श्रीमद भागवत कथा : मनुष्य जीवन मिला है भगवान की भक्ति करें- श्री हित प्रताप चंद्र
AJ डेस्क: भादो मास में कथावाचक श्री हित प्रताप चंद्र गोस्वामी जी की दिव्यमयी वाणी में आयोजित सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस का शुभारंभ अत्यंत मधुर “राधे कृष्ण संकीर्तन” के साथ धनबाद में किया गया। जिससे सम्पूर्ण परिसर प्रांगण राधामयी हो उठा। कथा में राधाबल्लभ परिवार के यजमान द्वारा व्यासपीठ पर विराजित श्री हित प्रताप चंद्र गोस्वामी जी का माल्यार्पण सत्कार किया गया। उन्होंने बताया कि भागवत कथा के समय स्वयं श्रीकृष्ण आपसे मिलने आते हैं। जो भी इस भागवत के तट पर आकर विराजमान हो जाता है, भागवत उसका सदैव कल्याण करते है।
कथा के दूसरे दिन कथा व्यास श्री हित प्रताप चंद्र गोस्वामी जी ने भक्ति वैराग्य की कथा श्रवण करते हुए मोक्ष प्राप्ति की कथा श्रवण कराई। साथ ही व्यास नारद संवाद, परीक्षित जन्म, वस्ता के दस लक्षण, रसिका भूवि भाविका, कुन्ती चरित्र सहित विदुर मैत्री प्रसंग की कथा श्रवण कराई। साथ ही कथा में वक्ता श्रोता के धर्म की विवेचना करते हुए बताया कि वक्ता का चरित्र स्वच्छ होना चाहिए। वहीं श्रोता को भगवान के प्रति समर्पित होना चाहिए। वक्ता को प्रेरणा का पुंज होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान जीव का उद्धार करते हैं।
द्वितीय दिवस की पावन कथा में गुरुवर ने भागवत से उद्धार प्राप्त करने वाले भक्त, पापी इत्यादि की कथा का श्रवण कराया। गुरुदेवी जी ने बताया कि गौवंशो पर हो रहे अत्याचार अत्यंत निंदनीय है। गौ माता प्रभु को अत्यंत प्रिय हैं और इसका प्रमाण उन्होंने स्वयं गौचारण लीलाओ से दिया हैं, लेकिन आज हमारे देश में जो गौमाता की दुर्दशा है उससे हमारा धर्म और अस्तित्व संकट में है। वे सड़क पर लाचार ,बीमार, दुर्घटना ग्रस्त होकर विचरण को मजबूर हैं। इसलिए आज हमारा कर्तव्य बनता है कि गौमाता की रक्षा हेतु उन पर और शोध किये जायें, जिससे उनके विलुप्त होते अस्तिव को बचाया जा सके।
आगे कथा में जीवन का उद्देश्य बताते हुए उन्होंने कहा- “मनुष्य जीवन विषय वस्तु को भोगने के लिए नहीं मिला है, लेकिन आज का मानव भगवान की भक्ति को छोड़ विषय वस्तु को भोगने में लगा हुआ है। उसका सारा ध्यान सांसारिक विषयों को भोगने में ही लगा हुआ है। मानव जीवन का उद्देश्य कृष्ण प्राप्ति है। यदि हम ये दृढ़ निश्चय कर लेंगे कि हमें जीवन में कृष्ण को पाना ही है तो हमारे लिए इससे बढ़कर कोई और सुख, संपत्ति या सम्पदा नहीं है।जीव का कल्याण भागवत भजन से ही होगा, क्योंकि जीव का जन्म प्रभु की भक्ति के लिए हुआ है। प्रभु का भजन जो जीव नहीं करता है वो पशु के समान होता है। अगर कल्याण चाहते हैं, जन्म मरण के चक्कर से बचना चाहते हैं तो हरी भेजों, भगवान का भजन ही सार है बांकी सब बेकार है।”
कथा के मध्य में मधुर भजनों का गायन करते हुए पूज्य गरुवर ने बताया कि भक्ति करने की कोई उम्र नहीं होती है। आपको अभी से भक्ति शुरू कर देनी चाहिए। क्योंकि जीवन बहुत अल्प है। आगे धुव्र चरित्र का विस्तृत वर्णन किया गया। नारद शिष्य ध्रुव ने अटल तपस्या से भगवान का मनमोह लिया। जिससे अपना और अपने परिवार का नाम अक्षय कर लिया। द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र में पांडवों के वंशवली का सुन्दर वर्णन किया। व्यास ने अपने व्याख्यान में बताया कि जैसा खाओगे अन्न, वैसा ही होगा मन, कथा को आगे बढ़ाते हुए युधिष्ठिर द्वारा प्रश्न प्रसंग का भी सुंदर वर्णन किया। कथा के दौरान श्री शम्भू राम जी धर्मशाला परिसर में बड़ी संख्या में भक्तजन उपस्थित रहे। इस मौके पर कथा के समिति के सदस्यों ने कथा में महाआरती के पश्चात प्रसाद वितरण किया।