कारगिल दिवस: जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो क़ुरबानी
AJ डेस्क: भारत और पाकिस्तान के बीच जम्मू एवं कश्मीर के कारगिल में 1999 में छिड़े युद्ध को दो दशक हो गए हैं। संघर्ष की शुरुआत तब हुई जब पाकिस्तानी सैनिक अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने की साजिश करते हुए जम्मू एवं कश्मीर के कारगिल जिले में दबे पांव घुस आए। भारत के लिए ये बेहद मुश्किल हालात थे, जब ऊंची चोटियों पर पाकिस्तानी सैनिकों ने डेरा जमा लिया था, जबकि भारतीय सैनिक नियंत्रण रेखा पर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र के निचले हिस्से से जवाबी कार्रवाई कर रहे थे। पर देश की सीमाओं की सुरक्षा का जुनून व जज्बा कुछ ऐसा था कि तमाम मुश्किलों को पार करते हुए भारत के रणबांकुरों ने पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ दिया और 26 जुलाई, 1999 को ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत विजय पताका फहराई।
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देश उन रणबांकुरों का हमेशा ऋणी रहेगा, जिनके शौर्य व बलिदान के कारण देश की सीमाएं सुरक्षित हो सकीं। कारगिल युद्ध के दौरान सभी सैनिकों ने अद्भुत वीरता का परिचय दिया, जिनकी वजह से भारत 1965 और 1971 के बाद एक बार फिर पाकिस्तान को धूल चटाने में सफल रहा। यहां उन 12 जवानों की शौर्य गाथाओं का उल्लेख है, जिनकी बहादुरी ने दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए:
कैप्टन अनुज नायर
कैप्टन अनुज नायर भारतीय सेना की जाट रेजीमेंट की 17वीं बटालियन के सैन्य अधिकारी थे, जो टाइगर हिल पर संघर्ष के दौरान 7 जुलाई, 1999 को शहीद हो गए। उनकी अगुवाई वाली कंपनी ने दुश्मनों के चार बंकरों का पता लगाया। इस संघर्ष के दौरान उन्होंने नौ पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया और तीन मशीन गन बंकर नष्ट कर डाले। युद्ध के दौरान अदम्य बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
कैप्टन एन केंगुरुस
कैप्टन एन केंगुरुस भारतीय सेना की राजपूताना राइफल्स की सेकंड बटालियन के अधिकारी थे, जो कारगिल युद्ध के दौरान 28 जून को द्रास सेक्टर में लोन हिल पर संघर्ष के दौरान शहीद हो गए। उन्हें रणक्षेत्र में बेमिसाल बहादुरी के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। करीब 16,000 फुट की ऊंचाई पर माइनस 10 डिग्री के तापमान में उन्होंने अपने जूते उतार दिए थे और किसी तरह पहाड़ी क्षेत्र में ऊपर चढ़ते हुए दुश्मनों के ठिकाने पर रॉकेट लॉन्चर से वार किया था।
लेफ्टिनेंट कीशिंग क्लिफोर्ड नॉन्गरम
लेफ्टिनेंट कीशिंग क्लिफोर्ड नॉन्गरम जम्मू एवं कश्मीर लाइट इंफैंट्री के अधिकारी थे, जो पहली जुलाई, 1999 को 4812 चोटी पर फतह के लिए हुए संघर्ष के दौरान शहीद हो गए। उन्हें अद्भुत वीरता के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
मेजर पद्मपाणि आचार्य
मेजर पद्मपाणि आचार्य भारतीय सेना की राजपूताना रायफल्स की सेकंड बटालियन से जुड़े थे। वह कारगिल युद्ध के दौरान 28 जून, 1999 को शहीद हो गए। जंग के मैदान में अदम्य साहस व वीरता का परिचय देने वाले मेजर को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। वह उस कंपनी के कमांडर थे, जिन्होंने तोलोलिंग में दुश्मनों के खिलाफ जंग छेड़ी थी। दुश्मनों की ओर से अंधाधुंध फायरिंग के बावजूद उन्होंने अपने लोगों को मुकाबले के लिए प्रेरित किया।
मेजर राजेश सिंह अधिकारी
भारतीय सेना के अधिकारी रहे मेजर राजेश सिंह कारगिल युद्ध के दौरान 30 मई, 1999 को शहीद हो गए। उन्हें युद्ध क्षेत्र में अनुकरणीय वीरता प्रदर्शित करने के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। युद्ध के दौरान वह दुश्मन के ठिकानों की ओर बढ़ रहे थे, जब उनपर फायरिंग हुई। हालांकि वह अपनी अदम्य बहादुरी का परिचय देते हुए आगे बढ़ते रहे और घायल होने के बावजूद 3 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया।
कर्नल सोनम वांगचुक
