वि स चुनाव: झरिया में प्रत्याशी चयन में हो सकता है आश्चर्य जनक उथल पुथल

AJ डेस्क: धनबाद कोयलांचल की राजनीति से भली भांति वाकिफ या यूँ कहें राजनीतिक पंडित भी झरिया विधान सभा क्षेत्र को लेकर अभी तक संशकित हैं। झरिया सीट को लेकर उहा पोह की स्थिति बनी हुई है। टिकट पाने के लिए जबरदस्त गेम चल रहा है। सबसे ज्यादा मारामारी भाजपा के टिकट को लेकर चल रही है। यह तय माना जा रहा है कि झरिया में कुछ अजीबो गरीब राजनीतिक उथल पुथल होने वाला है।

 

 

यूँ तो वर्त्तमान में भी झरिया सीट भाजपा के ही कब्जे में है। झारखण्ड बनने के बाद मजदूरों के नेता स्व सूर्यदेव सिंह की पत्नी कुंती देवी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ी थी तब से यह सीट भाजपा के ही कब्जे में है। वर्ष 2014 में कुंती सिंह के पुत्र संजीव सिंह पहली बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे और विजयी भी हुए थे। आसन्न चुनाव में परिदृश्य बदला हुआ है। कुंती सिंह स्वास्थ के कारण चुनाव लड़ नही सकती और संजीव सिंह नीरज हत्याकांड के आरोप में पिछले दो वर्षों से जेल में बन्द हैं। अब इस घराने में संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह लोक सभा चुनाव के वक्त अचानक भाजपा का सदस्यता ग्रहण कर पार्टी के गतिविधि में शामिल हो जाती हैं।

 

 

 

 

दूसरी ओर स्व नीरज सिंह की पत्नी पूर्णिमा सिंह भी क्षेत्र में जन सम्पर्क अभियान छेड़े हुए है। वर्ष 2014 के चुनाव में नीरज सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे और भाजपा प्रत्याशी से चुनाव हार गए थे। स्व नीरज सिंह क्षेत्र में चुनावी दौरा तो शुरू कर चुकी हैं लेकिन उनके साथ किसी भी पार्टी का झंडा, बैनर नही होता जबकि भाजपा की सदस्य होने के नाते रागिनी सिंह भाजपाईयों के साथ नजर आती हैं।

 

 

 

 

कोयलांचल में मजदूरों के मसीहा की छवि रखने वाले स्व सूर्यदेव सिंह घराना की दो बहुएं रागिनी सिंह और पूर्णिमा सिंह झरिया क्षेत्र में ही आमने-सामने हैं। इनके बीच प्रथम चरण की लड़ाई टिकट पाने को लेकर है। किसे टिकट मिलेगा, किसे नही मिलेगा, कौन किस पार्टी का टिकट लेने में सफल होगा। यह सब अभी समय के गर्भ में है लेकिन क्षेत्र में सभी अपने अपने हिसाब से तर्क भी दे रहे हैं और अनुमान भी लगा रहे हैं।

 

 

 

 

कांग्रेसी नेता संतोष सिंह भी झरिया क्षेत्र में अपनी सक्रियता बढ़ा चुके हैं। वर्षों पार्टी का झोला ढोने के एवज में वह टिकट के लिए मजबूती से दावेदारी पेश कर रहे हैं। जानकार बताते हैं कि भाजपा में यूँ तो खुलम खुल्ला ऊपरी तौर पर शांति नजर आ रही है लेकिन “संघ” से जुड़े कुछ दिग्गज नेता भीतर ही भीतर गुल खिला रहे है और हो सकता है कि अन्य की खींचा तानी में वह कोई चमत्कार दिखा दें।

 

 

झारखण्ड के प्रदेश सह प्रभारी नन्द किशोर यादव ने पिछले दिनों धनबाद प्रवास के दौरान स्पष्ट कहा था कि इस बार भाजपा टिकट बंटवारे में उसे ही प्राथमिकता देगी जो चुनाव जीतने की क्षमता रखता हो। यानि पार्टी को हर हाल में चुनावी आंकड़ा के खेल में बाजी मारना है। श्री यादव के इस बयान के बाद एक गुट टिकट के लिए अपनी सक्रियता और भी बढ़ा चुका है। इस गुट का भाजपा खेमा में भी पकड़ है।

 

 

 

 

विधायक संजीव सिंह के जेल में होने के कारण ही अन्य लोग भी भाजपा का टिकट पाने की जुगत भिड़ाने लगे हैं। उनके द्वारा सिंह मेंशन की बदली हुई हालात को भी सामने रख अपनी दावेदारी ठोकी जा रही है। लोक सभा चुनाव के वक्त संजीव सिंह के भाई सिद्धार्थ गौतम द्वारा निर्दलीय चुनाव लड़े जाने को भी मुद्दा बनाया जा रहा है जबकि संजीव सिंह की पत्नी आनन फानन में भाजपा में शामिल होकर भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव प्रचार में खुलकर भाग ली थी।

 

 

इधर सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस का एक विक्षुब्ध नेता चुनाव के एन पहले पार्टी बदल सकता है। अभी तक किसी पार्टी ने कहीं भी किसी का टिकट फाइनल नही किया है। टिकट पाने की उम्मीद लेकर नेता क्षेत्र में अपनी गतिविधि बढ़ाए हुए हैं। अब तो आने वाला समय ही बताएगा कि इस चर्चित सीट पर कौन किसके बैनर तले चुनाव लड़ेगा। हालाँकि इस बार टिकट का डगर किसी के लिए आसान नजर नही आ रहा।

 

 

 

 

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