धनबाद में यहां होती है एकता – अखंडता के लिए “काली पूजा”
AJ डेस्क: पूरे कोयलांचल धनबाद में काली पूजा की धूम है। एक से बढ़कर एक पूजा पंडाल बनाए गए हैं। सभी अपनी सुंदरता और भव्यता के लिए खूब सुर्खियां बटोर रहे है। लेकिन शहर के एक कोने में एक छोटे और आम सी पूजा पंडाल में माँ आदिशक्ति काली की प्रतिमा स्थापित की गई है। यहाँ भी पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना की जा रही है। लेकिन यह पूजा अपनी खूबसूरती या भव्यता के लिए नहीं बल्कि अपनी एकता अखंडता और आपसी सौहार्द के लिए पूरे कोयलांचल धनबाद में जाना जाता है।
धनबाद का नया बाजार इलाका। यहाँ बेस रेलवे कॉलोनी में बहुतायत संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग निवास करते है। लेकिन आपकों आज के दिन यहाँ शंख और घंटे की आवाज पर वेद मंत्रों के उच्चारण और माँ काली की महाआरती की ध्वनि सुनाई देगी। दरअसल यहाँ मुस्लिम समुदाय के लोगों के भरपूर सहयोग से यहाँ के हिन्दू समाज हर वर्ष माँ काली की पूजा पूरे विधि विधान के साथ करते है। माँ काली की पूजा में मुस्लिम समाज के लोगों के सहयोग का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जरुरत पड़ने पर मुस्लिम समाज के लोग एक साथ जुट कर खुद से मजदूरों वाला कार्य भी ख़ुशी ख़ुशी कर लेते है। पंडाल बनाने से लेकर माँ की प्रतिमा के निर्माण में भी इनका पूरा सहयोग होता है।
इनका सहयोग यही समाप्त नहीं होता। मुस्लिम समुदाय पूजा की शुरुआत से माँ के विसर्जन तक में दिन रात डटे रहते है। पूजा के दौरान कोई अप्रिय घटना न हो इसका भी मुस्लिम समाज पूरा-पूरा ध्यान रखता है। पिछले 20 वर्षों से काली पूजा में हाथ बंटा रहे सैयद शाहजहां आलम बताते है कि यहाँ कोई हिंदी-मुस्लिम वाली बात नहीं है। यहाँ जिस तरह से हम माँ काली की पूजा में सहयोग करते है ठीक उसी तरह यहाँ के हिन्दू समाज भी हमारे मुहर्रम में हाथ बंटाते है। उन्होंने कहा कि हिन्दू-मुस्लिम वाली बात नेताओं द्वारा पैदा किये गए चोंचले है जिसे हम नहीं मानते। हम बस हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई वाली बात पर विस्वास रखते है।
नया बाजार स्थित रेलवे कॉलोनी में 3 सौ से ज्यादा रेलवे के क्वार्टर है। इसके अलावा यहाँ निजी मकान भी है। यहाँ करीब 25 हजार की आबादी निवास करती है। जबकि यहाँ मात्र दो से तीन घर ही हिंदुओं के है। बावजूद इसके यहाँ माँ की पूजा में कभी कोई कमियां नहीं देखी गई।
इस पूजा कमिटि के संस्थापक के पुत्र जितेंद्र श्रीवास्तव बताते है कि आज से 54 वर्ष पूर्व 1965 में उनके पिता मधुसूदन श्रीवास्तव ने अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर यहाँ माँ काली की पूजा की शुरुआत की। जो पीढ़ी दर पीढ़ी इसी तरह से निर्बाध बढ़ता रहा। आज इस पूजा को हम लोग अपने मुस्लिम भाइयों के सहयोग से बड़े ही धुमं धाम से कर रहे है। उन्होंने कहा कि इस दौरान देश में कई बार हिन्दू-मुस्लिम को लेकर विष फैला। लोग एक दूसरे के खून के प्यासे भी बने लेकिन यहाँ कभी उसका कोई असर नहीं पड़ा। 1965 से लगातार बिना किसी विरोध के हम हिन्दू-मुस्लिम मिलकर यहाँ माँ काली की पूजा करते आ रहे है और आगे यूँ ही माँ काली के आशीर्वाद से यह परम्परा जारी भी रहेगा।
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