर ने बताया कि नारायण को एकादशी का व्रत अत्यंत प्रिय है और सभी व्रत किसी न किसी कामना वश किये जाते हैं। एकमात्र एकादशी का वृत प्रभु की प्राप्ति कराने वाला है। प्रत्येक सनातनी को ये व्रत अवश्य करना चाहिए और इसकी नियम विधियों का भी पालन करना चाहिए।

 

 

उन्होंने कहा कि ईश्वर की भक्ति द्वारा देह को आसानी से मथुरा बनाया जा सकता है। जब मन भगवान के चिंतन में पूर्णतया लगता है तो वह गोकुल बन जाता है और हृदय में कृष्ण की उत्पत्ति होती है। इसलिए प्रतिदिन प्रातः काल सबसे पहले ईश्वर का स्मरण करना चाहिए जिससे पूरा दिन व जीवन खुशहाली से भर जाए। क्योंकि जब मन पवित्र रहेगा तो कोई विकार आपको स्पर्श नही कर सकता।

 

 

कलियुग की महिमा बताते हुए उन्होंने कहा कि भागवत कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। कलयुग में मानस पुण्य तो सिद्ध होते हैं, परंतु मानस पाप नहीं होते। कलयुग में हरी नाम से ही जीव का कल्याण हो जाता है। कलयुग में ईश्वर का नाम ही काफी है। सच्चे हृदय से हरि नाम के सुमिरन मात्र से कल्याण संभव है। इसके लिए कठिन तपस्या और यज्ञ आदि करने की आवश्यकता नहीं है। जबकि सतयुग, द्वापर और त्रेता युग में ऐसा नहीं था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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