सूर्यदेव सिंह के विरासत को बखूबी सम्भाला युवा सम्राट “राजीव रंजन” ने (पार्ट- 06)

AJ डेस्क: प्रकृति का नियम है- “जो आया है उसे एक दिन जाना भी होता है”। विधायक जी सूर्यदेव सिंह ने 15 जून 1991 के दिन अंतिम सांस ली और शरीर त्याग दिए लेकिन वह आज भी झरिया वासियों के दिल में बसे हुए हैं। उनके असमय जाने के बाद “सिंह मेंशन” घराना संकट के दौर से गुजरने लगा फिर बड़े पुत्र राजीव रंजन ने लड़खड़ाती नैया की बागडोर संभाली और एक बार पुनः झरियावासियों को विधायक जी का याद दिला गया।

 

 

विधायक जी के निधन के बाद हुए विधान सभा चुनाव में सिंह मेंशन को पराजय का मुंह देखना पड़ा। लोग बताते हैं कि कुंती सिंह विशुद्ध घरेलू महिला थीं और उस वक्त उनके बच्चे कम आयु के थे। दो बार विधान सभा चुनाव में सिंह मेंशन को शिकस्त खाना पड़ा। इस बीच राजीव रंजन कमजोर कंधा लेकिन बुलंद इरादा लेकर मेंशन का कमान संभालने लगा था। राजनीति तो उसे विरासत में मिली थी। बड़ी तेजी के साथ राजीव रंजन युवाओं का चहेता बनने लगा। कोयलांचल के युवा वर्ग पर गजब की पकड़ उसने बनायी। पिता से किसी के लिए भी “सेवा” की भावना राजीव रंजन को विरासत में मिली थी, वह बखूबी उसे आगे बढ़ाता रहा। कोयलांचल में अनेकों उदाहरण आज भी गिनाए जाते हैं कि राजीव रंजन ने फलां को गम्भीर बीमारी के इलाज में, किसी की बेटी की शादी में और भी अलग अलग संकट के दौर में सहयोग किया करता था।

 

 

 

 

मेंशन की खिसक रही राजनीतिक धरती को बचाने के लिए राजीव रंजन ने युवाओं की फ़ौज तैयार की और अंततः अपने चाचा बच्चा सिंह को झरिया से चुनाव जितवाकर एक बार फिर खोयी हुई सीट वापस मेंशन की झोली में डाल दिया।

 

 

 

 

सिंह मेंशन में “कमल फूल” खिलाने का श्रेय भी राजीव रंजन को जाता है। रांची में अपने समर्थकों के साथ राजीव रंजन ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी। वह समारोह और दिन भी ऐतिहासिक बनकर रह गया था। अपनी युवा शक्ति का प्रदर्शन राजीव रंजन ने किया जो अब तक झरिया के लोगों के जेहन में है। वर्ष 2003 में राजीव रंजन ने “चेतावनी रैली” निकाला था। “छात्र युवा संघर्ष” के बैनर तले आयोजित यह रैली यादगार बनकर रह गया। सूर्यदेव सिंह के निधन के बाद कम आयु में ही राजीव रंजन ने सिंह मेंशन का जिस तरह कमान सम्भाला और विधायक जी के विरासत को आगे बढ़ाया, लोग आज भी उसकी चर्चा करते हैं।

 

 

 

 

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