“बाबा ने खेमा बदला”- अंगुर खट्टे हैं——

AJ डेस्क: श्रमिक यूनियन की बारीकियों के जानकार,कई चुनाव के एजेंट होने के कारण राजनीति के भी जानकार। जब तक साथ थे तब तक गुड फील—। अब अपरिहार्य कारणों से खेमा बदल दिए तो “अंगुर खट्टे” हैं। यह जानने का प्रयास नही कि चार दशक से साथ साथ चलने वाला साथी आखिर क्यूँ खेमा बदल गया, उलटे अब उसमे दम नही था, कोई खास प्रभाव नही रह गया था, उनके जाने से रति भर फर्क नही पड़ता। वगैरह वगैरह। जनाब फर्क तो पड़ता है और पड़ भी रहा है। यह तो आपकी अंतरात्मा ही जानती है। क्षेत्र में सवाल किए जा रहे हैं- आखिर पुराने समर्पित समर्थक साथ क्यों छोड़ रहे हैं। अब जो साथ में हैं वह भी भीतर भीतर सहमे हुए हैं। न जाने उन्हें कब खट्टा कह दिया जाए।

 

 

प्रभु, काश हमारे भी कई भाई होते- अलग अलग गुट पकड़ लेता

यह झरिया है। धरती के नीचे आग है। पानी की किल्लत है- सिर्फ धरती के नीचे नही, लोगों के आँखों में भी। एक ही परिवार के अलग अलग सदस्य अलग अलग प्रत्याशी के साथ घुमते नजर आ रहे हैं। बड़ा तो चुनाव जिताने का ठेकेदार है। यह समर्थक नही रिश्तेदार है। चुनावी सीजन में ही अवतरित होते हैं। दिल से कोई पूछता नही। फिर भी कहते हैं- “यात्रीगण ध्यान दें, मैं भी हूँ”। किसी भी खेल में महारथ हासिल नही है फिर भी खेल के ऑफिसर हैं। अरे भाई, वह तो किसी और के आशीर्वाद से मिल गया, यह चुनाव है, जनता का आशीर्वाद चाहिए और जनता पर आपकी पकड़ है ही नही। भाई ही पत्नी संग विरोधी गुट का कमान सम्भाले हुए है। खूब तेज और रमे– भी तो रिश्तेदार हैं। घर के सदस्य दो हिस्सों में बंटकर अलग अलग प्रत्याशी के साथ घुम रहे हैं। इसे कहते हैं – “चित भी अपना, पट भी अपना”।

 

 

सत्ता सुख भोग ही लिए, अब काहे छटपटात हो भाई

जी टी रोड पर नोट उड़ता है। धन लक्ष्मी की बारिश होती है। जो सिमट सकता है, सिमट लो। लोगों ने दोनों हाथ, सर, पैर सभी के बल पर खूब समेटा भी। सत्ता का भरपूर लाभ उठाया। खुद सत्ता से सटे रहे। साधु बने रहे और परिवार के सदस्यों को लूट की छूट दिलवा दी। किसी ने काला हीरा लूटा तो कोई गो वंश को लेकर चर्चित हुए। एक तो सत्ता का पावर, दूसरे खाकी में रिश्तेदारी, क्या कहना। खूब चला, चलाया भी। प्रभु ने अवसर दिया तो जमकर चौका, छक्का ठोका। अब पार्टी ने विश्राम दिया है तो इसे भी उसी प्रभु का आशीर्वाद मानकर स्वीकार लेना चाहिए, जिसके आशीर्वाद से रातों रात घर का नक्शा बदल दिए। “समय एक समान नही होता, यह याद रखना चाहिए”।

 

 

 

 

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