“दिल के अरमाँ आंसुओ में बह गए”- गया पुल भर गया, बन गया यह राष्ट्रीय मुद्दा

AJ डेस्क: एकदम साधरण सी बात है। छोटी सी समस्या है लेकिन मुद्दा गम्भीर है। दशकों वक्त लग गए, परन्तु जिम्मेवारी तय नहीं हो पाई। समस्या जस की तस बरकरार रह गयी। यहां बात हो रही है धनबाद के उत्तर – दक्षिण हिस्सा को जोड़ने वाले “गया पुल” की।

 

 

हल्की बारिश हुई नहीं की सड़क तालाब का रूप धारण कर लेती है और धनबाद के तमाम विकास और जिम्मेवार एजेंसियों को मुंह बिचकाने लगती है। यदि हम अपने प्रतिनिधियों को जिम्मेवार ठहरावें तो मजाक ही लगेगा। साहब, एक सांसद और विधायक को इतना हल्का भी नहीं लेवें। अब उनके जिम्मे यही काम बाकि है क्या। तो फिर शहर को सुंदर बना रहे नगर निगम की बात होगी। निगम बने भी आठ साल गुजर गए, बेचारा नाला का पानी सड़क पर बहने से रोक ही नहीं पाता तो वह गया पुल मसले पर क्या करेगा। शहर का भ्रमण करके देखें, नगर निगम ने विकास की गंगा बहा रखी है। जहाँ आबादी नहीं है, वहां भी बड़े-बड़े नाले बन रहे हैं। नाला की गहराई और चौड़ाई भी कुछ अलग ही कहानी बयाँ करती हैं। आखिर इन नाला में कहाँ का और कैसा पानी बहेगा, इसपे दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है। निगम दूरदर्शी है, आज नहीं कल घर बनेंगे ही, आबादी बसेगी ही। फिर अग्रिम विकास में क्या दिक्कत है। जो पुरानी समस्या है, उसे झेलने की आदत तो यहां की जनता को पड़ ही चुकी है।

 

 

 

 

सरायढेला, हीरापुर से बैंक मोड़ की ओर जाना है या उधर से इधर आना है। यह प्रोग्राम बनते ही बैंक मोड़ फ्लाई ओवर ब्रिज और गया पुल जेहन में आ जाता है। जाम का दृश्य आँख के सामने सिनेमा की तरह चलने लगता है, लोगों की रूह कांप उठती है। फिर भी मजबूरी है। दूर -दूर तक विकल्प नहीं है। जाएँ तो भला जाएँ कहाँ। सही है, बैंक मोड़ से कोर्ट तक आने जाने में जो समय लगता है उतना तो स्टेशन से निरसा जाने में नहीं लगता।

 

 

 

 

सरकारी दफ्तरों में न जाने कितने DPR रखे पड़े होंगे। दशकों से सुना जा रहा है कि पूजा टॉकीज से नया बाजार तक फ्लाई ओवर ब्रिज जल्द ही बनने जा रहा है। फलां कम्पनी-एजेंसी को DPR बनाने की जिम्मेवारी दी गयी है। बेचारी जनता मन ही मन खुश भी हो लेती है। नया पुल कैसा होगा, अब जाम की समस्या से निजात मिल जाएगा। आदि-आदि सोचकर जनता खुश हो लेती है, सबकी कल्पना कर लेती है, फिर ठगा हुआ महसूस कर अपने पुराने हिचकोले वाली तालाब रूपी गया पुल के साथ संबंध निभाने लगता है।

 

 

 

 

आज बिन मौसम फिर बारिश हुई। गया पुल का वही पुराना दृश्य है। हमारे नेता जनता के बीच हैं। वोट मांग रहे हैं। विकास का दावा कर रहे हैं। हम कई कारणों में बंटे हुए हैं। प्रत्याशी का स्वागत कर रहे हैं। उनके मांगने के पहले खुद का और परिचितों का भी वोट दिलाने का ठेका लेने लग रहे हैं। अपने सांसद महोदय वर्ष 2009 के पहले विधायक थे। तब भी यह समस्या थी। अभी सांसद और विधायक एक ही पार्टी के हैं तो भी यह समस्या बरकरार है। अब काले हीरे की नगरी धनबाद से मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री होंगे तब ही न इस राष्ट्रीय समस्या का निदान हो पाएगा। यहां राष्ट्रीय समस्या इसलिए कहा गया कि धनबाद को नजदीक से जानने वालों से यदि आपकी लम्बे समय के बाद भेंट होती है तो वह पूछते हैं बैंक मोड़ और गया पुल वैसा ही है या कुछ बदला भी है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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