चुनाव में आजसू का साथ छोड़ना महंगा पड़ा भाजपा को

AJ डेस्क: झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। झामुमो-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन को 81 में से 47 सीटों पर जीत मिली। हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनने जा रही है। बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा। उसे सिर्फ 25 सीटें ही मिलीं। यहां तक कि मुख्यमंत्री रघुबर दास भी चुनाव हार गए। लेकिन चुनाव से पहले बीजेपी सूझबूझ दिखाई होती तो यह नतीजा उल्टा होता। अगर बीजेपी और आजसू पार्टी अलग-अलग चुनाव न लड़कर गठबंधन में लड़ते तो बीजेपी और आजसू को 81 में से 40 सीटें मिल सकती थीं।

 

 

वे झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन के 35 से नीचे पर पहुंचा दिया होता। उसे सरकार बनाना आसान नहीं होता। वोट शेयर के आधार पर सीट दर सीट विश्लेषण किया गया है। इस चुनाव में बीजेपी-आजूस को मिलाकर 41.5% वोट शेयर होता है जो जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी के 35.4% से 6% अधिक है। इस अंतर से साफ पता चलता है कि बीजेपी-आजसू को स्पष्ट बहुमत मिल सकता था।

 

 

अगर हम अनुमान करें कि ये दोनों वास्तव में प्रत्येक सीट पर अधिक वोट प्राप्त करते अगर साथ मिलकर लड़ते। दोनों पार्टियों का वोट एक दूसरे को ट्रांसफर होता तो बीजेपी 9 और अतिरिक्त सीटें जीतती, आजसू को और 4 सीटें मिलतीं। तब बीजेपी को कुल सीटें 34 और आजसू को 6 सीटें पर कामयाबी मिलती। इस समीकरण के दूसरा पक्ष ये है कि इस हालात में जेएमएम को 9 सीटें कम आती और कांग्रेस को 4 सीटें कम मिलतीं। यानी जेएमएम को 21 और कांग्रेस को 12 सीटें की प्राप्त हो पाती। आरजेडी को एक सीटें मिल पाती।

 

 

बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम (प्रजातांत्रिक), एनसीपी, सीपीआई (एमएल) और स्वतंत्र उम्मीदवार को एक भी सीटें नहीं मिल पाती। और एनडीए की कुल सीटें यूपीए से अधिक होती। यह अनुमान गणित पर आधारित है। जिस आधार पर गठबंधन की केमिस्ट्री से नतीजे में बहुत अंतर हो जाता। आठ सीटों पर आजसू ने बीजेपी से अधिक वोट प्राप्त किए। जिसमें दो सीटें पर जीत मिली। बीजेपी को 73 और आजसू को 8 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए था।

 

 

गौर हो कि वर्ष 2000 में जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी नेतृत्व में एनडीए की सरकार ने झारखंड को नए राज्य का दर्जा दिया तो बिहार विधानसभा से झारखंड क्षेत्र के विधायकों को अलग कर झारखंड की 81 सदस्यीय विधानसभा का निर्माण हुआ क्योंकि बिहार में मार्च, 2000 में विधानसभा चुनाव हो चुके थे। इस प्रकार राज्य की पहली विधानसभा में भी बीजेपी के 32 विधायक थे और वह विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी थी।

 

 

इसके बाद वर्ष 2005 में विधानसभा के दूसरे चुनावों में एक बार फिर बीजेपी ने 30 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी होने का अपना दर्जा बरकरार रखा। विधानसभा के लिए 2009 में हुए चुनावों में बीजेपी नीचे खिसकी लेकिन जेएमएम के साथ मिलकर से 18-18 सीटें हासिल कर वह विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी रही। इन चुनावों में बीजेपी को जहां 20% से अधिक मत प्राप्त हुए वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा को 15.2% मत प्राप्त हुए थे।

 

 

राज्य में 2014 में चौथी विधानसभा में एक बार फिर बीजेपी ने बाजी मारी और उसने 37 सीटें जीतकर न सिर्फ अपने चुनाव पूर्व के सहयोगी आजसू के साथ पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई बल्कि वह राज्य विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी भी बनी रही।

 

 

लेकिन  2019 में पांचवें विधानसभा के लिए हुए चुनावों में पार्टी की ऐसी स्थिति बनी की 81 में से 79 सीटों पर चुनाव लड़कर भी वह सिर्फ 25 सीटें जीत सकी जबकि उसने इन चुनावों में सर्वाधिक 33.37% मत हासिल किए। वहीं सिर्फ 18.72% वोट प्राप्त कर जेएमएम इस बार राज्य विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई है।

 

 

 

 

 

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