सत्ता का नशा: भाजपा का अनुशासन ताख पर, राजद-तृणमूल के राह पर चल पड़ी पार्टी
AJ डेस्क: बिहार में लालू की पार्टी और बंगाल में ममता दीदी के विधायक सत्ता के नशे में चूर होकर जो किया करते थे, जिसे भाजपा कोसती थी और जनता त्रस्त थी। आज झारखण्ड में सत्ताधारी दल के नेता उसी राह पर चल पड़े हैं। जनता सब जानती है। जनता समझने लगी है कि सिद्धान्त और अनुशासन का ढोंगी चोला डाले इस पार्टी की भी असली चेहरा क्या है।
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कोयलांचल और इस्पातन्चल (धनबाद और बोकारो जिला) के ही दो माननीय के करतूतों की संक्षिप्त चर्चा ही कर ली जाए तो इनमें और राजद तथा तृणमूल में समानता नजर आती है। बंगाल की सत्ता पर काबिज दल के नेता कार्यकर्ता समानांतर व्यवस्था चलाते हैं। प्रशासनिक तंत्र सब कुछ जानते हुए भी “गांधी जी के तीन बंदरों” की तरह मौन ही रहने में अपना भलाई समझती है। यही हाल बिहार में तब तब हुआ है जब जब राजद सत्ता में रही है। कथित अनुशासित पार्टी भाजपा के कतिपय माननीय भी सत्ता के नशे में धुत्त होकर अपने अपने क्षेत्र में समानांतर प्रशासनिक व्यवस्था चला रहे हैं। इन्हें शीर्ष सत्ता का भरपूर आशीर्वाद प्राप्त है। इस कारण इन माननीयों के करतूत का यदि कोई विरोध करता भी है तो प्रशासन के कान पर जूं तक नही रेंगता।
सत्ताधारी दल के एक माननीय एक अधिकारी को दौड़ा दौड़ा कर पीटते हैं। वजह माननीय के बादशाहत में अधिकारी अड़ंगा डालने की हिमाकत करता है। माननीय अपने किसी दुलारे को ठेका पट्टी का काम दिए हैं। काम नही होगा तो लूट खसोट कैसे होगा। अब माननीय का यह टेंशन थोड़ी न है कि जहां निर्माण हो रहा है, वह जमीन किसकी है।सल्तनत अपना है, मर्जी माननीय की ही तो चलेगी।
सत्ता के खेल से अनभिज्ञ नासमझ अधिकारी पहुंच गए सही-गलत का व्याख्यान करने। बस, पीट गए। चोरी और सीनाजोरी भी नही हुआ तो सत्ता का मायने क्या। माननीय पहुंच गए प्रशासनिक तंत्र के पास। समझा बुझा दिया। केस दोनों ओर से हो गया, अब जाँच जारी है। लम्बी प्रक्रिया है।तब तक मार खाने वाले अधिकारी को अपनी गलती का अहसास हो जाएगा और समझौता के साथ चैप्टर क्लोज। यदि भविष्य में फिर कोई माननीय के बारे में निगेटिव सोच भी रहा होगा तो वह पहले ही सचेत हो जाएगा लेकिन जनता पूरे प्रकरण पर नजर रखे हुए है।
सत्ता का खेल देखना हो तो आप धनबाद आ जाएं। यहां के एक माननीय हैं जो वास्तव में सत्ता का खुला खेल दोनों हाथों खेल रहे हैं। इस खेल में रोज उनके अकूत सम्पति में दिन दुगुनी रात चौगुनी इजाफा होता जा रहा है। बड़ी बड़ी कम्पनियां भाग रही हैं। छोटे छोटे उद्योगपति कराह रहे हैं। इनके द्वारा माननीय की कुंडली हर स्तर पर भेजी जा रही है लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात वाली। आम आवाम के जेहन में अटल-आडवाणी वाली भाजपा है उन्हें मालूम ही नहीं, अब भाजपा सिद्धान्त वाली नही बल्कि विशुद्ध कूटनीति, राजनीति करने वाली पार्टी बन चुकी है। उसे हर कीमत पर सत्ता चाहिए और इस खेल में कोई और भी खेल खेलता हो तो फर्क नही पड़ता।
जनता समझने लगी है। इस फार्मूला पर सत्ता काबिज करने वाली पार्टियों का हश्र क्या हुआ है। यह भी जनता जानती है। धन-जन बल के सहारे और एकाध बार सत्ता मिल जाए तो मिल जाए लेकिन हश्र वही होगा जो दूसरों का हुआ है।
बोकारो के माननीय धमकाते हैं कि पिटाने वाले अधिकारी के विभाग में भ्रस्टाचार है, वह पोल खोल देंगे। हो सकता है माननीय सही बोल रहे हों तो यहां एक सवाल उठता है कि इस घटना के पहले राष्ट्र हित में माननीय ने भ्रस्टाचार का आखिर पोल क्यों नही खोला। जनता भ्रम में है माननीय जी कि क्या सही में जनहित में आप भ्रस्टाचार का पोल खोलेंगे या यह आपकी गीदड़ भपकी है।
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