कर्म को जीवन का मूलमंत्र बना शिखर पर पहुंचे विधायक जी सूर्यदेव सिंह (पार्ट-2)

AJ डेस्क: झरिया विधान सभा क्षेत्र झारखण्ड का इकलौता ऐसा सीट है जहां से एक ही घराना की दो दो बहुएं आमने सामने चुनावी जंग लड़ रही हैं। इस हालात में स्व सूर्यदेव सिंह की याद न आवे,यह कैसे हो सकता है। UP के बलिया से वह अकेले ही तो धनबाद आए थे, जिसके बाद झरिया कोयलांचल में गोनिया छपरा और आस पास के गांव के लोग भर गए। विधायक जी ने अपने ही नही दूसरों को भी यहां पैर जमाने का अवसर दिया। अनल ज्योति का उद्देश्य स्पष्ट है- विधायक जी को जानने, मानने और आज भी उन्हें याद करने वाले लोगों के बीच एक सन्देश जाए और वह अपने अगली पीढ़ी को भी मजदूरों के मसीहा के बारे में बतावें——–।

 

 

 

 

“तबीयत से पत्थर” उछाला था सूर्यदेव सिंह ने। जुट के बोरा का पैंट बनवा उसे पहन ठंढ काटी थी उन्होंने। चार चार आना हफ्ता की मजदूरी पर दूसरों के यहां नौकरी की थी। हिम्मत कभी नही हारे और न तो कभी किसी काम को ही छोटा समझा। जीवन संगिनी के रूप में कुंती सिंह मिलीं। कुंती सिंह भी कदम से कदम मिलाकर साथ देती रहीं। कुंती सिंह आँखों में आंसू लेकर बोलती हैं घर में ढंग का बर्तन तक नही था। किसी तरह भोजन बन जाता था और टूटे हुए कटोरे में खा लिया जाता था। सूर्यदेव सिंह के पास तो सिर्फ जूनून था आगे बढ़ने की। दिन रात कई कई शिफ्ट में काम कर के वह पाई पाई जमा कर रहे थे। उन्होंने मेहनत की कमाई से गांव पर जमीन खरीदा और वहां घर बनवाने लगे। सूर्यदेव सिंह का मतलब एक “परिवार”। वह शख्स कभी सिर्फ अपने या अकेले की सोच नही रखता था। घर में सभी भाईयों के लिए तो बाहर सभी मजदूर भाइयों के बेहतरी की सोचते रहते थे। कुंती सिंह बताती हैं कि किसी खदान में दुर्घटना हो जाने पर वह बेधड़क खदान के भीतर चले जाते थे और घायलों को कंधा पर लाद बाहर ले आते थे। किसी भी मजदूर की समस्या की जानकारी मिलने के बाद वह चुप नही बैठ सकते थे। धीरे धीरे इन्ही आचरण-स्वभाव के चलते सूर्यदेव सिंह मजदूरों के बीच लोकप्रिय बनने लगे।

 

 

 

 

कहते हैं धरती पर या किसी परिवार में “बिरले” ही किसी व्यक्ति का जन्म होता है जो पूरे घर का हालात बदल देता है। यह सूर्यदेव सिंह पर अक्षरशः लागू होता है। वर्ष 1964 के आस पास 14 साल की आयु में सूर्यदेव सिंह धनबाद के झरिया कोयलांचल आए थे। कुछ कर गुजरने का जुनून था ही। मेहनत से पीछे हटे नहीं। वर्ष 1971 में कोलियरियों का राष्ट्रीयकरण हो गया। लगभग तेरह वर्षो के अल्प अवधि में सूर्यदेव सिंह ने झरिया कोल फिल्ड में इतना गहरा पैठ बना लिया कि वर्ष 1977 में वह विधान सभा का चुनाव लड़ गए और जीत भी गए। उसके बाद वह लगातार चुनाव लड़ते गए और जीतते भी गए। सूर्यदेव सिंह ताजिंदगी झरिया के विधायक रहे। 15 जून 1991 में उनकी साँसे थम गई। शरीर तो साथ छोड़ गया लेकिन सूर्यदेव सिंह कोयलांचल ही नही उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली तक हजारो-लाखों लोगों के दिल में बस गए। आज भी विधायक जी कहे जाने पर सूर्यदेव सिंह का ही चेहरा सामने आता है।

 

 

 

 

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