“भाग्यशाली है लक्की सिंडिकेट” बड़े-बड़े उद्योग से ज्यादा खपत कराते हैं कोयला (भाग- 3)

AJ डेस्क: यह सीजनल कारोबारी नहीं हैं। 365 दिन इनका कारोबार चलता है, जितना बड़ा इनका पेट है, उतने का लिंकेज नहीं है इनके पास। फिर भी लक्की हैं कभी कोई कमी नहीं होती। 365 दिन स्थानीय स्तर के सेटिंग पर काम चलता रहता है। माहौल अनुकूल रहा तो “बाबा” आशीर्वाद दिला ही देते हैं। फिर क्या है यह सिंडिकेट चौका-छका जड़ने लगता है।

 

 

भुइफोड़ मंदिर से गोबिन्दपुर तक इनका साम्राज्य है। गजब का सेटिंग भी है। साइकिल वाला हो या छोटे मंझोले चार पहिया वाले, वह पहले इसी सिंडिकेट को माल (काला हीरा) देते हैं। इनसे बचा खुचा माल ही आगे बढ़ पाता है। सूत्र बताते हैं कि इन्होंने किसी “साव” जी के नाम से “खैरा” नामक जगह पर नारियल फोड़ने की सारी औपचारिकताएं पूरी कर ली है। लेकिन सुरक्षा की एक और एजेंसी जो है न, उसपे सिंडिकेट का प्रभाव नहीं पड़ रहा। बाबा भी वहां कारगर साबित नहीं हो रहे। नारियल रखा हुआ है, उम्मीद की किरण बरकरार है।

 

 

लक्की सिंडिकेट में एक सिंह जी भी हैं। कहते हैं माल जुगाड़ करने में इन्हें महारथ हासिल है। यह श्रीमान बालू से तेल निकाल सकते हैं तो फिर कोयलांचल में काले हीरे का जुगाड़ करना इनके दाएं हाथ का खेल है। गुजरते समय के साथ साथ अब यह सिंडिकेट अपना कार्य क्षेत्र भी बढ़ा चुका है। इनका दायरा टुंडी रोड तक बढ़ चुका है। बगैर ताम झाम के सिंडिकेट काला हीरा के काले खेल में अच्छा बैटिंग कर रहा है।

 

 

इस सिंडिकेट ने बहुत दिनों तक टुंडी रोड में भी काका जैन के द्वारा लीज पर लिए गए एक भट्ठा में माल खपाया था। काका जैन के इस काले खेल की जानकारी मिलते ही ओरिजनल मालिक ने लीज कैंसिल कर दिया और दीपक बुझ गया। अब काका, भतीजा, सिंह जी और बाबा अन्य जगह माल खपा रहे हैं।

 

 

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