“संगठन बड़ा या घराना”: नया चेहरा पर दांव लगाने से घबड़ा रही है क्या पार्टी?

अब तक आप पढ़ते रहे एक घराना की अंदरूनी कहानी। आने वाले समय में अनल ज्योति इस घराने की कुछ और महत्वपूर्ण जानकारियां आप तक पहुंचाएगा। अब कुछ राजनीतिक बातें भी कर ली जाए। आखिर दशकों से एक ही परिवार का अलग अलग चेहरा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व तो कर रहा है लेकिन दो दशक में जनता के जीवन स्तर में कितना बदलाव हो पाया। क्षेत्र का कितना विकास हो पाया, अब इसका आकलन करने का सही समय आ गया है। बात किसी एक क्षेत्र विशेष की नही है। जिला का एक और क्षेत्र है जहां का प्रतिनिधित्व ऐसे व्यक्ति के हाथों में है जो खुद को वहां का राजा से कम नही समझता।

 

 

 

 

AJ डेस्क: एक कहावत है सामर्थ्य को नहीं दोष गोसाई—–। बदलते समय के साथ अब यह सवाल उठने लगा है कि संगठन बड़ा या घराना। सत्ता में बने रहने के लिए गणित की राजनीति भी आवश्यक है। यह सभी पार्टियों पर लागू होता है लेकिन सिद्धान्त और अनुशासित राजनीति करने का पक्षधर होने का दावा करने वाली पार्टी सत्ता के लिए कम से कम हर कीमत चुकाने से जरूर बचना चाहेगी। अनल ज्योति किसी क्षेत्र विशेष की बात नही कर रहा। कोयलांचल का एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र है जहां प्रतिनिधित्व करने वालों का भले ही चेहरा बदलता रहा हो लेकिन घराना एक ही रहा है। वहीं एक और विधान सभा क्षेत्र है जहां का नेता लगभग प्रायः नई विवादों को लेकर सुर्खियों में रहता है। उसपे गम्भीर आरोप भी लगते रहे हैं जो उसके प्रभाव से साबित भी नही हो पाते हैं। यह सैद्धांतिक राष्ट्रीय पार्टी संभावित प्रत्याशियों का अपने स्तर पर जन्म कुंडली बनवा ही रहा है तो यह देखने की बात होगी कि उनके इन नेताओं का क्या होता है।

 

 

 

 

जनता को तो फिर अपना नेता चुनने का मौका मिल रहा है। अनल ज्योति ने जमीनी स्तर पर सच्चाई जानने का प्रयास किया तो पाया कि जनता बदलाव के मूड में है। दो दशक की अवधि में क्षेत्र में कोई एक ऐसा काम नही हुआ जो यादगार बन सके। बल्कि क्षेत्र की धरोहर पर ही संकट के बादल छा गए।परिवर्तन प्रकृति का नियम है। अब जनता भी प्रतिनिधित्व का चेहरा और घराना बदलने के मूड में नजर आ रही है। कुछ वर्ग के लोगों ने कहा कि एक पार्टी विशेष के ही समर्थक हैं, उसके खिलाफ वोट नही डालना चाहते लेकिन पार्टी को भी उनकी भावनाओं का ख्याल रखना होगा।

 

 

 

 

प्रदूषण से कराह रहे धनबाद कोयलांचल में इस राष्ट्रीय पार्टी को प्रत्याशी चयन करने में बहुत सावधानी बरतनी होगी या बरतनी चाहिए। कोलियरियों पर एकाधिकार, शार्गिदों के आड़ में बालू पर वर्चस्व, ट्रांसपोर्टिंग में हस्तक्षेप कहने का तातपर्य उनके क्षेत्र में जहां भी मोटी कमाई का जरिया नजर आता है, उसपे किसी न किसी तरह वर्चस्व जमा ही लेते है। कारण जो भी हो प्रशासन भी इस मामले में मौन रहता है। पावर के कारण कोई खुलकर कुछ नही बोल रहा लेकिन पार्टी की छवि जरूर धूमिल हो रही है। पार्टी को समय रहते सचेत होते हुए सोच समझकर निर्णय लेना होगा।

 

 

 

 

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