संदर्भ: धमकी,रंगदारी प्रकरण और राजनीति ——
AJ डेस्क: धनबाद कोयलांचल का तापमान बढ़ा हुआ है।माहौल कुछ ऐसा बन गया है या बना दिया गया है,मानो हर आम और खास दहशत के साए में सांस ले रहे हैं।सभी असुरक्षित हो गए हैं।दोषारोपण का खेल शुरू हो गया है।खाकी वर्दी के साए में रहने वाले खाकी को चूड़ी पहनाने की बात कर रहे हैं।विपक्षी की राजनीतिक दुकान चल पड़ी है।
धनबाद कोयलांचल की हवा में अचानक ही भय,गुंडागर्दी,रंगदारी और धमकी का महक फैल गया या इस दुर्गंध को यहां के मुट्ठी भर लोगों ने अपने स्तर से दबाने का गलत प्रयास कर उसे विस्फोटक रूप दे दिया।यह गंभीर मुद्दा है।प्रबुद्ध लोगों को इस विषय पर चिंतन करना होगा।
इस संदर्भ में एक पुरानी वाक्या की चर्चा करना भी शायद सही रहेगा।कुछ वर्षो पूर्व धनबाद जेल में “शुक्ला” नामक अपराधी बंद था।जेल में और भी बंदी थे।धनबाद के लोकल दबंग बंदी शुक्ला से दोस्ती गांठ लेते हैं फिर उसके बाद कोयलांचल में रंगदारी,धमकी का खेल शुरू हो जाता है।शुक्ला से भेंट करो,शुक्ला का यह डिमांड है।शुक्ला की इच्छा पूरी नही करोगे तो —।समाज के हर वर्ग में यह संदेश जाने लगा था,वसूली भी होने लगी,कुछ केस पुलिस तक भी पहुंची।तब और अब का माहौल लगभग समान ही है।
यह सही नही है।आखिर जेल से किसी सभ्रांत तक धमकी पहुंच कैसे जाता है।बाहर कौन लोग हैं जो जेल में बंद किसी एक अपराधी के नाम पर लोगों को भयाक्रांत कर उगाही करने का प्रयास कर रहे हैं।क्या उगाही का पैसा जेल में बन्द अपराधी तक भी पहुंचता है ।यह सब जांच का विषय है।
इसके साथ एक और गंभीर विषय जुड़ा हुआ है,जो जांच से ज्यादा ” चिंतन” का विषय है।इन अपराधियों का मनोबल किसने बढ़ाया,कौन बढ़ा रहा है।किसी चेंगड़ा की धमकी पर चुपचाप मोटी राशि का भुगतान कर देना कितना सही कदम है।अपराधी के “मुंह में खून का चस्का ” लगाने वाले कितने दोषी हैं।हमारे यहां रिश्वत लेना और देना दोनों जुर्म है तो रंगदारी मांगना जुर्म है,तब रंगदारी देना ——-।
वर्तमान परिपेक्ष्य में बात की जाए।एक पार्टी है जिसे अभी सिर्फ और सिर्फ मुद्दा चाहिए,राजनीति चमकाने के लिए।ऐसा नहीं है कि उनके राज में अपराध नहीं होता था।पुलिस विभाग बंद हो गया था।घरों में सप्लाई वाटर ओवरफ्लो करने लगा था।सूबे के मरीज इलाज के लिए अन्य राज्यों में जाना बंद कर दिए थे।लेकिन राजनीति है। उन्हें अपनी भूमिका निभानी ही चाहिए।
अब एक और नेता जी हैं।डॉक्टर को धमकी,रंगदारी प्रकरण को पारिवारिक रंजिश के तरफ डायवर्ट कर रहे हैं।वह भी अपनी जगह सही हैं। हर कोई अपना अपना साधने पर लगा हुआ है लेकिन प्रबुद्ध वर्ग को इससे अलग हटकर चिंतन करना होगा।सिर्फ दोषारोपण से काम नहीं चलेगा और ना ही पॉजिटिव रिजल्ट हाथ लगेगा।मुट्ठी भर रंगदारों का मन बढ़ाने के बजाए उन्हें सामाजिक स्तर से भी कुचलने के बारे में सोचना होगा।
अब रही पुलिस की बात।पुलिस तो कहेगी ही कि अनुसंधान जारी है,दोषी सलाखों के पीछे भेजे जाएंगे।ऐसा नहीं है कि पुलिस सिर्फ कोरा आश्वासन देती है।हाल ही में धनबाद में घटित कई अपराधिक कांडो का उदभेदन भी हुआ है।समाज को लगता है कि पुलिस लापरवाही बरत रही है तो विरोध होना ही चाहिए।आंदोलन हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।दबाव बनाना भी चाहिए तो सूचना आदान प्रदान की भूमिका भी निभानी चाहिए।
यहां एक बात स्पष्ट करना जरूरी लगा कि लेखक न तो किसी का विरोध करने और न किसी का फेवर करने की मंशा रखता है।लेखक की मंशा स्पष्ट है कि हर दोषी की पहचान हो,सभी अपने गिरेबान में भी अवश्य झांके,अलग अलग समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले एक अच्छा वातावरण देने का प्रयास करें न कि अपने को चमकाने के चक्कर में आम आवाम को भी दहशत में लाने का।धनबाद पुलिस से भी सभी को अपेक्षा है कि वह अपराधियों को तत्काल गिरफ्तार कर शांति,अमन, चैन का वातावरण कायम करे।