बिहार/झारखण्ड सहित पूरे देश में धूमधाम से मनाया गया चौठचंद्र का त्यौहार

नेशनल : करवाचौथ के अलावा भारत में एक हिंदुओ का एक और त्योहार है जिसमें चांद की पूजा की जाती है। यह पूजा खासकर मिथिला में मनाया जाता है जिसे चौठचंद्र (चौरचन) कहा जाता है। इस पर्व में चांद की पूजा बड़ी धूमधाम से होती है। मिथिला के अधिकांश पर्व-त्योहार मुख्य तौर पर प्रकृति से ही जुड़े होते हैं, चाहे वह छठ में सूर्य की उपासना हो या चौरचन में चांद की पूजा का विधान। मिथिला के लोगों का जीवन प्राकृतिक संसाधनों से भरा-पूरा है, उन्हें प्रकृति से जीवन के निर्वहन करने के लिए सभी चीजें मिली हुई हैं और वे लोग इसका पूरा सम्मान करते हैं। इस प्रकार मिथिला की संस्कृति में प्रकृति की पूजा उपासना का विशेष महत्व है और इसका अपना वैज्ञानिक आधार भी है।

 

 

मिथिला में गणेश चतुर्थी के दिन चौरचन पर्व मानाया जाता है। कई जगहों पर इसे चौठचंद्र नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मिथिलांचल के लोग काफी उत्साह में दिखाई देते हैं। लोग विधि-विधान के साथ चंद्रमा की पूजा करते हैं। इसके लिए घर की महिलाएं पूरा दिन व्रत करती हैं और शाम के समय चांद के साथ गणेश जी की पूजा करती हैं।

 

 

कैसे मनाई जाती है चौठचंद्र ?

सूर्यास्त होने और चंद्रमा के प्रकट होने पर घर के आंगन में सबसे पहले अरिपन (मिथिला में कच्चे चावल को पीसकर बनाई जाने वाली अल्पना या रंगोली) बनाया जाता है। उस पर पूजा-पाठ की सभी सामग्री रखकर गणेश तथा चांद की पूजा करने की परंपरा है। इस पूजा-पाठ में कई तरह के पकवान जिसमें खीर, पूड़ी, पिरुकिया (गुझिया) और मिठाई में खाजा-लड्डू तथा फल के तौर पर केला, खीरा, शरीफा, संतरा आदि चढ़ाया जाता है।

 

 

घर की बुजुर्ग स्त्री या व्रती महिला आंगन में बांस के बने बर्तन में सभी सामग्री रखकर चंद्रमा को अर्पित करती हैं, यानी हाथ उठाती हैं। इस दौरान अन्य महिलाएं गाना गाती हैं ‘पूजा के करबै ओरियान गै बहिना, चौरचन के चंदा सोहाओन।’ यह दृश्य अत्यंत मनोरम होता है।

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