नोट उगलने वाली “एटीएम” मशीन के संचालन पर लगा ग्रहण, आदत बदलें

AJ डेस्क: आज देश की नोट उगलने वाली मशीन बीमार है। वो दर्द से कराह रहा है। वो अपनों से मिले जख्म की वजह से छटपटा रहा है, चीख और चिल्ला रहा है। वो मारना तो नहीं चाहता फिर भी असहनीय दर्द की वजह से इच्छा मृत्यु की मांग कर रहा है। दरअसल देश के तमाम नोट उगलने वाली मशीन (एटीएम) को नोटबंदी का ऐसा रोग लगा की आज देश की आधी एटीएम मशीन मृत्यु के कगार पर पहुँच गई है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि इन मशीनों को प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत योजना भी इन्हें इलाज मुहैया नहीं करा पा रहा है।

 

 

यदि आप पैसे निकालने के लिए एटीएम पर ही निर्भर हो गए हैं तो अब आप अपनी आदत को तुरंत बदल डालिए और अभी से ही रोज मर्रा के खर्चे के लिए कुछ नकदी बैंक से निकाल कर घर में रखने की आदत डाल लीजिए। क्योंकि 31 मार्च के बाद देश का लगभग 50 फीसदी एटीएम मशीन बंद होने जा रहा हैं। क्यों? तो इसकी जानकारी कॉन्फिड्रेशन ऑफ एटीएम एंडस्ट्री (कैटमी) ने अपनी रिपोर्ट में दी है।

 

 

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस समय देश में करीब 2 लाख 38 हजार एटीएम संचालित हो रहे हैं। जिनमें से 1 लाख 13 हजार एटीएम इस महीने के आखिरी तारीख तक बंद हो सकते हैं। इसके पीछे के कारण की बात करें तो कैटमी की रिपोर्ट में कहा गया है कि एटीएम के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर अपग्रेड के नए मानकों के कारण एटीएम को बंद किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो एटीएम का संचालन करने वाली कंपनियों के लिए ये करना मुश्किल हो रहा है।

 

 

 

 

नोटबंदी के बाद से करीब सभी एटीएम को अपडेट करना पड़ा था, क्योंकि 2000 रुपये से लेकर 100 रुपये तक के सभी नोटों की अलग-अलग साइज हो गई। ऐसे में एटीएम को भी नोट की साइज के हिसाब से बदलना पड़ रहा है। ऐसे में एटीएम में नोट रखने वाले कैसेट्स को बदला जा रहा है। जिस पर करीब 3 हजार करोड़ रुपये तक का खर्च आ रहा है। इस खर्च को लेकर बैंक और एटीएम कंपनियों में तकरार चल रही है। कंपनी फंड देने को तैयार नहीं हैं और इसके लिए बैंक के पास अलग से कोई फंड भी नहीं है। ऐसे में एटीएम को बंद करना ही विकल्प बचा है। ऐसे में अब दूसरा रास्ता यह है कि यदि बैंक अपने-अपने एटीएम को संचालन करने की जिम्मेदारी खुद ले लेते हैं तो यह काम आसान हो सकता।

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