कोयलांचल पर “राज करने वाला घराना” खुद दरकने लगा (पार्ट- 03)

अब तक आपने पढ़ा किस तरह कोयलांचल के माफिया बेरोजगार अशिक्षित युवाओं का शोषण करते हैं। अब पढ़ें- दशकों से कोयलांचल पर राज करने वाले उस घराने की नींव कैसे और क्यूँ दरकने लगी है——–

 

 

AJ डेस्क: एक दो तीन नही बल्कि दशकों दशक से कोयलांचल पर “राज” करने वाला यह घराना अब भीतर ही भीतर दरकने लगा है। खण्ड खण्ड में विखण्डित होने लगा है इनका साम्राज्य। कुशल नेतृत्व का संकट साफ झलकने लगा है। जिसमें क्षमता थी नेतृत्व की या तो वह फरार है या सलाखों के पीछे है। ऐसा नही है कि पहली बार यह स्थिति देखने को मिल रही है लेकिन तब और अब में जमीन आसमान का अंतर भी आ गया है। पहले लड़ाई विरोधियो के साथ होती थी और इधर पूरा परिवार एकजुट होता था। अब जंग परिवार के भीतर है। दशकों के इस साम्राज्य पर फ़िलहाल तो संकट के बादल मंडराते दिख रहे हैं।

 

 

 

अलग झारखण्ड राज्य की स्थापना के बाद से ही इस साम्राज्य की तस्वीर बदलने लगी। इस घराने से तो प्रतिनिधित्व का मौका मिलता रहा लेकिन पहली बार इस घराने से किसी को बत्ती लगी गाड़ी मिली थी। उस वक्त कयास लगाया जा रहा था कि यह घराना अब और भी मजबूत होकर कोयलांचल के क्षितिज पर उभरेगा। उस वक्त तक इस घराने में एकजुटता थी। झारखण्ड की राजनीति में धमक बरकरार थी। लेकिन अचानक सत्ता का मिला पावर साम्राज्य की नींव ही हिलाने लगा। 18 वर्षों में इस घराने का तस्वीर ही बदरंग होने लगा। खण्ड खण्ड में टूटने के बाद सभी अपना अपना साम्राज्य स्थापित करने की जुगत में भीड़ गए।

 

 

 

 

भौतिक युग में “धन की कामना” ने घुन की तरह शनैः शनैः कोयलांचल की शान कहे जाने वाले “इम्पेरियल” को भीतर ही भीतर कमजोर करना शुरू कर दिया। चल अचल सम्पति का विवाद खड़ा हुआ ही, कोयले की काली कमाई पर भी एकाधिकार जमाने के लिए खुनी संघर्ष तक शुरू हो गया। अलग अलग गुटों में बंट चुके परिवार के सामने एक और संकट आ खड़ी हुई। क्षेत्र में कौन किसका समर्थक है यह तय कर पाना मुश्किल होने लगा। समर्थक भी संदेह की नजर से देखे जाने लगे। इसका साइड इफेक्ट इम्पेरियल पर पड़ा भी। दशकों उनका झोला ढोने वाले साथ छोड़कर चले भी गए।

 

 

 

गुजरते समय के साथ इस साम्राज्य के भीतर बहुत ही शांति से “त्रिकोणीय” संघर्ष का भी नींव पड़ गया। हालाँकि यह त्रिकोणीय संघर्ष बहुत ही साइलेंट मूड में चल रहा है। नई पीढ़ी के द्वारा बागडोर सम्भालते ही अपने साथ रहने वाले कथित गार्जियन को टारगेट करना शुरू कर दिया गया। मुहिम सा चलाया गया। गार्जियन मर्माहत थे लेकिन लोक समाज के लिहाज में खुलकर विरोध में कुछ बोल नही पा रहे थे। वह अपने अग्रज का अहसान भी ढो रहे थे। ऊपरी तौर पर अभी यह विवाद दिख नही रहा है लेकिन भविष्य में यह क्या गुल खिलायेगा, यह समय के गर्भ में है।

 

 

 

 

बिखराव के राह पर चल पड़े कोयलांचल के इस चर्चित घराने की यात्रा यही समाप्त नही होती। भीतरखाने से मिल रही संकेत के अनुसार इस साम्राज्य के दो सितारे भी पारिवारिक परम्परा का निर्वाह करने की दिशा के तरफ अग्रसर हैं। इनके बीच भी एक दूसरे के समर्थकों का पत्ता काटने का होड़ मचा हुआ है। यह दोनों भी अपने समर्थकों की अलग अलग टोली बनाने पर विश्वास रखते हैं जबकि पहले घराने के समर्थक हुआ करते थे। व्यक्ति विशेष के नही। इनके बीच अभी नेतृत्व और कुशल अभिभावक का भी घोर संकट है जो इस बिखराव को रोक सके।

 

 

 

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