मैं शहर का ही नही सूबे का भी सरकार रहा हूँ, कल किसी को नही समझा, कल मेरा क्या होगा मालूम नहीं

AJ डेस्क: मैं सरकार था भाई। शहर की सरकार का बेताज बादशाह था ही, सूबे की सरकार में भी तूती बोलती थी, जो चाहा, जैसा चाहा, वैसा हुआ। अभी किसी को अंदाजा ही कहाँ है कि हमने क्या क्या गुल खिलाए हैं। सभी शहर की सरकार तक सिमटे हैं। गुजरा कल मेरा और सिर्फ मेरा था,अब आने वाला कल क्या करेगा, मुझे मालूम तो नही। हाँ, अंदेशा है तभी तो जिस दरबार में नही जाना चाहिए, वहां भी गया।

 

 

“समय बलवान होता है”। एक समय था जब शहर की सरकार चुनी जानी थी। एक प्रबल, मजबूत, लोक प्रिय रेस में ताल ठोक दिए। यदि वह मैदान में डटे रहते तो उनकी जीत सुनिश्चित मानी जा रही थी क्योंकि वह आम से खास तक को पसन्द थे लेकिन डगर इतना आसान भी नही था। सरकार की दौड़ में शामिल दूसरे की पकड़ सूबे की सरकार में थी। सूबे की सरकार ने न जाने कौन सी घुड़की दिया कि लोकप्रिय, सभी के प्रिय अखबारों में बयान देकर वापस अपनी बिल में घुस गए। यानि सूबे की सरकार के धौंस पट्टी से ही शहर की सरकार की नींव पड़ी थी।

 

 

“वन मेन शो” रहा। जमाना कुछ भी कहे, उसकी परवाह कौन करता है। जब तक रहा ताल ठोक कर रहा। सारी व्यवस्था अपनी जगह पर। शहर की सरकार चली तो सिर्फ “वन मेन शो” फार्मूले पर ही। अधिकारी रबर स्टाम्प बनकर रहे, जो बात नही माना। बोड़िया बिस्तर समेट कर जाना पड़ा। आने वाला अधिकारी पहले ही मानसिकता बना लेता था कि गंगा नहाना है तो सरकार की हाँ में हाँ मिलानी ही होगी।

 

 

शहर की सरकार के सचिवालय की छोड़ें। जिस पार्टी की आज दुहाई दे रहे हैं। उसी के नेता कार्यकर्ता को कौन सा पूछते थे। इनकी अपनी एक टीम थी। उसके बाद और किसी से सीधे मुंह बात तक नही करने की इनकी छवि बन गयी थी। सिंडिकेट के बाहर के किसी संवेदक को काम तक नही मिलता था, भले ही वह सवेंदक राजधानी से पार्टी के ही नेता की पैरवी लगवा चुका होता था। भाई बात “वन मेन शो” की है।

 

 

पहले तो राजनीतिक “आका” गए। अब चेला पर शनि का वक्र दृष्टि पड़ गया है। यूँ तो पहले भी अलग थलग ही थे लेकिन वह राज योग–राज भोग का समय था। अकेला में आनन्द था। अब जो खुद को अलग थलग पा रहे हैं तो—–। यह तो अपनी करनी का फल है भाई। फिर मजबूरन उस दरबार में गए, जिस दरबार की खटिया खड़ा करने के प्रयास में कोई कोर कसर नही छोड़े थे। राजनीति देखिए, सब कुछ जानते हुए भी दरबार ने शहर की सरकार को गले लगा लिया।

 

 

अब देखना यह है कि दोनों सिर्फ गला मिले हैं या दिल भी मिला है और कहीं दरबार ने सटा कर मारने का चाल तो नही चला है। कोई बात नही। हिम्मत रखें, सब्र रखें (जिसकी कोई कमी वर्षों पहले से नही है) गुजरा कल नही रहा तो आने वाला कल भी नही रहेगा। उसके बाद हुजूरे सरकार आप निखरे हुए राजनीतिज्ञ की तरह उभर कर आएंगे।

 

 

 

 

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