धर्म संकट या बड़ा सवाल: सजायाफ्ता और हत्या के आरोपी को भाजपा देगी टिकट? (पार्ट- 01)
AJ डेस्क: 65 प्लस के रणनीति पर चुनावी दंगल में उतर रही भारतीय जनता पार्टी के लिए धनबाद कोयलांचल का झरिया और बाघमारा सीट गले की हड्डी बन चुका है। इन दोनों क्षेत्र में भाजपा की पहले से ही किरकिरी हो रही है। अब सबकी नजर भाजपा के वरीय नेताओं की ओर टकटकी लगाए हुए है। भाजपा क्या सजा याफ्ता और हत्या के आरोपी को टिकट देगी या उनके परिवार के सदस्यों को टिकट देकर अपनी ही “परिवारवाद” विरोधी नीति का गला घोंटेगी।
कोयलांचल का झरिया सीट भाजपा के लिए मायने रखता है। बुरे वक्त में भी झरिया ने भाजपा की झोली में सीट दिया है। इस बार हालात बदले हैं। वर्ष 2014 में पहली बार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतने वाले संजीव सिंह अभी अपने ही चचेरे भाई नीरज सिंह सहित चार लोगों की हत्या के आरोप में जेल में बन्द हैं। लगभग दो वर्षों से जेल में बन्द होने के कारण संजीव सिंह का जनता से सम्पर्क लगभग टूट चुका है। जेल गेट पर अपने खास लोगों तक ही वह सिमट कर रह गए है। पूर्व विधायक एवम संजीव सिंह की माँ कुंती देवी अपने खराब स्वास्थ्य के कारण क्षेत्र में समय नही दे सकीं तो उनके अनुज सिद्धार्थ गौतम पिछले लोक सभा चुनाव में परिवार के लिंक से हटकर बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़ चुके हैं। लोक सभा चुनाव में सिद्धार्थ गौतम की भाभी यानि संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह अपने देवर का साथ नही देकर भाजपा प्रत्याशी के साथ थीं।
विधायक संजीव सिंह के जेल जाने के बाद झरिया क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई नही था। जनता बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हो चुकी थी। जनता के दुःख दर्द में खड़ा होने वाला कोई नजर नही आ रहा था। विधान सभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू होते ही विधायक की पत्नी क्षेत्र में घुमने लगीं।
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या भाजपा अपने इमेज को दरकिनार कर हत्या के आरोपी को अपना प्रत्याशी बनाएगी या “परिवारवाद नीति” का घोर विरोध करने वाली यह पार्टी झरिया में अपने ही सिद्धान्त का मखौल उड़वायेगी। वैसे भी झरिया में भाजपा परिवारवाद व्यवस्था लागू किए हुए है ही। झारखण्ड बनने के बाद झरिया से बच्चा सिंह विधायक बने। उसके बाद कुंती सिंह भाजपा के टिकट पर विधायक चुनी गई। कुंती सिंह ने स्वास्थ्य ठीक नही होने का हवाला देते हुए झरिया सीट रूपी विरासत अपने पुत्र संजीव सिंह के हवाले कर दी। अब कयास लगाया जा रहा है कि जेल में होने के कारण हो सकता है संजीव सिंह को भाजपा का टिकट न मिले तो इस हालात में उनकी पत्नी रागिनी सिंह को ही भाजपा का प्रत्याशी बनवा दिया जाए। अब तो उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। बस, देखना यह है कि परिवार वाद का सार्वजनिक मंचों से जोरदार विरोध करने वाली इस पार्टी के “कथनी और करनी” में समानता है या सिर्फ पब्लिक को मुर्ख बनाने के लिए कोरा भाषण है।
क्रमशः
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