कहर बनकर गिरा ठनका, खिलाड़ी ने खेल के मैदान में ही ली अंतिम सांस

AJ डेस्क: आज अहले सुबह से ही धनबाद में बादल छाए हुए है, मेघगर्जन हो रही है और रुक-रुक कर बारिश भी हो रही है। इसी बीच आज सुबह एक घटना घटी जिसने न सिर्फ आर्थिक रूप से कमजोर फुटबॉल खिलाड़ियों के सर से एक गुरु (कोच) का साया छीन गया बल्कि खेल जगत को भी भारी क्षति हुई।

 

 

अभिजीत गांगुली उर्फ़ सोनू दा अब नहीं रहे। उनकी मौत ठनका गिरने की वजह से आज सुबह हो गई। उनसे प्रिशक्षण ले रहे एक प्रशिक्षु फुबॉलर संजय ने बताया कि रोज की तरह आज भी सभी फुटबॉल खिलाड़ी धनबाद सदर थाना क्षेत्र स्थित बिरसा मुंडा स्पोर्ट्स स्टेडियम जुटे हुए थे। अभिजीत अभिजीत गांगुली भी वहीं मौजूद थे। अभिजीत दा ने सभी खिलाड़ियों को वार्मअप होने को कहा था। तभी आसमान में बादल छाने लगे। देखते ही देखते सुबह अँधेरे में डूबने लगा। बादल गरजने लगे। मेघगर्जन की आवाज सुन सभी खिलाड़ी तुरंत जमीन पर लेट गए। जब कुछ समय बाद सभी खिलाड़ी वापस उठे तो उन्होंने अपने कोच अभिजीत दा को जमीन पर गिरा पाया। वो बूरी तरह से झूले हुए थे।

 

 

 

 

संजय ने कहा कि सभी खिलाड़ियों ने तत्काल उन्हें उठा कर इलाज के लिए असर्फी अस्पताल पहुंचे लेकिन उनकी हालत को देख वहाँ के डॉक्टरों ने तुरंत उन्हें पीएमसीएच धनबाद ले जाने की सलाह दी। खिलाड़ियों ने अपने गुरु को पीएमसीएच ले जाने के लिए वहाँ एम्बुलेंस खोजा लेकिन उन्हें एम्बुलेंस तो वहाँ खड़ी मिली लेकिन उसका ड्राइवर वहाँ से नदारद था। इसके बाद अभिजीत दा के शिष्यों ने बिना समय गवाए उन्हें अपनी स्कूटी से ही पीएमसीएच लेकर पहुंचे। पर उनकी ये मेहनत बेकार चली गई और उन्हें मायूसी ही हाथ लगी। दरअसल पीएमसीएच के डॉक्टरों ने अभिजीत दा को मृत घोषित कर दिया। जिसके बाद वहां मातम पसर गया।

 

 

तत्काल इसकी सूचना अभिजीत दा के परिजनों को दी गई। वहीं ये खबर धनबाद में जंगल की आग की तरह फैली और देखते ही देखते उन्हें जानने वाले और उन्हें मानने वाले एक एक कर वहाँ जुटने लगे। सभी इस आकस्मिक घाटी घटना से आश्चर्यचकित थे। सभी काफी मर्माहत थे। लोग ऊपरवाले के इस फैसले पर दुखी थे।

 

 

 

 

बता दे कि अभिजीत गांगुली एक राष्ट्रीय स्तर के फुटबॉल खिलाड़ी रह चुके है। वो खेल से सन्यास लेने के बाद धनबाद के खिलाड़ियों को दक्ष बनाने में जुटे थे। अभिजीत दा से फुटबॉल का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे खिलाड़ियों की माने तो अभिजीत दा अपने शिष्यों से कभी कोई फीस नहीं लेते थे। वो आर्थिक रूप से कमजोर खिलाड़ियों से खुद मिलकर उन्हें अपने यहाँ निशुल्क प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया करते थे।

 

 

 

 

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