श्रीमद भागवत कथा पुराण का श्रवण करने से अंतः करण शुद्ध हो जाता है- प्रताप चंद्र
AJ डेस्क: धनबाद श्री राधाबल्लभ सत्संग समिति एवं मारवाड़ी युवा मंच धनबाद शाखा द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ का मंगलवार को समापन किया गया। कथावाचक पूज्य श्रीहित प्रतापचन्द्र गोस्वामी जी ने बताया कि जो जीव श्रीमद्भागवत कथा पुराण का श्रवण करता है उसका अंत: करण शुद्ध हो जाता है और उसके तीन प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। सात दिनों की कथा सुनना तभी सार्थक माना जाता है, जब हम भगवान द्वारा बताए गए रास्तों पर चलते हैं। यह कथा मनुष्य को इस भवसागर से तार देने वाली है। गुरुदेव जी ने बताया कि सप्तम दिवस की कथा अति महत्वपूर्ण है, जो किसी कारणवश पूरे सातों दिन कथा में नहीं आ पाते अगर वे एकाग्रचित होकर पूरे भक्ति भाव से सप्तम दिवस की कथा श्रवण करें तो उन्हें सभी दिवस की कथा श्रवण का फल प्राप्त होता है।
भगवान कृष्ण के पावन धाम वृंदावन से आये हुए कथा वाचक पूज्य गुरुदेव अपने भजनों एवं कथाशैली के लिए प्रसिद्ध हैं। कथा परिसर में प्रथम दिवस से ही भक्तों की भारी भीड़ हो रही है। जातिवाद का विरोध करते हुए गुरुदेव जी ने बताया कि- “हमारे सनातन धर्म में सभी वर्गों को भगवान का ही अंश माना गया है। जहाँ ब्राह्मणों को भगवान का मुख, क्षत्रिय को उनकी भुजा, वैश्य को उदर , एवम शुद्र को उनके चरण की संज्ञा दी गयी है। प्रभु का सर्वस्व पवित्र है इसलिए किसी मे भी भेदभाव न करें और सभी मे ईश्वर का दर्शन करें।”
सनातन धर्म के विषय में उन्होंने कहा कि- “सनातनी होना हमारा सौभाग्य हैं। हमारे यहां ईश्वर के साथ साथ प्रकृति को भी पूजा जाता है, लेकिन आज के समय में सनातनी अलग थलग हो रहे हैं, जो कि अत्यंत चिंता का विषय है। हम सभी सनातनियो को एकजुट होकर हिन्दू धर्म को बढ़ावा देना चाहिए जिससे हमारी अति प्राचीन संस्कृति सुरक्षित हो सके। सभी को ईश्वर की पूजा पाठ करना चाहिए जिससे आत्मिक शक्ति भी प्राप्त होती है।
आगे कथा में गोस्वामी जी ने भगवान के दो परम् मित्रों का वर्णन करते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने केवल दो ही लोगो को अपना परम् मित्र बनाया। एक उद्धव जी जो अत्यंत ज्ञानी थे और दूसरे बाल सखा श्री सुदामा जी जो भक्ति और प्रभु पर निष्ठा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। अपने जीवन मे इतना अकाल होते हुए भी श्री सुदामा जी सदैव ही ईश्वर चिंतन में मग्न रहते और कभी भी भक्ति के सिवा उनसे कुछ भी चाह नहीं करते थे। इसलिए हमें भी सुदामा की तरह हर परिस्थिति में पूर्ण भक्ति भाव व श्रद्धा से उनका स्मरण करना चाहिए। प्रांगण में चल रहे सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव के विश्राम दिवस पर गोस्वामी जी ने सुदामा चरित्र का वर्णन झांकी के माध्यम से सभी को दर्शाया। जिसे देखकर सभी भक्तजनों के आखों से आसूं बहने लगे। मित्रता का ऐसा उदाहरण बड़ा ही भावपूर्ण रहा।
परमपूज्य गुरुदेव जी ने बताया कि अपने मन व कर्म को हमे ईश्वर को दे देना चाहिए जिससे हम किसी भी आसक्ति से बच जाएंगे और कभी भी माया के बंधन में नही पड़ेंगे। मन को एकमात्र प्रभु के चिंतन से शांत किया जा सकता है। प्रभु की कथा द्वारा जीवन मे व्याप्त अंधकार को खत्म किया जा सकता है।
गोस्वामी जी का मानना है “अपने लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन जो औरों के लिए जीता है, उनका सहारा बनता है उसे भगवान सेवा भाव से ही प्राप्त हो जाते हैं। एक मूक पशु-पक्षी भी अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं लेकिन भगवान ने मनुष्य को दान देने की प्रवत्ति दी है, सेवा करने की प्रवृत्ति दी है जिससे वह अपने साथ साथ औरो का जीवन भी सुखमय बना सकता है। उसपर भी गौमाता की सेवा अत्यंत सुखदायनी है। गौमाता की सेवा केवल आपका ही नहीं अपितु आपके पितरों का भी कल्याण करतीं हैं।
जीवन के सत्य से परिचित कराते हुए गुएउदेव जी ने बताया कि जीवन अकल्पनीय है। हमे सदा सत्कर्म करते रहना चाहिए और भाग्य के भरोसे न रहकर पूरी लगन से मेहनत करनी चाहिए। ऐसे ही अनेकानेक दिव्य प्रसंगों के साथ व अत्यंत मधुर भजनों के तालों पर झूमते हुए श्रीधाम वृन्दावन की दिव्यता एवं भव्यता बतलाते हुए कथा सपन्न हुई।
