भटके, बेरोजगार युवाओं की फ़ौज है “घराने”के पास, खूब होता है उनका शोषण (पार्ट- 02)

AJ डेस्क: युवा शक्ति को नजर अंदाज कर बादशाहत कायम रख पाना संभव नही है। घराना इस खेल को भली भांति समझता है। एक दौर था जब घराने के पास युवा समर्थकों की फ़ौज हुआ करती थी। हाँ, यह अलग बात है कि उस वक्त घराने का नेता भी युवाओं की भावनाओं का कद्र किया करता था। अब परिस्थितियां बदल गयी हैं। सोच बदल गए हैं। नेतृत्व बदल चुका है। अब उनकी फ़ौज में युवा तो हैं लेकिन भटके हुए बेरोजगार युवा।

 

 

 

 

कोयलांचल की फिजा में एक अलग तरह की बयार बहती है। भटके हुए बेरोजगार युवक अपने ऊपर “घराना का टेग” लगे होने पर गर्व महसूस करते हैं। युवाओं के इस मानसिकता का पूरा पूरा लाभ घराना उठाता है। कोलियरी में दबंगई दर्शानी हो या रेलवे साइडिंग के काली कमाई पर वर्चस्व का खेल खेलना हो, यह अपने आलिशान बंगला के शीतगृह में बैठे ठंढी हवा खाते हैं और उधर इनके नाम पर युवाओं की टोली खून खराबा पर उतारू रहती है। कोयला किसका, ट्रांसपोर्टिंग किसकी, वर्चस्व कौन जमाना चाहता है। तिजोरी किसकी भरेगी। इन सारी बातों से अनभिज्ञ बेरोजगार युवा चंद पैसे, शराब की बोतल के लालच में मारपीट से लेकर केस मुकदमा और जेल यात्रा तक भोग जाते हैं।

 

 

 

जानकार बताते हैं कि पहले ऐसा नही था। घराना का कैप्टन युवाओं को ठेकेदारी से लेकर अन्य रोजगार दिलाता था। उन्हें रोजगार देकर उनका समर्थन हासिल करता था। तब ही तो एक आवाज पर “जन सैलाब” उमड़ पड़ता था। अब स्थिति बदली है। अभी के नेतृत्वकर्ता पहले अपनी उसके बाद चाटुकार और रिश्तेदार तक सिमट कर रह गए हैं। समूह को साथ लेकर चलने की न तो क्षमता है इनके पास और न ही सकारात्मक सोच ही है।

 

 

 

 

इसके लिए कोई एक दोषी नही है। युवाओं में घराना का बिल्ला लगाने की मानसिकता भी इस पीढ़ी के लिए फायदेमंद साबित होता रहा है। दूसरी ओर प्रशासन इस खतरनाक खेल से पूरी तरह अनभिज्ञ नजर आता है। बेरोजगारी का दंश झेल रहे अशिक्षित युवा वर्ग कुछ भी कर गुजरने से नही हिचकिचाता। जान की बाजी लगाकर वह माफियाओं की तिजोरी भर रहे हैं। आउटसोर्सिंग से लेकर रेलवे साइडिंग तक बेरोजगार युवाओं की टोली बनाकर जिला प्रशासन उन्हें रोजगार उपलब्ध करा देवे तो इन माफियाओं की गलत मंशा कभी पूरी नही होगी। यही नही कोयला क्षेत्र में बमो के धमाके और गोलियों की तड़तड़ाहट भी थम जाएगी। कोयला बेगुनाहों के खून से लाल होना बंद हो जाएगा। मजदूर राजनीति की आड़ में युवाओं का हो रहा शोषण और अनाप शनाप काली कमाई पर अंकुश लग जाएगा। इसके लिए प्रशासन को मुहिम छेड़ना होगा।

 

 

 

 

धनबाद पुलिस का रिकॉर्ड खंगालने पर भयावह तस्वीर सामने आ जाएगी। इन दबंग माफियाओं की तिजोरी भरने के चक्कर में कोयलांचल के न जाने कितने युवा काल के मुंह में समा चुके हैं। न जाने कितने बम, गोली से गम्भीर रूप से जख्मी होकर लम्बी इलाज के चक्कर में फंस गए हैं। और न जाने कितनों का घर केस मुकदमा के चक्कर में उजड़ चुका है। इन युवाओं को मिला ही क्या? माफियाओं की तिजोरी भरने वाले इन युवकों का जीवन स्तर बदला क्या? क्या इन्हें दो वक्त की रोटी नसीब हुई? क्या यह भी लग्जरी वाहनों में घुमने लगे? यह अनुत्तरित सवाल है सरकारी तंत्र से। इसके लिए यह माफिया जितने जिम्मेवार हैं उससे कम सरकारी तंत्र जिम्मेवार नही।

 

 

 

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