स्टेशन सम्पर्क रोड कथा:विकास में राजनीति, चाहते क्या हैं विरोध करने वाले

 

 

 

 

 

 

 

अरुण कुमार तिवारी के कलम से…

 

AJ डेस्क: न जाने ऐसा क्यूँ लग रहा है कि लम्बे समय के बाद धनबाद में विकास का कोई कार्य हो रहा है जबकि ऐसा है नही, और भी विकास के कार्य हुए हैं। फिर भी धनबाद स्टेशन के साऊथ साइड से सम्पर्क रोड के बनने से विकास के कई मायने अपने आप में पूरे होते हैं। इसका असर बाद में पता चलेगा। फिर यह सवाल उठना लाजिमी है कि आंदोलनकारी आखिर चाहते क्या हैं? रेलवे का मुखर विरोध कर रहे नेताओं के निशाना में कौन है (कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना)। स्कूली छात्रों के कंधे पर बंदूक रख वह कौन लोग हैं जो घण्टों शहर को अपना बंधक बना अपनी रोटी सेंकने के फ़िराक में हैं? ऐसे कई सवाल आज धनबाद वासियों के जेहन में कौंध रहे हैं। जिसका जवाब शायद ही मिल पाएगा।

 

 

गुरुवार के दिन धनबाद शहर का बड़ा हिस्सा किसी और के कब्जे में रहा। मीलों वाहनों की कतारें लगी रही। शहर की गली कुची में भी जाम का नजारा था। लोग पैदल ही मंजिल की ओर जाने को विवश हो गए थे। आखिर शहर को घण्टों पंगु बनाने वाले, तमाम व्यवस्था को चरमरा कर रख देने वालों की मंशा क्या थी। त्राहि त्राहि कर चुकी जनता का क्या दोष था। स्कूली ड्रेस में बच्चों को सड़क पर उतारने वालों, सड़क पर टायर जलाने वालों, वाहनों का शीशा फोड़ने वालों, कानून व्यवस्था की धज्जियां उखाड़ने वालों की मंशा क्या थी और प्रशासन अब तक इनके विरुद्ध कौन सी कार्रवाई किया है। यह यहां की जनता जानने को उत्सुक है।

 

 

स्टेशन के साऊथ साइड से जोड़ने वाली निर्माणाधीन सड़क के पीछे राजनीति शुरू हो चुकी है। धनबाद रेल प्रशासन से सम्भवतः यहां एक चूक हो गयी है। धनबाद के एक बड़े नेता से शायद प्रभावित होकर या उनकी मंशा को समझे बगैर रेल प्रशासन ने अपनी योजना में थोड़ा फेर बदल कर दिया। बस, यहीं मामला फंस गया। राजनीति के माहिर खिलाडी दूसरे गुट के नेता यहीं रेल प्रशासन को घेर लेते हैं और एक तीर से दो निशाना साधने का चाल चल देते हैं। वह रेल प्रशासन को अपनी क्षमता बताना चाहते ही हैं, दूसरे खेमा के नेता को भी उसकी सीमा दिखाने का बेहतरीन चाल चल देते हैं। एक हद तक इन नेताओं को सफलता मिलते भी नजर आ रही है। इसके साथ ही जन मानस का समर्थन भी तो चाहिए।

 

 

डी ए वी स्कूल का मैदान। यह एक मुद्दा बन गया है। यहां तो एक बात स्पष्ट है कि जिसे स्कूल का मैदान कहा जा रहा है, वह रेलवे की जमीन है। हाँ, इस जमीन के साथ डी ए वी स्कूल का अस्तित्व जुड़ा हुआ है। लेकिन यहां यह भी सवाल उठता है कि आखिर स्कूल का अस्तित्व बचाने के लिए रेलवे कब तक अपनी जमीन छोड़ेगा। आज नही तो कल स्कूल प्रबंधन के सामने फिर यह विकराल समस्या खड़ी होगी ही।

 

 

धनबाद के लोग स्कूल के सामने की जमीन का सदुपयोग और दुरुपयोग दोनों ही देखते रहते हैं। मैदान में खेल की गतिविधि तो कम “कमाऊ” गतिविधि ज्यादा ही नजर आता रहा है। असमाजिक तत्वों का जमावड़ा भी वहां लगता ही था। खैर, यह विषय अभी इस मुद्दे का साथ फिट नही होता।

 

 

धनबाद स्टेशन के दक्षिणी छोर तक सम्पर्क सड़क के बन जाने से बैंक मोड़ फ्लाई ओवर, गया पुल और श्रमिक चौक का ट्राफिक लोड बहुत कम हो जाएगा।बाघमारा, कतरास, लोयाबाद, महुदा, पुटकी, केंदुआ, सिंदरी, झरिया और बोकारो तक से धनबाद स्टेशन आकर ट्रैन पकड़ने वाले लोग दक्षिणी हिस्से से आराम से स्टेशन पहुंच जाएंगे। उन्हें जाम में नही फंसना होगा और समय की भी बचत होगी। धनबाद रेल प्रशासन का यह पहल सराहनीय है, इसमें तो कोई बहस की गुंजाइश नही होनी चाहिए। डबल इंजन की सरकार के कार्यकाल में या धनबाद की सरकार नगर निगम ही ओवर ब्रिज, गया पुल और श्रमिक चौक के “जाम की श्राप” से लोगों को कौन सा मुक्ति दिला दिया था। आज आशा की एक किरण दिखने लगी तो राजनीति का दौर भी चालू हो गया। यानि जनता के सुख सुविधा से किसी को कोई लेना देना नही है?

 

 

स्कूल का अस्तित्व भी बचा रहे, सड़क का न सिर्फ निर्माण हो बल्कि उसका चौमुखी विकास हो (पार्किंग, पार्क, रौशनी, शौचालय इत्यादि की व्यवस्था), इस लाइन पर सभी को सोचना चाहिए और हो सके तो बगैर किसी भेद भाव के खुद पहल कर रेलवे के साथ सभी को लेकर एक सकारात्मक पहल करनी चाहिए ताकि अपने शहर का सही मायने में विकास हो सके।

 

 

 

 

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