कांग्रेस के 124 A को हटाने की इच्छा पर छिड़ गया विवाद

AJ डेस्क: राहुल गांधी ने आज कांग्रेस के तरफ से लोकसभा चुनाव के लिए घोषणा पत्र जारी करते हुए कहा है कि यदि कांग्रेस सत्ता में आती है तो वो भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए को खत्म कर देंगे। आईपीसी की यह धारा देशद्रोह के अपराध को परिभाषित करती है। कांग्रेस अध्यक्ष का कहना है कि देश में इस धारा का गलत दुरुपयोग किया जाता रहा है, इसलिए कांग्रेस की सरकार बनते ही इस धारा को खत्म कर दिया जाएगा। इस धारा को लेकर राहुल गांधी ने अपने विचार तो बता दिए लेकिन वो ये शायद भूल गए कि कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में ही इसका जमकर इस्तेमाल भी किया गया है।

 

 

धारा 124 को खत्म करने की बात करने वाले राहुल गांधी काटूर्निस्‍ट असीम त्रिवेदी और अरुंधती रॉय को क्यों भूल गए

और यदि आप भी भूल गए है तो जरा अपना दिमाग साल 2012 में वापस ले जाइए। यह वही साल था, जब अन्ना हजारे का जन आंदोलन सड़कों से लेकर घर-घर तक पहुंच चुका था। इसी दौरान पुलिस ने यूपी के कानपुर के रहने वाले एक कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को गिरफ्तार किया था, जिनपर धारा 124 ए देशद्रोह और कई दूसरे चार्ज भी लगाए गए थे।

 

 

कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी पर आरोप था कि उन्होंने महाराष्ट्र में अन्ना हजारे की रैली में कुछ पोस्टरों का इस्तेमाल किया जो संविधान के खिलाफ थे। असीम पर आरोप था कि उन्होंने बैनर के जरिए संविधान का मजाक उड़ाया। रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के एक सदस्य की शिकायत के आधार पर असीम त्रिवेदी को गिरफ्तार किया गया था। अब राहुल एक बार याद कर लें कि उस समय यूपीए की ही सरकार थी और मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री।

 

 

साल 2010 में लेखिका अरुंधति रॉय के खिलाफ भी देशद्रोह के तहत केस दर्ज किया गया था। इसमें उनके साथ कश्मीर हुर्रियत के नेता सैयद अली शाह गिलानी भी शामिल थे। दोनों पर आरोप था कि उन्होंने कश्मीर के माओवादियों के पक्ष में बयान दिया जो धारा 124 ए का उल्लंघन करता है।

 

 

हालांकि, यूपीए के कार्यकाल में सिर्फ ये ही दो नहीं बल्कि और भी कई ऐसे मामले आए जिसमे धारा 124ए के बखूबी इस्तेमाल किया गया। साल 2007 में बिनायक सेन को नक्सल विचारधारा फैलाने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया। बिनायक सेन के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज भी किया गया। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बिनायक सेन को जमानत मिल गई थी।

 

 

क्या है ये धारा 124ए और क्या है इसका इतिहास

साल 1870 में ब्रिटिश औपनिवेशक प्रशासन ने सेक्शन 124 ए को आईपीसी के छठे अध्याय में जोड़ा था। 19 और 20वीं सदी के दौरान इस कानून का इस्तेमाल कई भारतीय राष्ट्रवादियों और स्वतंत्रता सेनानियों पर किया गया था।

 

 

भारतीय दंड संहिता के अनुसार, 124 ए के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति पर देशद्रोह का आरोप लगाया जा सकता है। इसे अगर समझे तो कोई व्यक्ति लिखित या मौखिक, इशारों से या साफ तौर पर दिखाकर या किसी भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल जो भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के लिए अवमानना, घृणा, असंतोष पैदा करने का प्रयास करता है तो इस धारा के अंतर्गत उसपर केस दर्ज किया जाता है।

 

 

 

 

 

 

 

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