त्वरित टिप्पणी: “टाइटेनिक” डुबाकर ही मानेगें क्या “चंगु-मंगु” ?

AJ डेस्क: पांच दशक से अधिक समय से एक क्षेत्र विशेष पर राज कर रहे “घराना” की स्थिति “टाइटेनिक” की भांति हो गयी है। घराना के स्तम्भ दरकना शुरू कर चुके हैं। चुनाव महापर्व के वक्त ही खासमखास घर बदलने लगे हैं। असंतुष्ट सदस्यों की एक ही शिकायत है- कैप्टन की आँखों पर पट्टी बंध चुकी है और चंगु-मंगु के वर्क तथा बॉडी स्टाइल से इस टाइटेनिक को डूबना ही है।

 

 

बात घराने के भीतर की हो या पार्टी संगठन की। दरबार के चंगु मंगु ने हर जगह अपनी ऐसी उपस्थिति दर्ज करा दी है कि चहुंओर भगदड़ मच गया है। फिर भी चंगु मंगु अपने बॉस से कहते हैं- आल इज वेल। बुरे दिनों में जो साथ न दे, साथ न निभाए, उनका कहीं चला जाना ही बेहतर है। फिर जनता निर्णायक होती है, न कि साथ में रहने वाले लोग। धीमी आवाज में बड़े ही शालीनता से बात करने की कोशिश करने वाले चंगु मंगु के बॉस यह नही समझ पा रहे कि वर्षों से हर अच्छे-बुरे दिनों में कदम से कदम मिलाकर चलने वाले आखिर अब क्यूँ साथ छोड़ने पर विवश हो गए हैं। उनकी नजर में सिर्फ चंगु मंगु ही क्यों पाक साफ दिखता है और सभी क्यों गलत नजर आ रहे हैं।

 

 

इस घराना का मजबूत राजनीतिक आधार मजदूर संगठन रहा है। कोयलांचल के इस मजबूत संगठन के बलबूते ही वह राजनीति सहित अन्य दुकान चला पाते हैं। वाह रे चंगु मंगु राजनीति मैदान में खेलते खेलते अन्य सभी खिलाड़ियों को मैदान से बाहर का रास्ता दिखा ही चुके हो, अब मजदूर संगठन के मजबूत सिपाहियों की भी विदाई शुरू करा दिए। अभी तो पांच छह ही गए हैं लेकिन यह और कितने को अपने साथ खींच लेंगे, यह निकट भविष्य में ही दिखने लगेगा।

 

 

यह घराना देश की एक मजबूत राजनीति पार्टी के साथ जुड़ी है। राजनीति से जुड़े लोग अभी इस पार्टी से जुड़ने को लालायित रहते हैं। फिर ऐसा क्या हुआ है कि पिछले दस दिनों के भीतर फूल वाली इस पार्टी को छोड़कर अनेकों नेता इस घराने के घोर विरोधी के खेमा में शामिल हो गए। यानि मजदूर संगठन से लेकर राजनीतिक संगठन तक आखिर क्यों भगदड़ मची हुई है।

 

 

वर्षों से पार्टी का झंडा ढोकर एक मुकाम पर पहुंचने वाले कुछ वरीय नेताओं का तर्क है कि अब घराने की ओर से चंगु मंगु दिशा निर्देश देते हैं। चंगु मंगु का घराने की नजर में जो भी महत्व हो लेकिन पार्टी के वरीय नेता कार्यकर्ता चंगु मंगु की क्षमता जानते हैं और वह चंगु मंगु के निर्देश पर राजनीति नही कर सकते। इसका परिणाम यह हुआ है कि पार्टी के अधिकांश वरीय नेता और कार्यकर्ता चुप्पी साध गए हैं और वह भी उचित समय का इंतजार कर रहे हैं।

 

 

मजदूर संगठन के साथ जुड़े सदस्यों के बल पर चुनावी वैतरणी पार करने वाले इस घराने को अब दो तरफा संकट झेलना पड़ेगा। मजदूर संगठन के दरकने की प्रक्रिया शुरू हो ही चुकी है पार्टी से भी भीतरघात की प्रबल संभावना नजर आने लगी है। घराना के वैसे शुभ चिंतक जो अपना मुंह कम खोलते हैं, वह चंगु मंगु और बॉस की तिकड़ी का खेल मूक दर्शक बने बैठे देख रहे हैं। वह सिर्फ इतना कहते हैं कि यही रवैया रहा तो चंगु मंगु ही टाइटेनिक डूबोने के लिए काफी साबित होंगे।

 

 

 

 

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