बून्द बून्द पानी को सहेज आदिवासी अपने गांव में बहा रहे “अमृतधारा”

AJ डेस्क: भारत अपने इतिहास के सबसे गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। देश में करीब 60 करोड़ लोग पानी की गंभीर किल्लत का सामना कर रहे हैं। करीब दो लाख लोग स्वच्छ पानी न मिलने के चलते हर साल जान गंवा देते हैं। नीति आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। हम सभी जानतें हैं कि जल की एक-एक बूंद बहुमूल्य है। पानी की कीमत क्या होता है, ये झारखंड के इन आदिवासियों से बेहतर और भला कौन बता सकता है जिन्होंने प्यास बुझाने के लिए दो साल तक कठिन परिश्रम किया तब जाकर आज इनके गांवों तक पानी की धारा पहुंच पाई है।

 

 

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जमशेदपुर से 60 किलोमीटर दूर ओडीशा-झारखंड सीमा से सटा डाइन मारा गांव आज काफी खुशहाल है। आज यहां किसान खुश हैं। खेतों में हरियाली लौट आई है। फसलें लहलहा रही है। महिलाओं को पानी के लिए दर-दर नहीं भटकना पड़ रहा। जरूरत के मुताबिक सारा पानी घर बैठे मिल रहा है। इस पानी से ये लोग अपनी और अपने मवेशियों की प्यास भी बुझाते हैं और इस पानी का इस्तेमाल फसलों की सिंचाई के लिए भी करते हैं।

 

 

 

 

 

मगर कुछ साल पहले तक इस गांव की ऐसी तस्वीर नहीं थी। खेती बारिश पर निर्भर थी। चारों तरफ सूखा ही सूखा था। लेकिन गांव के लोगों ने दो साल तक जी तोड़ मेहनत के बाद पानी को सहेजने का ऐसा तरीका अपनाया कि अब इन्हें पानी की तलाश में नहीं भटकना पड़ता। दरअसल इन लोगों ने पहाड़ों के बीच बूंद-बूंद गिरते झरनों के पानी को पहले टैंकों में इकट्ठा किया और फिर पाइप लाइन के जरिए गांवों तक पहुंचाया।

 

 

अब शहरों की तर्ज पर इन आदिवासी इलाकों में जल खोलते ही पानी निकल आता है। पानी को सहजने के लिए ग्रामीणों का ये जुगाड़ तंत्र अब पानी संजोने का मॉडल बन चुका है। पिछले कुछ साल में इस मॉडल को इलाके के 21 गांवों ने अपनाया और पानी को बचाकर अपने आने वाले कल को खुशहाल बना लिया है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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