सूर्यदेव सिंह की “वाटिका” को पुराने दुश्मनों ने अपनों के सहारे किया बर्बाद- विक्रमा सिंह (पार्ट-3)
AJ डेस्क: स्व सूर्यदेव सिंह के अनुज विक्रमा सिंह नम आँखों और रुंधे गले, कांपती आवाज में कहते हैं कि भैया (विधायक जी) की “वाटिका” को हमारे अपनों का सहारा लेकर कुछ दुश्मनों ने तबाह बर्बाद करने का प्रयास किया है लेकिन हम अभी भी उस वाटिका को बचाने का प्रयास कर रहे हैं।
स्व सूर्यदेव सिंह के अनुज विक्रमा सिंह भाजपा प्रत्याशी रागिनी सिंह जो रिश्ता में उनकी बहू है, के चुनाव प्रचार के लिए अभी झरिया में कैम्प किए हुए हैं। विक्रमा सिंह ने एक भेंट में अनल ज्योति से कहा कि भैया (सूर्यदेव सिंह) हमेशा सभी भाईयों को साथ लेकर चले थे। वह कभी भी किसी भाई के साथ भेद भाव नही किए। उन्होंने कहा कि पांच भाईयों में सूर्यदेव सिंह सबसे बड़े थे और इसलिए वह हमेशा अभिभावक की भूमिका में रहे। तो और सभी भाई भी उनके सामने खड़ा होने और कुछ बोलने की हिमाकत नही करते थे, यह सब लिहाज और सम्मान था। विक्रमा सिंह दुखी होकर कहते हैं कि हमारे घराना के कुछ पुराने दुश्मन सोची समझी साजिश के तहत हमारे अपने ही एक धड़ा को न जाने कैसे दिग्भ्रमित कर देने में सफल हो जाते हैं। और उनके कंधे का उपयोग कर भैया की वाटिका को तहस नहस करने की नापाक साजिश रचते हैं, उन्हें इस दिशा में कुछ हद तक सफलता भी मिल गयी है। हालांकि विक्रमा सिंह दुश्मन और दूसरे धड़ा का खुलकर नाम भी लिया है लेकिन अनल ज्योति किसी विवाद को हवा देने से परहेज करने के उद्देश्य से यहां नामो का उल्लेख नही कर रहा है।
मेंशन के विक्रमा सिंह ने राजीव रंजन प्रकरण और नीरज हत्या कांड का जिक्र छेड़ते हुए कहा कि नुकसान परिवार को ही हुआ है। नीरज की हत्या हुई और उसके आरोप में संजीव सिंह को जेल भेजवा दिया गया। विक्रमा सिंह के अनुसार इन सारी घटनाओं के पीछे उनके घराना के दुश्मनों का हाथ है। साथ ही विक्रमा सिंह कहते हैं कि भैया (सूर्यदेव सिंह) का आशीर्वाद है। हम उनके वाटिका की सुरक्षा करेंगे और जल्द ही घर में घुसे दुश्मन का चेहरा बेनकाब हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि सूर्यदेव भैया वर्ष 1964 में झरिया कोयलांचल आए थे। कड़ी मेहनत, संघर्ष कर उन्होंने एक धरती तैयार की थी। उसके बाद वर्ष 68 से 72 के बीच भैया ने गांव से धीरे धीरे सभी भाईयों को झरिया बुला लिया था। विधायक जी अपने भाईयों को नही बल्कि पूरे झरिया को अपना परिवार मानते थे। इसी कारण वह बहुत कम समय में हर वर्ग के चहेते बन गए थे। अपने भाईयों के भविष्य सवारने की चिंता उन्हें थी ही, वह गांव जवार, बलिया, गोरखपुर, आरा, छपरा एवम आस पास के लोगों की भी चिंता करते थे। स्थानीय लोग, व्यापारी के सुख दुख में भागीदार बन जाते थे। खासकर मजदूर वर्ग के लिए उनके दिल में गजब का दर्द रहता था। शायद तभी वह मजदूरों के मसीहा भी कहलाए।
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