60 महीने V/S 60 दिन: अब झरिया की जनता को करना है तय

अरुण कुमार तिवारी

 

AJ डेस्क: झरिया की जनता जर्नादन को 60 महीने और 60 दिन में से तय करना है कि उनका “मत” किसके साथ है। 60 महीने और 60 दिन से यहां तात्पर्य है कि पिछला चुनाव हारने के बाद भी एक प्रत्याशी पांच वर्षों तक लगातार जनता जर्नादन के हर सुख दुःख में शामिल होते रहीं तो दूसरी प्रत्याशी चुनाव की सुगबुगाहट शुरू होने के बाद क्षेत्र में आना जाना शुरू करती हैं। यह तो अब क्षेत्र की जनता जर्नादन के जुबान पर भी है।

 

 

झरिया में भी राजनीतिक तपिश बढ़ने लगा है। वोटर रूपी जनता अब गुजरे पांच वर्ष का लेखा जोखा देखने लगी है तो आने वाले पांच वर्षों में अपना भविष्य भी तलाश रही है। चौक चौराहों, चाय पान की गुमटियों पर चुनावी चर्चा शनै शनै जोर पकड़ने लगी है। किस प्रत्याशी को वोट देना चाहिए और किसे नहीं देना चाहिए, अब यह गप्प में शामिल हो चुका है। उसी “गप्पास्टिक” चर्चा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है 60 महीने V/S 60 दिन।

 

 

अब देखना यह है कि यह 60 का गणित (महीना और दिन) वोट की राजनीति में कितना अहम भूमिका निभाता है। पिछले पांच वर्षों तक क्षेत्र में लगातार उपस्थिति बनाए रखने, छोटी सी छोटी घटना पर किसी का दुख दर्द बांटने पहुंचने वाले शख्सियत को जनता जर्नादन इस बार ताज पहनाती है या नहीं। जबकि चर्चाओं पर गौर किया जाए तो जनता जर्नादन 60 महीने की मेहनत का उचित परिणाम देने के मूड में नजर आ रही है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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