नक्सली वारदात: पिता पुत्र की नृशंस हत्या, लेवी की थी मांग

AJ डेस्क: चतरा में शान्ति पूर्ण लोकसभा चुनाव समाप्त होते ही प्रतिबंधित टीएसपीसी नक्सलियों ने बड़ी घटना को अंजाम दिया है।उग्रवादियों के विरुद्ध मोर्चा खोलने वाले हिम्मती पिता-पुत्र की हत्या कर पुलिस को खुली चुनौती दे दी है। पुलिस का साथ देने की कीमत पंकज बिरहोर एवं उसके पिता को जान देकर चुकानी पड़ी है। घटना कुंदा थाना क्षेत्र के घोर नक्सल प्रभावित हिंदियाकला गांव में घटी है।

 

 

नक्सली दस्ते के साथ हथियारबंद उग्रवादियों ने शनिवार की रात हिंदियाकला गांव में पहुंचकर पिता-पुत्र को अपने कब्जे में लेकर पहले उनकी बेरहमी से पिटाई की, फिर गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया। नक्सलियों द्वारा दो लोगों की हत्या से ईलाके में खौफ पैदा हो गई है। मृतक विलुप्तप्राय बिरहोर जाती के थे। पुलिस अधिकारी, ग्रामीण और पंचायत प्रतिनिधियों के सहयोग से मृतक पिता-पुत्र के शव को निजी वाहन से उठवाकर मौके से पांच किलोमीटर दूर पक्की सड़क पर मंगवाया। पुलिस ने सुरक्षा कारणों से हिंदियाकला गांव नहीं पहुंच पाने की बात कही।

 

 

बताते चले कि कुछ दिन पूर्व पंकज व उसके भाई विधायक बिरहोर ने टीएसपीसी के एक नक्सली मंटू गंझू को प्रधानमंत्री आवास योजना में लेवी मांगने के दौरान पकड़कर हथियार के साथ पुलिस के हवाले कर दिया था। घटना के बाद उग्रवादियों का गुस्सा सातवें आसमान पर था।इसी का प्रतिशोध लेने के लिए नक्सलियों द्वारा शनिवार की देर रात घटना को अंज़ाम दिया गया है।

 

 

घटना की सूचना के करीब 12 घंटे के बाद तक पुलिस मौके पर नहीं पहुंची सकी थी। घटनास्थल से करीब पांच किलोमीटर दूर बौरा गांव में रुककर एसपी सिमरिया, एसडीपीओ अजय केशरी व अन्य पुलिस पदाधिकारियों से स्थिति का जायजा लेते नजर आए। पुलिस अधिकारियों ने मुख्यालय के निर्देश पर सुरक्षा कारणों से घटनास्थल पर नहीं पहुंचने की बात कही। हालांकि मामले में जिले के वरीय पुलिस अधिकारी अभी कैमरे पर कुछ भी कहने से बचते रहे।

 

 

एसपी विकास पांडेय ने इतना जरूर कहा है कि पिता-पुत्र की हत्या की घटना में संलिप्त नक्सलियों के धर-पकड़ को लेकर ईलाके की घेराबंदी की जा रही है। हर हाल में नक्सलियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी। उन्हें किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा। नक्सलियों के किस दस्ते ने घटना को अंजाम दिया है इसकी जांच की जा रही है।

 

 

मृतक के भाई विधायक बिरहोर ने बताया कि जिले के पूर्व उपायुक्त अबु इमरान कुछ दिन पूर्व गांव में आए थे। उस दौरान उन्होंने गांव के 10 बिरहोर परिवारों को बिरसा आवास दिया था। जिसकी देखरेख मृतक और उसका भाई कर रहे थे। इसी दौरान टीएसपीसी के नक्सलियों के छह सदस्यों का दस्ता पूर्व में गांव में पहुंचा था और प्रति आवास दस हजार रुपये लेवी की मांग की थी। जिसका विरोध करते हुए पंकज और उसके भाई ने ग्रामीणों के सहयोग से दस्ते में शामिल हथियारबंद उग्रवादी मंटू गंझू को पड़कर हथियार के साथ पुलिस के हवाले कर दिया था। परिजनों के अनुसार नक्सलियों को गांव में लाने में गांव के ही सुदेश्वर यादव नामक शख्स ने भूमिका निभाई थी। जिसे पुलिस ने पड़कर जेल भेज दिया है।

 

 

मृतक के भाई के अनुसार देर रात करीब 60 से 70 की संख्या में आए वर्दीधारी हथियारबंद टीएसपीसी नक्सली दस्ते ने पहले घर का दरवाजा खुलवाने के प्रयास किया। जिसके बाद जब घर मे सो रहे पंकज और उसके वृद्ध पिता ने दरवाजा नहीं खोला तो नक्सलियों ने दरवाजे को तोड़ने का प्रयास किया। उसके बाद भी जब दरवाजा नहीं टूटा तो घर में लगे करकट सीट को तोड़कर ऊपर से घर मे बंद परिजनों पर ईंट, पत्थर और टांगी से हमला किया। इसके बाद पंकज ने घर का दरवाजा खोलते हुए हाथ मे रखे टांगी से नक्सलियों पर धावा बोल दिया। इस दौरान उसने दस्ते में शामिल दो नक्सलियों की पिटाई भी कर दी। इसके बाद नक्सलियों ने पंकज को पकड़कर पहले उसकी बेरहमी से पिटाई की और फिर घर के आंगन में ही उसे दो गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया।

 

 

पंकज की हत्या के बाद नक्सली उसके भाई को ढूंढने लगे। जब भाई घर में नहीं मिला तो बौखलाए नक्सलियों ने घर के भीतर सो रहे पंकज के वृद्ध पिता को घसीट कर बाहर निकाला और ईंट, पत्थर और लोहे के रड से कूचकर उनकी भी निर्मम हत्या कर दी। हालांकि नक्सलियों के आने से चंद मिनट पूर्व ही पंकज का बड़ा भाई घर से खाना खाकर बाहर निकाला था, जिससे उसकी जान बच गई।

 

 

घटना के बाद मृतक के परिजनों ने गांव में पुलिस पिकेट बनवाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि इस गांव में पूर्व से ही विभिन्न नक्सली संगठनों का वर्चस्व रहा है। यह गांव प्रतापपुर और कुंदा प्रखंड मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर घोर जंगल में स्थित है। ऐसे में यहां नक्सल गतिविधि की सूचना पर जब तक पुलिस पहुंचती है तबतक नक्सली घटना को अंजाम देकर आराम से चलते बनते हैं। जिससे ग्रामीण दहशत में जीने को विवश है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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