“जाएँ तो जाएँ कहाँ”- अब तो जेल भी सुरक्षित नहीं रहा
AJ डेस्क: केस की सुनवाई तेजी से चल रही है। मुख्यालय के जेल से आना-जाना सम्भव नही था, कई तरह की तकनीकी बातें थी। अनुरोध पर धनबाद जेल पहुंचे जो अब सुरक्षित नही रह गया। यह मैं नही पीड़ित के वकील कह रहे हैं। एक सप्ताह पहले अधिकारियो ने सेल खंगाला। कथित रूप से टॉर्चर भी किया। सिनेमा का दृश्य भी था- आउट साइडर शायद वर्दी पहन टीम के साथ जेल के अंदर गए थे। यह तो रियली गम्भीर और खतरनाक बात है। खैर, जेल के अंदर CCTV कैमरा लगे हुए हैं। उसका फुटेज खंगाला जाए तो इस बात का खुलासा हो सकता है। यह तो जाँच का विषय है, जाँच होनी भी चाहिए। आखिर शिकायत गम्भीर है, वह भी किसी आम का नहीं बल्कि खास का और जवाबदेह बन्दी का।
देश के जेलों में बड़े बड़े गेम होते हैं, यह नई बात नही और इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता। उत्तर प्रदेश के जेल में बाहुबली मुन्ना बजरंगी की हत्या शायद ही कोई भुला होगा। फिर धनबाद जेल से भी तो रंगदारी मांगने की बात प्रशासनिक अधिकारी स्वीकारे हैं और उसी आधार पर आरोपी के विरुद्ध कार्रवाई भी हुई है। कहीं न कहीं लोचा है। प्रशासन को यह लोचा ढूँढना ही चाहिए। नही तो जेल असुरक्षित हो गया तो बन्दी आखिर कहाँ जायेंगे।
यार ,समझा भी करो- चुनाव है न, जीतना या जितवाना है कि नहीं
बड़ी जिम्मेवारी है। कई ऐसे काम हैं जो खुद करने होंगे। मौसा, भगीना या चंगु-मंगु के वश की बात भी नही है। धन का इंतजाम है, उसे कहाँ से लाना और कहाँ पहुंचाना है। यह भी बताना है। चुनावी रणनीति में स्टार प्रचारकों को मैनेज करने, बैनर पोस्टर की सामग्री, रूठे को मनाने का उपाय बताने तक और सबकी भूमिका तय करने आदि आदि महत्वपूर्ण काम हैं। चंगु मंगु पर छोड़ा तो था,जोड़ा कम तोडा ही अधिक। अब डैमेज की भरपाई करनी है। दर्द अपना है दूसरे कितने दिल से लेंगे, भरोसा भी नही। भरोसा करने लायक छोड़ा भी नही। वरना पुराने चाणक्य खेमा बदलते भी नहीं। क्या क्या बताया जाए। अनेक जिम्मेवारियां है जिसका निर्वाह करना है। समय है नही, पहले आल इज वेल के चक्कर में ही रहा। अब समय की कमी है तो वक्त का नखड़ा देखिए। जो लोग पहले खुली छूट दे रखे थे अब अनुशासन और कर्तव्य की पाठ पढ़ा रहे है। जन सम्पर्क और दरबार का समय आया तो मिलने जुलने पर ही अंकुश लगा रहे हैं। अरे भाई, यह सब चुनाव के बाद भी हो सकता था न। ऐसे करोगे तो हम कहाँ जाएँ, कैसे चुनावी वैतरणी पार लगेगा। कोई तो समझाओ, नहीं तो फिर—–।
और अंत में– क्या सही में महिला सुरक्षित नहीं हैं—-?
धनबाद के दो अलग अलग विधान सभा क्षेत्र लेकिन शिकायत एक। पार्टी में महिला सुरक्षित नहीं। एक नेत्री तो रोते बिलखते, हाथ पैर पटकते न्याय मांगते रह गयी और अंत में न्यायालय के चौखट तक जा पहुंची लेकिन पार्टी स्तर पर उसे न्याय नही मिला। दूसरी महिला नेत्री पर उसी के पार्टी के कैडर ने फेसबुक पर आपत्तिजनक पोस्ट किया। वह भी शीर्ष नेताओं तक शिकायत पहुंचाई। नतीजा ढाक के तीन पात। अंत में वह पार्टी ही छोड़ने का निर्णय ले चुकी।
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