बाहुबली और राजनीति: भाजपा में शामिल हो राजन तिवारी ने गंगा नहाया
AJ डेस्क: राजन तिवारी के राष्ट्रीय पार्टी के साथ जुड़ने से एक बार फिर बिहार में चर्चाओं का माहौल गर्म होता दिख रहा है। लोगों के जेहन में एक बार फिर 90 के दशक की वो बिहार ताजा हो गई है जिसे लोग लगभग भुला चुके थे। ये राजन तिवारी वही माफिया डॉन हैं, जो 3 मई को भारतीय जनता पार्टी में शामिल होकर ‘पवित्र’ हो चुके हैं।
यदि 90 के दशक वाले बिहार की बात करें तो सूबे में अपराध चरम पर था। अंडरवर्ल्ड पैर पसार रहा था। राजनीति ऐसी हो चली थी कि बड़े-बड़े नेता अपराधियों को शह देते थे। कुख्यात माफिया अपने ‘पापों’ का प्रायश्चित करने को राजनीति में उतरने लगे थे। इसी दौर में सूरजनभान सिंह, छोटन शुक्ला, रामा सिंह, अशोक सम्राट, शहाबुद्दीन, तस्लीमुद्दीन, अखिलेश सिंह, राजन तिवारी, सुरेंद्र यादव, अवधेश मंडल, सुनील पांडे, बबलू देव, धूमल सिंह, दिलीप यादव जैसे बाहुबली राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे थे। बहुत से बाहुबलियों को जनता का साथ मिला और वे विधानसभा तक पहुंच गए। इसी बीच, उत्तरी बिहार पर राज करने वाले दो डॉन- मुजफ्फरपुर के छोटन शुकला और अशोक सम्रोट की हत्या हो जाती है।
हत्या का आरोप लगा बिहार के तत्कालीन विज्ञान व प्रोद्योगिकी मंत्री बृज बिहारी प्रसाद पर। इंजीनियरिंग के छात्र रहे बृज बिहारी प्रसाद ने बाहुबल के सहारे राजनीति में अपनी जगह बनाई थी। भाई की हत्या का बदला लेने को भुटकुन शुक्ला ने सारे पैंतरे आजमाएं। इसी दौर में गोरखपुर के श्रीप्रकाश शुक्ला ने बिहार में एंट्री की। यहां उसे इतने हथियार मिले कि उसने आतंक मचा दिया। दोनों शुक्ला एक साथ मिले क्योंकि सबको अपना फायदा दिख रहा था। भुटकुन को अपने भाई के मर्डर का बदला लेने वाला शूटर चाहिए था और श्रीप्रकाश को बिहार में रेलवे के ठेके।
भुटकुन ने बृज बिहारी के एक शूटर को मरवाया तो बृज बिहारी ने भी अपने आदमी को उसके गैंग में शामिल कराकर भुटकुन को ही मरवा दिया।
1996 में बिहार में सामने आया मेधा घोटाला। इंजीनियरिंग कॉलेजों में भर्ती कराने के नाम पर खेल हो रहा था। तब मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव ने सीबीआई जांच की अनुशंसा कर दी तो बृज बिहारी संग उनके रिश्ते तल्ख हो गए। मंत्री पद तो गया ही, न्यायिक हिरासत में भी भेज दिए गए। हालांकि वहां बृज बिहारी की तबीयत खराब हो गई तो पटना के सबसे पॉश इलाके में बने पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया। यहीं उनकी जिंदगी का अंतिम अध्याय खून से लिखा जाना था।
बृज बिहारी की सुरक्षा में दो दर्जन कार्बाइनधारी जवान लगाए गए थे। जिस वार्ड में बृज बिहारी को रखा गया था, वहां पहुंचने में समय लगता इसलिए एक साथ हमला करना मुश्किल था। तारीख तय की गई थी 13 जून 1998। रात आठ बजे के लगभग। गर्मी का मौसम था तो शाम को लोग टहलने निकलते हैं, अंधेरा भी इतना होता है कि किसी को पहचान पाना आसान नहीं। इसी दौरान बृज बिहारी अपने बॉडीर्गाड्स के साथ टहलने निकले।
करीब 8 बजकर 15 मिनट हुए होंगे, कि एक टाटा सूमो कोई बीस कदम दूर आकर रुकी पीछे एक अंबेसडर भी थी। एक शूटर ने तस्दीक की कि ये बृज बिहारी ही है और फिर पूरा अस्पताल गोलियों की गूंज से दहल गया। एके-47, कार्बाइन, पिस्तौल जो कुछ हाथ में था, उसकी गोलियां बदमाशों ने बृज बिहारी के शरीर में उतार दीं और दोनों गाड़ियों में आए अपराधी हवा में गोलियां बरसाते फरार हो गए।
बृज बिहारी हत्याकांड में श्रीप्रकाश शुक्ला, मुन्ना शुक्ला, सूरजभान, मंटू तिवारी और राजन तिवारी जैसों पर केस चला। सीबीआई ने चार्जशीट में कहा कि इन्होंने ही बृज बिहारी की हत्या की। 2009 में सीबीआई की एक अदालत ने सबको उम्रकैद की सजा सुनाई। हालांकि 2014 में पटना हाई कोर्ट ने सभी को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया था।
एके-47 से किसी बड़े नेता की हत्या का यह पहला मामला था। इस घटना से बिहार में एके-47 की उपलब्धता पर बहस तेज हो गई। 1991 से ही बिहार के अपराधी एके-47 का इस्तेमाल करते आ रहे थे। सम्राट अशोक ने एके-47 के जरिए ही बिहार में अपना खौफ बनाया। छोटन शुक्ला की अंबेसडर को भी एके-47 से ही छलनी कर दिया गया था। 1995 में, लताविया के एक एयरक्राफ्ट ने सैकड़ों एके-47 राइफलें और हजारों गोलियां पुरुलिया जिले के चार गांवों में गिराई थीं। चर्चा थी कि बहुत से लोगों ने खेतों में गिराए गए हथियार लूट लिए थे।
कुछ महीनों बाद ही, हर माफिया डॉन के पास एके-47 नजर आने लगी। 1998 में सीपीएम विधायक अजीत सरकार की हत्या में भी एके-47 का इस्तेमाल हुआ। बाहुबलियों को एके-47 से लगाव इसके खौफ के चलते हुआ। 30 गोलियों वाली मैगजीन के साथ यह ऑटोमेटिक हथियार किसी भी बदमाश को ताकतवर होने का एहसास करा सकता है।
Article पसंद आया तो इसे अभी शेयर करें!