झारखण्ड: पी एम आवास के आवंटन और बिक्री का मामला गहराया

AJ डेस्क: “वो जो कभी हमारा आशियाना था, आज वो किसी और की खुशियों का बहाना बन गया है।” इन्ही पंक्तियों को चरितार्थ करता एक वाकया झारखण्ड के गोड्डा जिले में सामने आया है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बना और आवंटित आवास की बिक्री का मामला यहां पेचीदा होता जा रहा है। आवास बेचकर गायब होने वाले कहीं बांग्लादेशी तो नही थे, फिर इन बांग्लादेशी को प्रधानमंत्री आवास कैसे आवंटित हो गया? इस तरह के कई अनुत्तरित सवाल यहां खड़े हो गए हैं। यह गम्भीर जाँच का विषय बन चुका है।

 

 

यहाँ तीन-तीन बना बनाया मकान महज सात लाख रूपये में मकान के मालिक बेचकर निकल गए और जिन्होंने उन मकानों को ख़रीदा उनकी तो मानो लॉटरी निकल पड़ी हो। आखिर इतने सस्ते में तीन-तीन बना बनाया मकान उसे मिल गया, वो भी जमीन के साथ। अब इस महंगाई के जमाने में इससे सस्ता भला क्या हो सकता है। लेकिन जनाब को शायद ये मालूम नहीं था कि जीन तीनो मकान को उन्होंने औनेपौने दाम पर ख़रीदा है, दरअसल वो सभी मकान प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत बने थे।

 

 

केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक सभी वैसे जरुरतमंदों को 2022 तक आवास देने में जुटे हैं जिनके सर पर पक्की छत नहीं है। जो बेघर है। हजारों लोगों को इस योजना के अंतर्गत पाकुड़ जिले में आवास का लाभ भी मिला। लेकिन सरकारी बाबुओं और प्रखंड के पदाधिकारियों की मिलीभगत से वैसे लोगों को भी प्रधानमंत्री आवास का लाभ यहाँ मिल रहा है जो यहाँ के वासिंदे नहीं है और उन्होंने यहाँ जमीन खरीदकर आवास का लाभ लिया और फिर आवास बनाकर कुछ माह पहले ही बेचकर यहाँ से चले भी गए। ऐसे ही चार लाभुकों का मामला पोडैयाहाट प्रखंड के बांझी गाँव में देखने को मिला है। इनके नाम है पियारुल अंसारी, कालोनी बीबी, झूली बीबी। इनके नाम से वर्ष 2017-18 में प्रधानमंत्री आवास योजना की स्वीकृति मिली और पैसे भी मिल गए। मकान भी बन गया। जानकारी के अनुसार ये सभी संपेरा प्रजाति के लोग थे और गाँव में किसी को नही मालुम कि ये लोग कहाँ से आये थे। लोगों के अनुसार यह यहाँ तम्बू लगाकर कुछ वर्षों से रह रहे थे। जिन चार लोगों ने यहाँ मकान बनवाया उनके ही एक वंशज आज भी उसी तम्बू में रहकर गुजर बसर कर रहे हैं। उन्हें भी मकान आवंटित हुआ है लेकिन उन्होंने अभी तक निर्माण नहीं करवाया है।

 

 

सबसे बड़ी बात तो ये कि जिन चार लोगों ने प्रधानमंत्री योजना के अंतर्गत मकान बनाया था उन्होंने गाँव के ही एक शख्स जो उसी के समुदाय से है उसे तीनो प्रधानमंत्री आवास बेचकर यहाँ से कही अज्ञात जगह चले गए।

 

 

इस संबंध में गांव के मुखिया शत्रुघन प्रसाद ने कहा, वे लोग कहाँ से आये थे ये तो नहीं मालूम, मगर प्रखंड में आवास योजना की सूचि में उनका नाम सूचीबद्ध होकर जब आया तो हमने छानबीन की, तो उनके पास आधार और वोटर कार्ड सभी कुछ मौजूद था। उन्होंने जमीन भी यहीं किसी से खरीदा था। उसी पर आवास की स्वीकृति उन्होंने ली थी।’ बावजूद इसके मुखिया ने इसका विरोध किया था। लेकिन प्रखंड स्तर से पदाधिकारियों के दबाव की वजह से वो कुछ नहीं कर सके।

 

 

खैर आवास जैसे भी मिला हो, जैसे भी बना हो, लेकिन यहाँ सवाल ये उठता है कि कई सारी विसंगतियों के बावजूद आवास की स्वीकृति कैसे मिल गयी? और मिल भी गयी तो फिर प्रधानमंत्री आवास बिका कैसे? प्रधानमंत्री आवास योजना के तीन-तीन आवास बेच दिए जाने के मामले में जिला के उपायुक्त किरण कुमारी ने कहा, ‘मामला गंभीर है। इसपर एक जांच समिति से जांच करवाई जाएगी और दोषियों के खिलाफ कार्यवाई भी की जाएगी।

 

 

 

 

 

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