मजबूर “माँ” अपने ही जिगर के दो टुकड़ों का सौदा करने पर हुई विवश

AJ डेस्क: एक माँ पर उसके ही दो बच्चों का सौदा करने का तोहमत लगा है। वो भी खुद के इलाज के लिए पैसे जुटाने के लिए। क्या यह सच है? दरअसल आज भले ही हम चाँद पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हो, हम भले ही 4G के दौर में सहूलियतों की जिंदगी बसर कर रहे हो लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि आज भी हमारे देश में बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे है, आज भी कई माँ टीबी जैसे रोग से मर रही है। यह माँ भी इन्ही परिस्थियों से जूझ रही थी। मामला बिहार के नालंदा का है।

 

 

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बिहार की राजधानी पटना की रहने वाली सोनम का विवाह 3 साल पहले सुमंत कुमार से हुई थी। सब कुछ बढ़िया चल रहा था। एक बेटी ने उनके जीवन में दस्तक देकर उनके जीवन को और भी खुशियों से भर दिया। लेकिन ये खुशियां ज्यादा समय तक नहीं रही। सुमंत कुमार की अचानक मौत हो गई। कुछ दिनों बाद सोनम के रिश्तेदारों ने उसका विवाह नालंदा के संजय मांझी नामक एक व्यक्ति से करवा दिया। सोनम की जिंदगी आहिस्ता-आहिस्ता फिर से पटरी पर लौटने लगी। सोनम ने अब एक बेटे को जन्म दिया। लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण सोनम के दोनों बच्चों को कुपोषण ने अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया। इसी बीच सोनम को भी टीबी नामक रोग ने अपने जद में ले लिया।

 

 

पीड़ित माँ सोनम

 

 

लेकिन जब इन बीमारियों का इलाज करवाने की बारी आई तो सोनम के पति ने इससे किनारा करना ही उचित समझा। संजय अपनी पत्नी सोनम और दोनों बच्चों को छोड़ कर चला गया। इसके बाद तो मानों सोनम की जिंदगी में दुखों ने अपना डेरा ही डाल लिया। उसने अपने बच्चों का पेट पालने का भरसक प्रयास किया लेकिन उसके अंदर गहराई तक समां चुके रोग (टीबी) ने उसे इस काबिल भी नहीं छोड़ा की वो अपने बच्चों के लिए दो जून की रोटी का भी बंदोबस्त कर सके। उसने अपना इलाज करवाने का भी प्रयास किया लेकिन जनाब गरीब का दर्द भला इस दुनियां में कौन सुनता है।

 

 

 

 

इसी दौरान वह किसी तरह हर जगह से धक्के खाती हुई हरनौत प्रखंड के कल्याण विगहा अस्पताल पहुंची। जहां डॉक्टरों ने उसकी गंभीर हालत को देखते हुए उसे उचित इलाज के लिए बिहारशरीफ सदर अस्पताल भेज दिया। सोनम अपने दोनों कुपोषित बच्चों के साथ सदर अस्पताल तो पहुंची लेकिन हर तरह से टूट चुकी सोनम को लगने लगा था कि अब उसके दोनों बच्चों को जिंदा रखने का एक ही रस्ता है कि वो किसी संपन्न परिवार को अपने दोनों बच्चों को बेच दे। इसके बाद सोनम अस्पताल पहुंच कर अपने दोनों बच्चों को बेचने के लिए एक सुखी और जरुरत मंद परिवार को तलाशने लगी। किस्मत से उसे एक ऐसा परिवार भी मिल गया जो उसके दोनों बच्चों को अपने परिवार का सदस्य बनाने को तैयार था। इसके एवज में वह परिवार सोनम को 50-50 हजार रुपया भी देने को राजी था। तभी-

 

 

अस्पताल प्रबंधक सुरजीत कुमार

 

इसकी सूचना स्थानीय पत्रकारों को मिली। पत्रकारों के एक दल  ने तत्काल सोनम से संपर्क किया। उसका हाल जाना और उसे सदर अस्पताल में इलाज के लिए दाखिल करवा दिया। इसके बाद पत्रकारों ने सीधे नालंदा के डीएम योगेंद्र प्रसाद से संपर्क साधा और सोनम की कहानी से उन्हें अवगत कराया। सोनम की दर्दनाक कहानी सुनने के बाद नालंदा डीएम ने फ़ौरन अस्पताल प्रबंधक सुरजीत कुमार को महिला और उसके दोनों बच्चों का उचित इलाज शुरू करने का आदेश दिया और इस दौरान होने वाले पूरे खर्च को जिला प्रशासन ने अपने कंधों पर ले लिया।

 

 

अब सोनम और उसके बच्चों का इलाज बढ़िया तरीके से चल रहा है। अस्पताल उन्हें हर मुमकिन सुविधा उपलब्ध करा रहा है। सोनम को अब किसी ग्राहक की जरुरत नहीं है। अब वह अपने बच्चों को अपने से दूर नहीं करना चाहती। अब वो कहती है- भगवान है। शायद उसी ने उसके दर्द को समय रहते समझा। इसी लिए आज हमारा इलाज भी उचित ढंग से हो रहा है और मेरे दोनों कलेजे के टुकड़े भी मेरे आँखों के पास ही है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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