भारतीय सेना के अधिकारी कर्नल सोनम वांगचुक कारगिल युद्ध के दौरान लद्दाख स्काउट रेजीमेंट में थे। उस वक्त उन्होंने चोरबैट ला टॉप पर पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ ऑपरेशन की अगुवाई की थी। उन्होंने बटालिक सेक्टर में साहस व वीरता के साथ अपनी जान को जोखिम में डालते हुए टीम की अगुवाई की और दुश्मनों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया। उनकी वीरता व शौर्य को देखते हुए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
मेजर विवेक गुप्ता
भारतीय सेना की राजपुताना राइफल्स की दूसरी बटालियन के मेजर विवेक गुप्ता कारगिल युद्ध के दौरान 12 जून, 1999 को शहीद हो गए। हालांकि अपनी शहादत से पहले वह द्रास सेक्टर में दो महत्वपूर्ण चौकियों पर कब्जा करने में सफल रहे। संघर्ष के दौरान दुश्मनों की ओर से अंधाधुंध गोलियां बरसाई गईं, पर वे बिना रुके आगे बढ़ते रहे। युद्ध क्षेत्र में उनके अदम्य साहस को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय
गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन से जुड़े रहे लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय की शौर्य गाथा भी पीढ़ियों को प्रेरणा देने वाली है। उनके साहसिक कारनामों के कारण ही भारत 11 जून, 1999 को बटालिक सेक्टर से घुसपैठियों को खदेड़ने में सफल रहा। उनके कुशल नेतृत्व में भारत ने जौबार टॉप और खलुबार पर 3 जुलाई को कब्जा जमाया। हालांकि वह दुश्मनों की ओर से हुई अंधाधुंध गोलीबारी की चपेट में आ गए और शहीद हो गए। बाद में उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
नायक दीगेंद्र कुमार
कारगिल युद्ध के दौरान नायक दीगेंद्र कुमार लाइट मशीन गन ग्रुप के कमांडर थे। भारतीय सेना की राजपूताना राइफल्स से जुड़े रहे दीगेंद्र कुमार ने जंग-ए-मैदान में अद्भुत वीरता का परिचय दिया। दुश्मनों की ओर से चली गोली उनके बाएं हाथ में लग गई थी, लेकिन उन्होंने हौसला नहीं हारा और एक हाथ से ही दुश्मनों पर गोली चलाते रहे। वह 31 जुलाई, 2005 को सेना से रिटायर हुए। उनकी इस बहादुरी के लिए 15 अगस्त, 1999 को उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
राइफलमैन संजय कुमार
13वीं जम्मू एवं कश्मीर राइफल्स के राइफलमैन संजय कुमार को कारगिल युद्ध के दौरान सीने में और बांह में गोली लगी थी। गंभीर रूप से जख्मी होने के बावजूद उन्होंने जिस वीरता का परिचय दिया, उसने उनकी टीम के अन्य लोगों को भी प्रेरित किया और जोश व जज्बे से लबालब प्लाटून ने दुश्मनों के बंकरों पर हमला कर एरिया फ्लैट टॉप पर कब्जा कर लिया। इस जंग के दौरान खुद संजय कुमार ने तीन घुसपैठियों को मार गिराया। उन्हें बाद में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
कैप्टन विक्रम बत्रा
13वीं जम्मू एवं कश्मीर राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा को तोलोलिंग रिज पर सबसे ऊंची चोटी को कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जहां पाकिस्तानी घुसपैठिये बंकरों में रह रहे थे। उन्होंने अदम्य वीरता का परिचय देते हुए दुश्मनों के 5 सैनिकों को मार गिराया। हालांकि इस दौरान वह गंभीर रूप से घायल हो गए, पर अपने जख्मों की परवाह किए बगैर उन्होंने दुश्मनों को ललकारा और उन्हें घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। वह 26 जुलाई, 1999 को शहीद हो गए, जब वह एक घायल सैनिक को बचाने की कोशिश कर रहे थे। जिस चोटी पर वह शहीद हुए, उसे आज ‘बत्रा टॉप’ के नाम से जाना जाता है।
ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव
ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव ‘घातक’ प्लाटून का हिस्सा थे, जिन्हें टाइगर हिल पर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण तीन बंकरों पर कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। कारगिल युद्ध के दौरान अद्भुत वीरता के लिए उन्हें 4 जुलाई, 1999 को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
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