“लोहे का चना” चबाना होगा घराना को राजनीतिक अखाड़ा में (पार्ट- 04)

AJ डेस्क: कोयलांचल की राजनीति में कभी अपनी “धाक” रखने वाले इस घराने को अब “लोहे की चना” चबाना पड़ेगा। एक समय था जब इस घराने की राजनीतिक धमक दिल्ली तक सुनाई पड़ती थी। अब बदलते समय ने समीकरण को भी बदल डाला है। केंद्र से लेकर झारखण्ड तक की राजनीतिक फिजां बदल चुकी है। बदले समीकरण में अभी यह घराना कहीं फिट नही बैठता। हाल ही में इस घराने पर जब आफत का पहाड़ टूटे थे तो कहीं से भी इन्हें राजनीतिक सहयोग नही मिला। जबकि हर प्रमुख दरबार के चौखट तक सहयोग का दस्तक इनके द्वारा दिया गया था।

 

 

 

 

पिछले विधान सभा चुनाव का माहौल ही अलग था। एक पार्टी विशेष के पक्ष में लहर बह रही थी। अब वैसा कुछ नही है। दूसरी बात इस घराने का अंदरूनी समीकरण भी बदला है। एक और महत्वपूर्ण बात इस घराने के राजनीतिक चाणक्य माने जाने वाले भी अभी सलाखों के पीछे हैं। हालात यह हो गया है कि क्षेत्र की जनता आम समस्याओं से जूझ रही है उनकी सुनने वाला कोई नही है। यहां कहा जा सकता है कि घराने का राजनीतिक गढ़ नेतृत्व विहीन हो चुका है। घराने के एक सदस्य हैं भी तो उन्हें मजदूर राजनीति की चिंता ज्यादा सताती है। नेतृत्व विहीन क्षेत्र और जनता अपनी किस्मत से जी रहे हैं।

 

 

 

 

इस घराने का बागडोर संभालने वाला युवा नेता अपरिहार्य कारणों से फिल्ड में नहीं है। उनके चाटुकार समर्थक उनसे मिलते भी रहते हैं और “आल इज वेल” कह देते हैं। जबकि धरातल पर कुछ भी वेल नही है। आल इज वेल से नेता कार्यकर्ता दोनों ही गुड फील करके प्रसन्न हैं। वही इस घराने की राजनीतिक क्षेत्र के जानकार कहते हैं कि “रेस में हारा हुआ घोडा ही रणभूमि पर मोर्चा” सम्भाले हुए हैं। तातपर्य यह कि जो खुद नगर निगम चुनाव में वार्ड पार्षद का चुनाव नही जीत सका। उन्ही लोंगो को इस घराने का राजनीति पंडित होने का तमगा मिला हुआ है। नगर निगम चुनाव में “घराना” का आशीर्वाद पाकर चुनाव लड़ने वाले अधिकांश प्रत्याशी चुनावी वैतरणी पार नही कर सके थे। अपने समर्थकों को “विजयी भव” का आशीर्वाद नही दे सकने वाला अगले चुनाव में इन्ही समर्थको के सहारे किस करवट बैठेगा, यह तो आने वाले समय के गर्भ में है।

 

 

 

 

राजनीति का अखाडा तो वही है लेकिन पहलवान और पैतरा बदलने की प्रबल संभावना है। धनबाद की एक दिल दहला देने वाली घटना के बाद से इस घराना के खिलाफ मौसम और हवा बदली हुई नजर आ रही है। क्षेत्र के वोटर साइलेंट मूड में है। महिला वोटर का रुझान सहानुभूति से मिश्रण कर चुका है। इस घराने के खिलाफ उनके विरोधी घराने से यदि महिला प्रत्याशी चुनावी दंगल में उतर जाती हैं तो घराने का राजनीतिक धरातल खिसकने का खतरा बढ़ जाएगा। वैसे भी झारखण्ड की राजनीति समीकरण बदली हुई है। घराने पर एक गुट विशेष का ठप्पा लगा हुआ है। वह “अर्जुन” बहुत सहयोग करने की स्थिति में नही है। बाहर और भीतर से ही कई टिकट के दावेदार मैदान में ताल ठोक अपनी जुगत भिड़ा रहे हैं। चाटुकार आल इज वेल के फार्मूला पर गुड फील करा रहे हैं।

 

 

 

 

घराना का मजबूत स्तम्भ खुद ही डिस्टर्व है। कुल मिलाकर हालात पक्ष में तो एकदम नही है बल्कि दिन ब दिन बद से बदतर होते जा रही है। अब “धन बल” और “जन बल” के दम पर यह घराना कितनी स्थिति सम्भाल पाता है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

 

 

 

 

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