आर पी एन का जाना : कोयलांचल की राजनीति में मचाएगा उथल पुथल ?
अरुण कुमार तिवारी…
AJ डेस्क: झारखंड कांग्रेस की राजनीति में निःसंदेह आर पी एन सिंह अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा पाने में सफल रहे थे। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में उनके शामिल होने पर भले ही अब ‘अंगूर खट्टे हैं’ कहा जाए लेकिन आने वाले समय में कोयलांचल की राजनीति में भी उथल पुथल मचने से इंकार नहीं किया जा सकता।
कोयलांचल के दो मजबूत दबंग घराना के बीच पहले से ही हर तरह के खटास भरे हुए हैं। चुनावी अखाड़ा में एक घराना ने दूसरे घराना को पटखनी देते हुए दशकों से उनके कब्जे की सीट को छीनने में सफलता हासिल कर लिया था। पिछले विधान सभा चुनाव में जीत का स्वाद चखे इस घराना को आर पी एन सिंह का विशेष स्नेह, आशीर्वाद मिला हुआ था। या यूं कहा जाए की राजनीति का ककहरा सीखने वाले को आर पी एन सिंह ने ही पार्टी में स्थापित करवा दिया था तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगा।
अब दशकों से अपने कब्जा वाली सीट गवां चुके घराना की कहानी भी अजब गजब की हो चुकी है। कानूनी दांव पेच में फंसे इस घराना के भीतर भी कुछ अच्छा नहीं चल रहा। भितरखाने में ही छीना झपटी, कब्जा की राजनीति तेज हो चुकी है। पुराने, समर्पित समर्थक, शुभ चिंतक या तो किनारा पकड़ चुके हैं या उन्हें अविश्वसनीय घोषित कर किनारा पकड़ाया जा चुका है। इस घराना की राजनीतिक कमान संभालने वाला चापलूसों के बीच घिर चुका है।
चुनावी खेल में सभी पार्टी के लिए संख्या बल की राजनीति का बड़ा ही महत्व माना जाता है। राजनीति में कोई किसी का रिश्तेदार नही होता। जानकार कहते हैं कि यदि भाजपा की राजनीति में आर पी एन सिंह को तरजीह मिलता है और पार्टी झारखंड के मामले में उनके अनुभव का फायदा उठाने की सोचता है तो कोयलांचल की राजनीति में उथल पुथल मचना स्वाभाविक है। आर पी एन सिंह अपने चहेते कांग्रेसी नेताओं को कांग्रेस से तोड़कर भाजपा में लाने की कोशिश करेंगे। जानकार कहते हैं कि झारखंड कांग्रेस के हर नब्ज से आर पी एन सिंह पूरी तरह वाकिफ हैं।
इस परिस्थिति में कोयलांचल की एक प्रतिष्ठित सीट जिसे भाजपा गवां चुकी है, उसे फिर से कब्जाने का जरूर प्रयास करेगी। आर पी एन सिंह अपने चहेते को पार्टी बदलवा टिकट दिलवाने का भरसक प्रयास करेंगे। जानकार कहते हैं कि उक्त सीट यानि क्षेत्र में अभी जो हालात बने हुए हैं, पार्टी को प्रत्याशी बदलने में भी हिचकिचाहट नहीं होगी। सीट गवां चुके प्रत्याशी का जनाधार भी कमजोर पड़ता जा रहा है।
चापलुसों की वाहवाही में घिर चुका यह घराना खुद अपनी पीठ थपथपाने में मशगूल है। वास्तविकता से दूर दूर तक भेंट नही होती इनकी। मजदूर राजनीति से दूध की मक्खी की तरह फेंका जा चुका है। सिर्फ दौरा, भेंट मुलाकात और किसी तरह खबर में बने रहने के अलावा और कुछ नही बचा है। पार्टी जब इस घराना की वर्तमान स्थिति से वाकिफ हो जाएगी तो आर पी एन सिंह अपने चहेते को टिकट दिला पाने में सफल हो जाएंगे।