स्व सूर्यदेव सिंह की संघर्ष भरी जीवन गाथा, ऐसी बातें जो आप नहीं जानते (पार्ट- 01)
AJ डेस्क: “विधायक जी” बस, इतना कहना काफी है। कोयलांचल के लोग आज भी समझ जाते हैं कि किसकी बात हो रही है। मजदूरों के मसीहा की जीवन काफी संघर्षपूर्ण रही है। ट्रेनों में चना चटपटी बेचने से लेकर राशन दुकान तक की नौकरी करने वाले स्व सूर्यदेव सिंह ने काफी संघर्ष कर मुकाम हासिल किया था।
चौदह वर्ष की आयु में यह बालक उत्तर प्रदेश के गोनिया छपरा से अकेले काम की तलाश में धनबाद कोयलांचल आया था। धनबाद के भौंरा में अपने एक रिश्तेदार के यहां उस नाबालिग बालक ने शरण ली और कहीं भी किसी तरह का काम दिलाने का अनुरोध किया। किसे मालूम था कि रिश्तेदार से नौकरी मांगने वाला बालक कल “मजदूरों का मसीहा” बन जाएगा। सूर्यदेव सिंह कम दिनों तक ही अपने रिश्तेदार के यहाँ ठहर पाए। एक रात वह भौंरा छोड़कर भाग गए और उनका अगला ठिकाना बना बोर्रागढ़। रात में वह बोर्रागढ़ पहुंचे थे। अंजान जगह थी, कोई ठौर ठिकाना नही था। रात में सूर्यदेव सिंह नाम का यह बालक एक बंगाली बाबू के दरवाजा के बाहर ही जमीन पर सो गया। सुबह बंगाली बाबू की नजर जमीन पर सोए बालक पर पड़ी तो उन्होंने उसे जगा कर पूरी बात सुनी। फिर उसी बंगाली बाबू ने इस बालक को काम पर रखवा दिया। उस वक्त हफ्ता के हफ्ता मेहनताना मिला करता था।

ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था तो सूर्यदेव सिंह को कुछ कर गुजरने का जुनून सवार था। उन्होंने किसी काम को छोटा नही समझा और न तो कभी पीछे मुड़कर देखा। किसी एक काम से सन्तुष्टि भी नही हुई। वह अलग अलग टाइम में अलग अलग जगह काम करने लगे। कड़ी मेहनत, लग्न और ईमानदार छवि के वजह से उन्हें उस क्षेत्र में काम भी मिलने लगा।

विधायक जी की पत्नी कुंती सिंह बताती हैं कि विवाह के पहले वह ट्रेनों में चना चटपटी भी बेचा करते थे। एक किराना दुकानदार के यहां भी पार्ट टाइम काम किया करते थे। जिसके एवज में वह दुकानदार दोनों टाइम भोजन करा दिया करता था। धीरे धीरे सूर्यदेव सिंह ने एक धौड़ा में अपना आशियाना बना लिया। वह धौड़ा खपरैल झोपड़ीनुमा हुआ करता था। कुंती सिंह बताती हैं कि इसके बाद उन्होंने “चानक” पर नौकरी कर ली। इधर पहलवानी सीखने का भी भुत उनके सर पर सवार हो गया था। उनके एक परिचित ने सूर्यदेव सिंह को एक भैंस दे दिया। यही से सूर्यदेव सिंह का पहलवानी का दौर शुरू हो जाता है।
एक रात चानक पर हथियारबंद चोरों ने धावा बोल दिया था। निहत्थे सूर्यदेव सिंह उन चोरों से भीड़ गए। चोरों के वार से इनके हाथ में गहरा जख्म हो गया था। बोर्रागढ़ में सूर्यदेव सिंह के यहां डकैती भी हुई थी। कड़ी मेहनत कर पाई पाई संजोए हुए 85 हजार रूपये डकैत ले गए थे। यह राशि उन्होंने अपने गांव में जमीन खरीद घर बनाने के लिए जमा किया था। इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नही हारी और उनका संघर्ष जारी रहा।
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