कटी फटी जेब पर हमला: ऑटो किराया या यात्रियों की बर्बादी तय हुआ

अरुण कुमार तिवारी की कलम से……

 

AJ डेस्क: अनलॉक 1 या लॉक डाउन 5 के शुरू होने के बाद हर क्षेत्र में छूट देने की कवायद शुरू हो गयी। अनेक व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को खोलने की इजाजत भी मिल गयी। 25 मार्च के बाद लॉक डाउन 4 तक ठप्प पड़ी सिस्टम में गतिविधि बढ़ने लगी। बाजारों में रौनक भी लौटने लगीं। इसी कड़ी में एक मामला जुड़ा है ऑटो परिचालन का और अब सोशल डिस्टेंसिंग के कारण ऑटो रिक्शा में यात्रियों की संख्या सिमित करने का। प्रशासनिक अधिकारी और ऑटो संघ वाले मिलजुल कर बैठे और सौहार्दपूर्ण माहौल में ‘किराया’ तय कर उसका फतवा जारी कर दिया गया। प्रशासन का यह फतवा (किराया सूचि) शायद सभी को पच नही पा रहा। सभी अपने अपने गणित को आधार बनाकर किराया निर्धारण का सरकारी फार्मूला खोज रहे हैं लेकिन मामला हजम होता दिख नही रहा।

 

 

हम किराया निर्धारित करने वाले प्रशासनिक अधिकारी की सोच, गणित, फार्मूला और योग्यता के बारे में न तो पूरी तरह वाकिफ हैं और न ही उनकी योग्यता पर ही कोई सवाल उठा रहे हैं बल्कि हम आज कोयलांचल में हो रही चर्चाओं को प्रशासन और अपने पाठक के संज्ञान में लाने का प्रयास मात्र कर रहे हैं।

 

 

 

 

एक दो उदाहरण पेश कर दूँ। धनबाद स्टेशन से झरिया का किराया था 13 रु, अब हो गया 130।यानि 13 के आगे एक शून्य मात्र जुट गया और नया किराया तय हो गया। स्टेशन से भूली या केंदुआ का लॉक डाउन के पहले किराया था प्रति यात्री दस रुपये। यहां भी दस के आगे एक शून्य बैठा दें। हो गया न नया किराया।

 

 

 

 

दूसरी बात धनबाद से बिग बाजार की दूरी लगभग 6 किलोमीटर। पहले का किराया दस रुपये। अब नया किराया 150 रु। यानि 25 रूपये प्रति किलोमीटर।

 

 

 

 

कोयलांचल की जनता भौंचक्क है। वह जानना चाहती है कि किराया निर्धारण किलोमीटर यानि दूरी के आधार पर तय किया गया है या कोई और आधार है। सरकार प्रति किलोमीटर क्या रेट तय किए हुए है।

 

 

जिंदगी में सफर तो तय है। सफर थम ही गया तो समझ लो, जिंदगी थम गया। लोग यात्रा करेंगे ही। उनकी मजबूरी भी है। सभी निजी वाहन के मालिक नही हैं। वरना कोयलांचल में ऑटो की इतनी संख्या नही होती।

 

 

लेकिन अभी तो वैसे भी सभी लॉक डाउन के मारे हुए हैं, नही भी मारे हुए हैं तो उनकी जेब पर किराया का जो पहाड़ नुमा बोझ बढ़ने जा रहा है। उसके आधार के बारे में जानने का तो उन्हें हक है ही, वह यही जानना चाहते हैं।

 

 

 

 

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